छत्तीसगढ़ के इस गांव में सड़क-पानी के लिए तरस रहे ग्रामीण, चुनाव बहिष्कार का भी नहीं हुआ प्रशासन पर असर

Development in Villages: बेमेतरा जिले के झांझाडीह गांव के लोग आजादी के 77 साल बाद भी पानी-सड़क जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहे हैं. बीते दिनों ग्रामीणों ने लोकसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार किया था, जिसके बाद प्रशासन ने सड़क बनाने का वादा किया था.

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झांझाडीह गांव कि सड़कों में पानी भरा होता है.

No Basic Facilities in Jhanzhadih Village: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बेमेतरा जिले (Bemetara) का एक गांव ऐसा भी है जहां, आजादी के 77 साल पूरे होने के बाद भी मूलभूत सुविधाओं (Basic Facilities) के लिए ग्रामीणों को जूझना पड़ रहा है. यहां न तो पीने के लिए पानी की उचित व्यवस्था है और ना ही चलने के लिए ठीक-ठाक सड़क. इस गांव की हालत बरसात के मौसम में और भी बद से बदतर हो जाती है. जिसके चलते गांव का संपर्क जिला मुख्यालय (Bemetara District Headquarters) से टूट जाता है लोग पैदल ही जिला मुख्यालय जाते हैं.

चुनाव का बहिष्कार भी कर चुके हैं ग्रामीण

झांझाडीह गांव के लोगों ने अपनी मूलभूत सुविधाओं की मांग को लेकर लोकसभा चुनाव 2024 के मतदान का बहिष्कार किया था. ग्रामीणों ने सिर्फ सड़क की मांग की थी और कहा था कि उन्हें सिर्फ आने जाने के लिए सड़क ही दे दिया जाए तो उसके लिए सुविधाएं उपलब्ध हो जाएगी. इसको लेकर लगभग 10 घंटे तक ग्रामीणों ने मतदान नहीं किया था. जिला प्रशासन के इसको लेकर हाथ पांव फूल गए थे. 

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जिला प्रशासन की ओर से सड़क बनाने के वादा किए जाने के बाद शाम 5:00 बजे ग्रामीणों ने मतदान किया, लेकिन मतदान के बाद न अधिकारियों ने इस गांव की सुध ली ना चुनाव जीतने के बाद नेताओं ने. आज भी यहां के लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

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झांझाडीह गांव की गलियों में पानी भरा रहता है. बरसात के मौसम में यहां चलना मुश्किल हो जाता है.

300 की आबादी वाला गांव

हम बात कर रहे हैं बेमेतरा ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले ग्राम पंचायत रामपुर के आश्रित ग्राम झांझाडीह की, जो कि बेमेतरा जिला मुख्यालय से मात्र 15 किलोमीटर दूर स्थित है. इस गांव में 300 की आबादी रहती है, लेकिन ये 300 लोग मूलभूत सुविधाओं के बिना ही जीने को मजबूर हैं. यहां लोग पीने के पानी और सड़क की समस्या से सबसे ज्यादा जूझ रहे हैं. बारिश के समय कच्ची सड़कें नाली में तब्दील हो जाती हैं, ऐसे में इस गांव का संपर्क जिला मुख्यालय से टूट जाता है और लोग पैदल ही जिला मुख्यालय जाते हैं. 

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बीमार लोगों को खाट व कंधे पर ले जाते हैं अस्पताल

गांव के रहने वाले टेकचंद बताते हैं कि बरसात के दिनों में किसी के बीमार पड़ने में सबसे ज्यादा समस्या होती है. दरअसल, सड़क नहीं होने के कारण उसे खाट पर या कंधे पर बैठाकर मुख्य सड़क तक लेकर जाना होता है. गांव से मुख्य मार्ग की दूरी एक तरफ 5 किलोमीटर है तो दूसरी तरफ 7 किलोमीटर है. मुख्य मार्ग तक पहुंचने पर ही बीमार व्यक्ति को स्वास्थ्य सुविधा मिलती है. टेकचंद ने कहा कि करीब एक साल पहले समय पर इलाज नहीं मिलने के चलते गर्भवती महिला और दो पैरालिसिस लोगों की मौत हो चुकी है.

झांझाडीह गांव में नल जल योजना की हालत बेहद खराब है.

5 साल में मात्र 80 हजार का विकास कार्य

वहीं अगर विकास कार्यों की बात करें तो यह गांव विकास से कोसों दूर हैं. आलम तो यह है कि बीते 5 साल में इस गांव में विकास के नाम पर मात्र 80 हजार की कच्ची नाली बनी है. जिसमें 41 हजार की सामग्री व 39 हजार की मजदूरी शामिल है. ग्रामीणों का कहना है कि मनरेगा के तहत बने इस कच्ची नाली में कहां पर सामग्री लगाई गई है यह तो दूरबीन लेकर हमें ढूंढना पड़ेगा, लेकिन इस नाली से किसी का फायदा नहीं हुआ बल्कि अब उल्टे इस नाली के कारण गलियों में कीचड़ हो रहा है.

नल जल योजना ठप

नल जल योजना व सौर ऊर्जा के माध्यम से ग्रामीणों को शुद्ध पीने के पानी देने के लिए नलों की व्यवस्था की गई है, लेकिन इन नलों में पानी के बजाय हवा निकलती है. जिसके चलते ग्रामीणों को पीने की पानी की समस्या से जूझना पड़ रहा है. ग्रामीणों को अपनी प्यास बुझाने के लिए दूर से पीने का पानी लेकर आना पड़ता है, तब जाकर वे कहीं अपना गुजारा कर पाते हैं.

झांझाडीह गांव में एक मात्र स्कूल है, यहां बारिश के मौसम में शिक्षक स्कूल नहीं आते हैं.

गलियों की हालत इतनी खराब की चलना मुश्किल

झांझाडीह गांव की गलियों की हालत इतनी ज्यादा खराब है कि अगर थोड़ी सी भी बरसात हो जाए तो गलियों में चलना मुश्किल हो जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि आज से 40 साल पहले गांव की गलियों में तत्कालीन मंत्री डीपी धृतलहरे के द्वारा पत्थर लगाया गया था. आज वह पत्थर नल जल योजना के कारण उखाड़ दिया गया, न पानी मिला ना हमारी गली का सुधार हुआ. अगर थोड़ा सा भी पानी गिर जाए तो फिर गलियों में चलना मुश्किल हो जाता है. हालत यह है कि कई बार महिलाएं और बच्चे या आम लोग इस गलियों में चलने के दौरान गिर जाते हैं और उन्हें चोट लग जाती है.

शिक्षक स्कूल नहीं आते और बच्चे स्कूल नहीं जा पाते

गांव में एक प्राथमिक शाला यानी सिर्फ पांचवी तक की स्कूल है, लेकिन बरसात के दिनों में शिक्षक स्कूल ही नहीं पहुंच पाते हैं क्योंकि उनके आने और जाने में ही समय समाप्त हो जाता है. इसके अलावा जो माध्यमिक व हायर सेकेंडरी स्कूल के बड़े बच्चे हैं, वे लगभग 3 किलोमीटर और 8 किलोमीटर की दूरी तय कर दूसरे गांव जाते हैं. लेकिन, बरसात के दिनों में वे स्कूल नहीं जा पाते, जिसके चलते उनकी पढ़ाई प्रभावित होती है.

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