Chhattisgarh News: गुम गुलापी की पड़ताल ! क्या रायगढ़ की लापता लेडी ने पति की चिता पर कर ली है आत्मदाह ?

CG News: चिटकाकानी गांव में दर्जी का काम करने वाले जयदेव गुप्ता की कैंसर से 14 जुलाई को मौत गई थी. जयदेव का अंतिम संस्कार कर शाम 6 बजे घर वाले मुक्तिधाम से वापस लौटे. इसके बाद रात करीब 11 बजे से जयदेव की पत्नी गुलापी गुप्ता गायब हो गई.

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Raigarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के रायगढ़ (Raigarh) जिले के चिटकाकानी गांव में रहस्यमय तरीके से लापता लेडी गुलापी गुप्ता की पुलिसिया कार्रवाई में तलाश अब भी जारी है. 14 जुलाई 2024 की रात को लापता हुईं गुलापी को लेकर पांच दिन बाद भी पुलिस के पास पब्लिक फोरम में बताने के लिए कुछ भी नया नहीं है. फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार करती पुलिस इस बात को लेकर आशंकित है कि कहीं इस पूरे मामले को 'सती प्रथा' या कोई और धार्मिक रंग न दे दिया जाए.

पति की मौत के बाद से गायब है महिला

दरअसल, चिटकाकानी गांव में दर्जी का काम करने वाले जयदेव गुप्ता की कैंसर की बीमारी से के बाद 14 जुलाई को मौत गई थी. जयदेव का अंतिम संस्कार कर शाम 6 बजे घर वाले मुक्तिधाम से वापस लौटे. इसके बाद रात करीब 11 बजे से जयदेव की पत्नी गुलापी गुप्ता गायब हो गई. मुक्तिधाम में जहां जयदेव की चिता जली थी, वहीं गुलापी की साड़ी, चप्पल और चश्मा पड़ा मिला. बेटे सुशील का दावा है कि उनकी मां पिता की चिता पर ही जलकर जान दे दी हैं. इसके बाद से क्षेत्र में सती प्रथा की चर्चा शुरू होने के साथ ही कई सवाल भी उठ रहे हैं. 

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गुलापी केस से जुड़े सवालों के जवाब की तलाश

गुमशुदा गुलापी केस की पड़ताल में हमने कुछ ऐसे सवालों के जवाब ढूंढने की भी कोशिश की, जो घटना के बाद से सबसे ज्यादा चर्चा में थे-

सवाल- जयदेव गुप्ता का अंतिम संस्कार कर परिवार और गांव वाले शाम करीब 6 बजे लौटे, फिर रात करीब साढ़े 11 बजे गुलापी की तलाश में वापस मुक्तिधाम पहुंचे. गुलापी रात 10 से सवा 10 बजे के बीच गायब हुईं थीं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या चिता में इतनी आग थी कि एक शव के पूरी तरह जल जाने के साढ़े चार घंटे बाद भी कोई उसमें कूदे और 30 मिनट में ही लगभग पूरी तरह जल जाए? गुलापी गुप्ता के घर से मुक्तिधाम की दूरी करीब 700 मीटर है.

जवाब: ग्रामीण रमेश कुमार कहते हैं- लगभग एक ट्रैक्टर लकड़ी रहती है, उसमें जलाना चाहें तो 2 से 3 शव और भी जल सकते हैं. रमेश बताते हैं कि उनके गांव की परंपरा है कि किसी की भी मृत्यु के बाद एक ट्रॉली गांव भर में घुमायी जाती है, जिसमें हर घर से लकड़ी डालते हैं, उसी लकड़ी का उपयोग कर चिता बनाई जाती है, परंपरा यह भी है कि चिता के लिए दी गई लकड़ी को बचाना नहीं है, इसलिए बड़ी मात्रा में लकड़ी चिता में उपयोग की जाती है. ग्रामीण वासुदेव भी उनकी बात का समर्थन करते हैं. मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया रविवार-सोमवार की दरम्यानी रात करीब 2 से 3 बजे के बीच जब उनकी टीम पहुंची, तब भी चिता में हल्की आग थी. गुलापी के बेटे सुशील के अलावा अन्य ग्रामीण भी बताते हैं कि रात 11 बजे के बाद जब वे पहुंचे तब चिता में जलता हुआ कुछ उन्होंने देखा था.

सवाल- अगर मान भी लिया जाए कि चिता पर जयदेव के अलावा भी एक शरीर और जला था तो भी ये कैसे माना जाए कि वो गुलापी गुप्ता ही थीं?

जवाब- जयदेव व गुलापी के इकलौते बेटे सुशील गुप्ता कहते हैं- मैं जब पहुंचा, तो मैंने मां का एक पैर जलते देखा तो मैं कैसे उसको लापता मान लूं. बार-बार सवाल से परेशान होते सुशील कहते हैं अच्छा बताइये कौन दूसरा आकर जबरदस्ती चिता की आग में जल जाएगा. चिता के पास से ही मां की साड़ी, चप्पल, चश्मा भी तो मिला है. चिता पर मैंने जिसको जलते देखा वो मां ही थी. 

सवाल- ऐसी क्या वजह होगी कि गुलापी अपनी पति की चिता पर जलने जाएं?

