धर्म परिवर्तन का दबाव बनाने पर कोर्ट सख्त, पत्नी को इतने हजार रुपये हर महीने गुजारा भत्ता देने का दिया आदेश

अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पति की अपील को खारिज कर दिया. इसके साथ ही निर्देश दिया कि अब पति को अपनी पत्नी को हर माह ₹12,000 भरण-पोषण के रूप में देना होगा.

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला देते हुए धर्म परिवर्तन का दबाव डालने वाले पति को 12000 रुपये गुजारा भत्ता अपनी पत्नी के देने का आदेश दिया. दरअसल, प्रेम विवाह के बाद धर्म परिवर्तन का दबाव डालने के आरोप वाले एक संवेदनशील मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पत्नी के पक्ष में बड़ा फैसला सुनाया.

अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए पति की अपील को खारिज कर दिया. इसके साथ ही निर्देश दिया कि अब पति को अपनी पत्नी को हर माह ₹12,000 भरण-पोषण के रूप में देना होगा.

मायके में रहती है महिला

मामला छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले का है, जहां जैन धर्म का पालन करने वाले एक युवक ने ईसाई युवती से प्रेम विवाह किया था. पत्नी का आरोप है कि विवाह के बाद पति और ससुरालवालों ने उस पर ईसाई धर्म छोड़कर जैन धर्म अपनाने का दबाव डाला. उसने यह भी बताया कि शादी के बाद से ही पति ने उसे अपने साथ नहीं रखा, जिसके चलते वह मायके में रहने को मजबूर हैं.

पत्नी ने मांगे 45000 रुपये महीना

पत्नी ने अदालत में कहा कि उसे गंभीर कमर और सीने के दर्द की समस्या है और इलाज पर हर माह ₹20,000 से ₹25,000 का खर्च आता है. उसके पास कोई आय का स्रोत नहीं है, जबकि पति इंजीनियर हैं और उन्हें लगभग ₹85,940 प्रतिमाह वेतन मिलता है. इस आधार पर उसने ₹45,000 भरण-पोषण की मांग की थी.

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काम नहीं आई पति की चालाकी

पति की ओर से यह तर्क दिया गया कि पत्नी शिक्षित है और अपनी इच्छा से अलग रह रही है. इसलिए वह स्वयं खर्च उठा सकती है. साथ ही यह भी कहा कि उस पर झूठे आरोप लगाए गए हैं, लेकिन अदालत ने पत्नी की आर्थिक निर्भरता और वास्तविक स्वास्थ्य समस्याओं को ध्यान में रखते हुए माना कि उसका भरण-पोषण न्यायसंगत है.

₹12,000 मासिक भरण-पोषण देने का आदेश

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की सिंगल बेंच ने कहा कि पति की स्थायी आय और पत्नी की आर्थिक असमर्थता को देखते हुए ₹12,000 मासिक भरण-पोषण देना उचित और आवश्यक है. यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि विवाह के बाद धर्म परिवर्तन या धार्मिक दबाव मानसिक क्रूरता के दायरे में आ सकता है. साथ ही,यदि पत्नी के पास कोई स्वतंत्र आय नहीं है, तो पति का भरण-पोषण देना कानूनी और नैतिक दायित्व माना जाएगा.

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संदेश साफ है कि अदालत धर्म, आस्था और रिश्तों के नाम पर किसी भी तरह के दबाव को बर्दाश्त नहीं करेगी और हर पत्नी को अपने सम्मान और सुरक्षा के साथ जीवन जीने का अधिकार है.

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