सियासी किस्से: ढाई पाई की जगह पांच पाई की मांग...ये था शिवराज का पहला आंदोलन

मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है.ऐसे में तमाम प्लेटफॉर्म्स पर आपको तरह-तरह की खबरें सुनाई,दिखाई और पढ़ाई जाएगी लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं मौजूदा दिग्गजों के पुराने किस्से. इसमें सूबे के सब किनारों के वे सियासी किस्से होंगे जिनसे आपको अपने माननीयों को समझने में आसानी होगी.

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मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है.ऐसे में तमाम प्लेटफॉर्म्स पर आपको सियासी गलियारों की चिल्ल-पौं सुनाई,दिखाई और पढ़ाई जाएगी लेकिन हम आपको बताने जा रहे हैं मौजूदा दिग्गजों के पुराने किस्से. इसमें सूबे के सब किनारों के वे सियासी किस्से होंगे जिनसे आपको अपने माननीयों को समझने में आसानी होगी. यहां चौक-चौराहों की चर्चा नहीं होगी बल्कि कसौटी पर कसे गए किस्से होंगे. ये इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भूतकाल पर ही वर्तमान की नींव खड़ी होती है. इस सीरीज की सहायता से मौजूदा चुनाव में आप जिन नेताओं को चुनने वाले हैं उनको समझने में आपको आसानी होगी. तो चलिए शुरू करते हैं सियासी किस्से. 

आज और सबसे पहले हम बात करेंगे देश के दिल कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की. 

बेहद सिंपल हैं शिवराज सिंह चौहान

बात 21 वीं सदी के शुरुआत की है. शाम का वक्त था...हरियाणा के पानीपत स्थित एक अखबार के दफ्तर में मैं अपने काम में व्यस्त था. तभी ऑफिस ब्वॉय ने आकर बताया- कोई आया है और संपादक से मिलना चाहता है. संपादक तब दफ्तर में थे नहीं लिहाजा मैं ही उनसे मिलने पहुंच गया. मैंने पीछे से देखा छरहरे शरीर पर कुर्ता-पायजामा धारण किया एक शख्स रिसेप्शन पर खड़ा था. मैंने नमस्कार किया तो उसने बताया- मैं शिवराज सिंह चौहान. मैंने कहा- आपको जानता हूं,बताइए कैसे आए हैं. तो उन्होंने कहा- मैं संपादक से मिलना चाहता हूं. मैंने कहा- थोड़ा इंतजार कीजिए वो आते ही होंगे. वे खड़े ही रहें तो मैंने आग्रह किया आइए संपादक जी के ही केबिन में बैठते हैं. मैंने गौर किया वे अकेले ही आए थे.

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आज तो एक पार्षद भी जहां जाता है उसके साथ चार छुटभैये जरूर होते हैं और वे तो हरियाणा बीजेपी के प्रभारी थे पर उनके साथ कोई तामझाम नहीं था. अब मुझे समझ में आता है वे वो पांव-पांव वाले भइया क्यों कहे जाते हैं.

अब किस्से को आगे बढ़ाते हैं...इसमें भी हरियाणा कनेक्शन है. 

हुड्डा ने बताई थी पहली बार CM बनने की बात

ये साल 2005 के नवंबर महीने के अंतिम दिनों की बात है.  जगह थी- देश की राजधानी दिल्ली के पंडित पंत मार्ग का सरकारी बंगला और ये आवास था मध्यप्रदेश के विदिशा से सांसद शिवराज सिंह चौहान  का. बाहर गुनगुनी धूप खिली हुई थी. फुर्सत के पल थे लिहाजा दोपहर में कभी न सोने वाले चौहान ने अपनी पत्नी साधना से कहा- मुझे नींद आ रही है, सोने जा रहा हूं और मुझे उठाया न जाए. तभी घर की घंटी बजी. पत्नी साधना सिंह ने दरवाजा खोला तो पड़ोस में रहने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा अपनी पत्नी के साथ खड़े थे. उनके हाथ में था मिठाई का डिब्बा. अब तो मजबूरी में ही सही शिवराज को भी बाहर आना ही पड़ा. उन्हें देखते ही हुड्डा ने कहा- बधाई हो,आप मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन रहे हैं. शिवराज और उनकी पत्नी इस सूचना के लिए तैयार नहीं थे क्योंकि दूर-दूर तक इसकी कोई संभावना नहीं थी. तुरंत टीवी ऑन किया तो खबर की तस्दीक हुई. थोड़ी ही देर बाद पार्टी के बड़े नेता संजय जोशी का फोन आया और उन्हें CM बनाए जाने की औपचारिक सूचना मिली.

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तब भूपेन्द्र हुड्डा ने कहा- इत्तेफाक देखिए मैं भी कुछ दिनों पहले ही पहली बार हरियाणा का मुख्यमंत्री बना हूं और अब आप. मतलब एक बीजेपी के नेता के CM बनने की पहली खबर कांग्रेस के CM ने दी. बहरहाल इसके बाद आई 29 नवंबर 2005 की वो तारीख जब शिवराज सिंह चौहान ने पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली . 

