Shiksha Doot: वेतन के लिए तरस रहे आदिवासियों के शिक्षा दूत, नक्सल प्रभावित इलाकों में पढ़ाने वालों का ऐसा है हाल

Shiksha Doot: छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के उन आदिवासी इलाकों में भी सरकार ने स्कूल खोल दिए हैं, जहां कभी नक्सल दहशत की कक्षाएं लगाया करते थे. इन स्कूलों में शिक्षा दूतों के भरोसे बस्तर की तस्वीर बदलने और भविष्य गढ़ने की कोशिश की जा रही है. नक्सल प्रभावित इलाकों में वर्षों बाद खुले स्कूलों को लेकर सरकार की खूब वाहवाही भी हो रही है. लेकिन स्कूलों के हालात और जान हथेली पर रख शिक्षा दूत बनने वालों को लेकर सरकार कितनी गंभीर है. पढ़ें एनडीटीवी की ये खास रिपोर्ट.

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Shiksha Doot: भारत में नक्सलियों की यूनिवर्सिटी कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के बीजापुर जिले के गंगालूर थाना क्षेत्र के उन गांवों की तस्वीर बदल रही है, जहां लाल आतंक की कक्षाएं लगा करती थीं. मुदवेंडी गांव में प्रवेश करते ही आवाज आई...दो एकम दो, दो दूनी चार...कुछ इसी तरह की आवाज मुदवेंडी से करीब ढाई किलोमीटर पहले कावड़गांव में सड़क पर खड़े ही साफ सुनाई आ रही थी. ये उस बदलते बस्तर की आवाज है, जहां आज भी बम धमाके और गोलियों की गड़गड़ाहट से इंसानियत दहल जाती है. जहां कभी नक्सली दहशत की कक्षाएं लगाते थे, वहां अब बच्चे उम्मीदों का पहाड़ा पढ़ रहे हैं.

दरअसल बस्तर में सलवा जुडूम के दौर में ध्वस्त किए गए स्कूलों को फिर से खोलने का सिलसिला शुरू हुआ है. बस्तर के बीजापुर और सुकमा जिले के घोर नक्सल प्रभावित ज्यादातर क्षेत्रों में झोपड़ीनुमा कमरा बनाकर कक्षाएं लगाई जा रही हैं. साल 2020 से दिसंबर 2024 तक ऐसे करीब 400 स्कूलों का संचालन बीजापुर और सुकमा में शुरू किया गया है. लाल आतंकियों के प्राभाव वाले इन इलाकों में शिक्षा की अलख जगाने और आदिवासी बच्चों का भविष्य गढ़ने की जिम्मेदारी शिक्षा दूत निभा रहे हैं.

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बीजापुर के कावडगांव और मुदवेंडी में सत्र-2024-25 यानी कि इसी साल जून से प्रायमरी स्कूल खुला है. कांवडगांव में 35 और मुदवेंडी में 39 विद्यार्थी पंजीकृत हैं. एक झोपड़ी से शुरू किए गए इन स्कूलों में सुविधाओं के नाम पर सफेद बोर्ड, वर्णमाला चार्ट, एबीसीडी के लिखे चार्ट, कुछ कुर्सियां, एक मेज है. मध्याह्न भोजन बनाने की व्यवस्था गांव में ही एक परिवार के यहां की गई है. कावडगांव स्कूल के हेड मास्टर इश्राम प्रजापति बताते हैं कि बच्चे नियमित स्कूल आते हैं. पढ़ाई में भी खूब रुचि ले रहे हैं. बच्चों को पढ़ाने की जिम्मेदारी हेडमास्टर के अलावा शिक्षा दूत लखमा तामू की है. लखमा खुद कक्षा 12वीं तक पढ़े हैं. उत्साहित होकर लखमा बताते हैं कि बच्चे किताब पढ़ लेते हैं. एबीसीडी, क, ख, ग, गिनती भी आती है. हिंदी समझ लेते हैं, लेकिन बोलने में थोड़ी दिक्कत है.

