Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के कुआकोंडा पुलिस थाना क्षेत्र के मोखपाल गांव में बुधवार शाम 75 वर्षीय महिला ने अपने ही घर में गमछे से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. परिजन जब घर लौटे तो उन्होंने देखा कि वृद्धा मंडावी फंदे पर झूल रही है. यह दृश्य देखकर परिवारजन बदहवास हो गए और तत्काल आसपास के ग्रामीणों के साथ कुआकोंडा पुलिस को सूचना दी.
सूचना देने के बावजूद पुलिस की लापरवाही का आलम यह रहा कि घटना स्थल तक पहुंचने में पूरे 16 घंटे का समय लग गया. मोखपाल गांव, कुआकोंडा पुलिस थाने से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, बावजूद इसके पुलिस अगले दिन सुबह करीब 10 बजे मौके पर पहुंची. तब तक शव फंदे पर ही झूलता रहा और परिजन पूरी रात शव के पास बैठकर रोते-बिलखते रहे.
मृतका के परिजन सतनेश मंडावी ने बताया कि पुलिस को फोन करने के बाद तीन पुलिसकर्मी मोटरसाइकिल से आए थे, जिन्होंने केवल यह कहा कि “जब तक हम पूरी टीम के साथ नहीं आते, तब तक शव को नीचे मत उतारना.” इसके बाद पुलिस लौट गई और फिर अगले दिन सुबह मौके पर पहुंची.
ग्रामीणों का कहना है कि यदि पुलिस ने तत्परता दिखाई होती, तो शव को सुरक्षित नीचे उतारकर अस्पताल की मर्चरी में रखवाया जा सकता था, जिससे परिजनों को कुछ मानसिक राहत मिलती. लेकिन पुलिस की धीमी कार्यशैली ने न केवल परिजनों का दुख बढ़ाया, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर दिया कि क्या हमारी पुलिस सिर्फ नक्सल मोर्चे पर ही सक्रिय है और आम लोगों की समस्या उनके एजेंडे में नहीं है?
कुआकोंडा थाना क्षेत्र नक्सल प्रभावित इलाका जरूर है, पर सामान्य घटनाओं में भी पुलिस को तेजी से प्रतिक्रिया देनी चाहिए. ग्रामीणों ने बताया कि जब बात नक्सली मूवमेंट या सुरक्षा बलों की होती है, तब पुलिस मिनटों में पहुंच जाती है. लेकिन जब किसी आम ग्रामीण की मौत या सामाजिक अपराध की बात होती है, तब वही पुलिस सुस्त और बेपरवाह नजर आती है.
मोखपाल की यह घटना कुआकोंडा पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करती है. एक ओर जहां सरकार पुलिसिंग में सुधार और जनसंपर्क बढ़ाने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर ऐसे मामलों में पुलिस की निष्क्रियता जनता का भरोसा कमजोर करती है.
गांव के बुजुर्गों ने कहा कि इस तरह की देरी से न केवल जांच प्रभावित होती है, बल्कि प्रशासन की संवेदनहीनता भी उजागर होती है. ग्रामीणों की मांग है कि मामले की निष्पक्ष जांच हो और पुलिसकर्मियों की जवाबदेही तय की जाए ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाही दोबारा न हो. मोखपाल की इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में चुस्त दिखने वाली पुलिस, सामान्य नागरिकों के मामलों में बेहद कमजोर साबित हो रही है.
रामकुमार बर्मन (एडिशनल एसपी, दंतेवाड़ा) ने बताया कि इस मामले में देर शाम पुलिस को सूचना मिली थी. रात होने की वजह से शव को नीचे नहीं उतारा गया. अगर फिर भी ग्रामीणों की कोई शिकायत है, तो जो स्टाफ गया था और जो देरी हुई, उसकी जांच कराई जाएगी.