छत्तीसगढ़ चुनाव : BSF जवान को लोगों ने भेजे 10 हजार पोस्टकार्ड, अब मंत्री अमरजीत भगत को देंगे टक्कर

सरगुजा जिले की सीतापुर विधानसभा से अलग ही मामला सामने आया है. यहां के स्थानीय लोगों ने पोस्टकार्ड भेजकर एक BSF जवान रामकुमार टोप्पो से चुनाव लड़ने का आग्रह किया है. रामकुमार को एक-दो नहीं बल्कि 10 हजार पोस्टकार्ड भेजे गए हैं.

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छत्तीसगढ़ में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं जिसके मद्देनजर टिकट की चाह में नेता एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं...लेकिन यहां के सरगुजा जिले की सीतापुर विधानसभा से अलग ही मामला सामने आया है. यहां के स्थानीय लोगों ने पोस्टकार्ड भेजकर एक BSF जवान रामकुमार टोप्पो से चुनाव लड़ने का आग्रह किया है. रामकुमार को एक-दो नहीं बल्कि 10 हजार पोस्टकार्ड भेजे गए हैं. एक महिला ने तो खून से चिट्ठी लिखी है. रामकुमार भी इस आग्रह को नकार नहीं पाए और नौकरी से इस्तीफा देकर अपने इलाके में पहुंच गए हैं. अहम ये है कि यहां से प्रदेश के खाद्य मंत्री अमरजीत भगत विधायक है. लिहाजा BSF जवान के चुनावी मैदान में कूदने से सियासी खलबली मच गई है. 

सरगुजा के सीतापुर विधानसभा में आम लोगों ने पोस्टकार्ड लिखकर BSF जवान रामकुमार को चुनाव लड़ने के लिए बुलाया. रेलवे स्टेशन पर उनका भव्य स्वागत हुआ.

जम्मू-कश्मीर में तैनात थे रामकुमार

मैनपाट के रहने वाले राजेश टोप्पो के बेटे रामकुमार इस्तीफा देने से पहले जम्मू-कश्मीर में तैनात थे. लोगों का कहना है कि जब वे छुट्टी में अपने गांव आते थे तो स्थानीय लोगों की समस्याओं को दूर करने की कोशिश करते हैं. इसकी वजह से आम लोगों में उनकी छवि अच्छी बन गई. वे ये काम बीते 4-5 सालों से कर रहे थे. रामकुमार के पिता मूलरुप से किसान हैं और उनके परिवार में कोई भी राजनीति में नहीं है. अपने गृहनगर पहुंच कर रामकुमार ने भी कहा कि वे तिरंगा यात्रा के माध्यम से इस विधानसभा क्षेत्र में अपना प्रचार अभियान चलाएंगे. 

2003 से ही विधायक  हैं मंत्री अमरजीत भगत

बता दें कि सीतापुर विधानसभा में 2003 से आज तक कांग्रेस के अमरजीत भगत जीतते रहे हैं. उनके पहले इस सीट पर निर्दलीय विधायक प्रोफेसर गोपाल राम का कब्जा रहा था. वहीं क्षेत्र के मतदाताओं की बात करे तो इस क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों का प्रभाव रहा है. मैनपाट इलाके में मांझी,कोरवा और पांण्डो जनजाति समुदाय के लोग रहते हैं. ये भी कांग्रेस को वोट करते हैं.ऐसे में इलाके को कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या रामकुमार के चुनावी मैदान में उतरने से यहां की सियासी हवा बदलेगी?  

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