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लखमा बताते हैं कि 'गांव में बच्चों को पढ़ने के लिए कुछ नहीं था. जब पता चला कि सरकार स्कूल खोल रही है तो मैं खुद कलेक्टर के पास प्रस्ताव लेकर गया कि मेरे गांव में भी स्कूल खोला जाए. स्कूल खोलने के लिए ग्रामिणों को भरोसे में लेने, संसाधन जुटाने में भी मैंने प्रशासन की मदद की.' मुदवेंडी गांव के शिक्षादूत सुदरु यमला ने भी यही जानकारी हमें दी. बता दें कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में संचालित स्कूलों में 12वीं पास युवक-युवतियों को शिक्षादूत बनाने की व्यवस्था प्रशासन ने की है. 30 बच्चों पर एक और 60 पंजीकृत बच्चों वाले स्कूलों में 2 शिक्षादूत नियुक्त करने की अनुमति है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र में बच्चों को स्कूल में दाखिले से लेकर पढ़ाने तक की जिम्मेदारी शिक्षादूतों की ही है. साल में सिर्फ 10 महीने ही उन्हें वेतन देने की व्यवस्था है.

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शिक्षादूतों को वेतन का इंतजार

कावडगांव के शिक्षादूत लखमा तामू और मुदवेंडी के शिक्षा दूत सुदरू यमला बताते हैं कि जुलाई 2024 से वे सेवाएं दे रहे हैं. नवंबर तक पांच महीने में सिर्फ 2 महीने की ही तनख्वाह उन्हें मिली है. इसके लिए भी धरना और आंदोलन करना पड़ा. सरकार उन्हें समय पर वेतन तक नहीं दे पा रही है. यही स्थिति बीजापुर और सुकमा जिले के स्कूलों में सेवाएं दे रहे 400 से ज्यादा शिक्षादूतों की भी है. लखमा कहते हैं कि समय पर वेतन नहीं मिला तो आगे मुश्किल हो जाएगी. क्योंकि घर वाले पूछते हैं कि कमाने जाते हो तो पैसे क्यों नहीं लाते. घर में सामान कैसे खरीदेंगे, खर्चे कैसे चलेंगे. 

दो शिक्षादूतों की हत्या, कई को धमकी  

नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्कूल खोलकर देशभर में वाहवाही लूटने वाली छत्तीसगढ़ सरकार उन दूतों को समय पर तनख्वाह नहीं दे रही है, जो अपनी जान हथेली पर रखकर लाल आतंकियों के इलाके में उम्मीद का चिराग जला रहे हैं. बता दें कि बस्तर के अंदरूनी इलाकों में शिक्षादूतों के सामने दोधारी तलवार पर चलने जैसी स्थिति है. सुकमा में डेढ़ साल में 2 शिक्षा दूतों की हत्या नक्सलियों ने कर दी है. जून 2023 में ताड़मेटला के शिक्षा दूत कवासी सुक्का और सितबंर 2024 में जगरगुंडा के शिक्षा दूत अर्जून दुधी की निर्मम हत्या नक्सलियों ने कर दी. बीजापुर के 2 शिक्षा दूत 3 महीने से लापता हैं. शिक्षादूत लखमा तामू कहते हैं कि हरदम उनमें डर बना रहता है. कब क्या हो जाए पता नहीं. कई शिक्षादूतों को धमकियां मिल चुकी हैं.

शिक्षादूतों के लिए ठोस योजना नहीं

तनख्वाह समय पर नहीं मिलने और खौफ में जिंदगी जीने की परेशानी झेल रहे बस्तर के शिक्षा दूतों के नियमित रोजगार व सुरक्षित भविष्य के लिए कोई ठोस योजना सरकार ने नहीं बनाई है. सुकमा जिला प्रशासन द्वारा जारी एक आदेश के मुताबिक फिर से खोले गए स्कूलों में नियमित शिक्षकों की भर्ती होने पर शिक्षादूतों की सेवा स्वत: समाप्त कर दी जाएगी. लखमा, सुदरू जैसे ज्यादातर शिक्षादूत नियमित शिक्षक बनने के लिए डीएड, बीएड की डिग्री समेत अन्य जरूरी शैक्षणिक योग्यताएं पूरी नहीं करते हैं. ऐसे में नियमित शिक्षक मिलने के बाद इनका भविष्य क्या होगा, इसपर सरकार की कोई योजना फिलहाल नहीं है.

इसलिए नहीं मिल रहा समय पर वेतन

बीजापुर के कलेक्टर संबित मिश्रा बताते हैं कि शिक्षा दूतों की नियुक्ति व उनके वेतन की व्यवस्था डीएमएफ मद से की जाती है. इस साल डीएमएफ से मिलने वाली राशि जारी नहीं की गई है, इसलिए प्रशासन समय पर वेतन नहीं दे पा रहा है. शिक्षादूत हमारी प्राथमिकता में हैं, इसलिए समय पर वेतन के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी.

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