जवाब: ग्रामीण वासुदेव प्रधान बताते हैं कि पति-पत्नी में बहुत प्यार था. दर्जी की दुकान में दोनों साथ ही काम करते थे. अगर जयदेव कपड़ा सिलते थे तो वो तुरपाई व अन्य काम में गुलापी उनका सहयोग करती थीं. बाजार भी दोनों साथ में ही जाते थे, दोनों में पति-पत्नी दोस्त की तरह रहते थे. जयदेव के परिवार से जुड़े हेमंत कुमार भी वासुदेव की बात का समर्थन करते हुए कहते हैं- दोनों का संबंध ऐसा था कि कहीं भी जाते थे तो साथ में जाते थे, चाहे हाट बाजार हो चाहे किसी से मिलने जाना हो. गुलापी के बेटे सुशील गुप्ता बताते हैं कि मां के मन में पहले से बन गया था कि उनके (जयदेव) साथ मैं भी अपनी जान लूंगी.

मामले की जांच कर रहे पुलिस एक अधिकारी ने भी हमें ऑफ दि रिकॉर्ड बताया कि पूछताछ में कई ग्रामीणों ने उन्हें बताया कि जयदेव और गुलाबी देवी का आपसी संबंध बहुत ही बेहतर था और नई जनरेशन तो उन्हें लव बर्ड भी बुलाती थी. 

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पुलिस अधिकारी बताते हैं कि घटना के बाद चर्चाएं कई हैं. खासकर मुक्तिधाम के पास सबूतों से कोई छेड़छाड़ न हो जाए और इसके साथ जो चर्चाएं हो रही हैं, उसे कोई धार्मिक रंग न दे दिया जाए. इस बात की आशंका को देखते हुए शासन-प्रशासन पुलिस सजग और सतर्क है. यही कारण है कि पुलिस के जवान को सिविल ड्रेस में वहां तैनात किया गया है, उनका जिम्मा है कि यहां किसी तरह की कोई ऐसी गतिविधि न हो, जो बाद में बड़ा रूप ले ले.

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सवाल- गुम गुलापी की पड़ताल में सबसे बड़ा सवाल यह है कि उनके परिवार और गांव वाले क्या उनको सती मानते हैं.

जवाब:- गुलापी के बेटे सुशील गुप्ता कहते हैं कि हम लोग किताबों में सती प्रथा के बारे में पढ़े थे. किताबों में हमने जो पढ़ा था वैसा ही है, लेकिन पता नहीं दुनिया इसे क्या मानेगी. गांव के ही रहने वाले राकेश कश्यप कहते हैं- कुछ लोग इसे सती बोलते हैं, लेकिन सती प्रथा खत्म हुए कई साल बीत गए हैं. आजकल लोग कहां सती प्रथा के बारे में जानते हैं. ग्रामीण हेमंत कुमार कहते हैं- सती प्रथा को खत्म हुए तो 200 साल हो गया है. मेरे हिसाब से तो यह आत्मदाह है या स्वयं की इच्छा से जाकर जल जाना है. आत्मदाह बोलो या आत्महत्या बोलो, लेकिन सती नहीं बोल सकते.

सवाल: क्या किसी की मनोस्थिति ऐसी हो सकती है कि वो पति की जलती चिता में कूद जाए?

जवाब: छत्तीसगढ़ की मशहूर मनोवैज्ञानिक डॉ. इला गुप्ता कहती हैं- यह तब ही संभव है, जब व्यक्ति पहले से ही काफी डिप्रेशन में हो और वह मान ले कि दुनिया में उसके लिए अब कुछ भी नहीं बचा है. डॉ. इला कहती हैं कि मैंने अपने 25 साल के प्रैक्टिस के करियर में कभी ऐसा केस नहीं देखा और न ही अपने साथियों से सुना. हां ऐसे केसेस जरूर आए, जिसमें लाइफ पार्टनर की मौत के बाद दूसरा साथी काफी डिप्रेशन में चला गया और अपनी जिंदगी खत्म करने की कोशिश की या खत्म भी कर ली, लेकिन ऐसी प्रतिक्रिया में समय लगता है. चिता पर ही जान देने का मामला नहीं आया.  

बहरहाल, पिता की मौत और मां को रहस्यमयी तरीके से खो चुके चिटकाकानी के सुशील गुप्ता सवालों की सुई में यादों का धागा डाल जवाब बुनते हुए अपनी मां को लेकर एक गुहार लगा रहे हैं. सुशील कहते हैं कि 'मुझे मेरी मां के अंतिम संस्कार के रस्मों को करने से न रोका जाए. मुझे उनका दशकर्म करने से न रोका जाए.' सुशील की इस गुहार के बीच प्रशासन की समस्या है कि यदि अंतिम संस्कार की रस्में कर दी जाएंगी, तो समाज में यह संदेश चले जाएगा कि गुलापी अब इस दुनिया में नहीं हैं और उन्होंने पति की चिता पर ही जलकर जान दे दी. इसके बाद आशंका है कि उसे धार्मिक रंग देने की कोशिश भी हो सकती है.

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रायगढ़ के एसपी दिव्यांग पटेल गुलापी केस में बार-बार दोहरा रहे हैं कि हम गुम इंसान कायम कर ही जांच कर रहे हैं. फॉरेंसिक रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है. गुलापी केस में परिवार और ग्रामीणों के दावे, पुलिस की कानूनी प्रक्रिया और जन चर्चा के बीच कई सवालों के जवाब का इंतजार है. सवाल बरकरार है कि क्या चिता पर वाकई जयदेव गुप्ता के बाद भी कोई जला था? अगर कोई जला था वो था कौन? अगर वो गुलापी नहीं थी, तो अभी वो कहां हैं? अगर गुलापी देवी हीं थीं वो तो इस घटना को अंजाम देने के पीछे की असल वजह क्या थी? पुलिस इस मामले को कब तक सुलझा पाएगी, यह अब भी बड़ा सवाल है?

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