बस का ब्रेक फेल हुआ तो शिवराज ने बचाया

ये तो था वाक्या शिवराज सिंह चौहान के पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने का. तब तक वे जीवन के चार दशक जी चुके थे. लेकिन वे जीवन में कुछ बड़ा करने वाले हैं इसकी झलक तो उनके जीवन के पहले दशक में ही मिल चुकी थी. बात उन दिनों की है जब शिवराज सिंह चौहान स्कूल में थे. स्कूल का नाम था-मॉडल स्कूल. उन दिनों स्कूल की तरफ से गोवा की एक ट्रिप प्लान की गई. यहां जाने वालों में सभी बच्चों के साथ शिवराज भी शामिल थे. गोवा से लौटते समय सभी बच्चे काफी शरारत कर रहे थे.रास्ता सूनसान था इस कारण सभी को शांत कराया जा रहा था. लेकिन, जब वो नहीं माने तो उनके टीचर ने पहले शिवराज को डांटा और फिर तड़ातड़ तीन चांटे भी जड़े. हालांकि तब शिक्षक को इसका एहसास नहीं था कि जिस बच्चे को वो चांटे रसीद कर रहे हैं वो ही कुछ देर में उन सबकी जिंदगी बचाएगा. हुआ यूं कि बस जैसे ही पहाड़ी ढलान पर आई तो ड्राइवर ने जोर से चिल्लाकर कहा, बस का ब्रेक फेल हो गया है. आप सभी लोग कूद जाइए. सभी डर गए और बचने की युक्ति सोचने लगे. जितनी देर में लोग सोचते इतने में शिवराज ने गेट खोला और बस से बाहर कूद गए. वे गिरे और फिर उठ कर चल दिए. उनकी देखादेखी कुछ और बच्चे भी कूदे और फिर सभी न मिलकर बस के आगे पत्थर रखी. बस रूक गई और सभी की सांस में सांस आई.

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राजनीति में कदम रखने के खिलाफ था परिवार

अब शिवराज की जिंदगी में थोड़ा और करीब से झांकते हैं. उनका परिवार उनके राजनीति में कदम रखने के खिलाफ था. लेकिन शिवराज पीछे नहीं हटे. महज 13 साल की छोटी उम्र में ही वे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए. इसी दौर में एक दिन उनके चाचा ने उनकी पिटाई भी कर दी. हुआ यूं कि उन्होंने उनके घर और आसपास के घरों के मजदूरों की तकलीफ को नजदीक से देखा था लिहाजा उन्होंने सभी को इकट्ठा किया और कहा-आप सब अपने हक की आवाज उठाइए. शुरुआती झिझक के बाद मजदूर शिवराज के कहने पर एकजुट हुए. शाम को हाथों में पेट्रोमैक्स लेकर मजदूर नारेबाजी करते हुए कस्बे की गलियों में निकल लिए. वे नारे लगा रहे थे-ढाई पाई नहीं पांच पाई लेंगे.पाई दरअसल एक बरतन होता था जिसमें मजदूरी के लिए अनाज दिया जाता था. जुलूस में  शिवराज आगे-आगे थे.

वे जैसे ही अपने घर के नजदीक पहुंचे उनके चाचा लाठी लेकर बाहर निकले और कहा- आओ मैं तुम्हें देता हूं पांच पाई. फिर चाचा ने थप्पड़ों से उनकी धुनाई और अगले ही दिन भोपाल भेज दिया. यहीं शिवराज ने अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ा. वो था- स्टूडेंट कैबिनेट के सांस्कृतिक सचिव का. तब वे दसंवी क्लास में पढ़ते थे. उन्हें जीत मिली. इसके बाद उन्होंने 11वीं क्लास में अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और इसमें भी जीत हासिल कर वे 1975 में छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए.

चिट्टी में आया नाम, शिवराज को हो गई जेल

इसके बाद आया दौर इमरजेंसी का. उस समय संघ के नेता और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद संगठन मंत्री के रूप में कार्य कर रहे सूर्यकांत केलकर को गिरफ्तार कर लिया गया. जब सूर्यकांत केलकर की तलाशी ली गई तो उनकी जेब से एक चिट्ठी निकली,जिसमें शिवराज सिंह चौहान नाम लिखा हुआ था. तब वे विद्यार्थी परिषद के लिए काम किया करते थे. उन्हें केलकर की चिट्ठी के बारे में पता नहीं था लिहाजा वे बेफिक्र थे. लेकिन पुलिस उन्हें तलाश करते हुए भोपाल पहुंच गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. 18 साल के शिवराज को तब 19 महीने तक हवालात की हवा खानी पड़ी हालांकि ये उनके लिए फायदे का सौदा ही साबित हुआ. जेल में उन्हें जनसंघ के बड़े नेताओं का सानिध्य मिला और राजनीति के प्रति समझ गहरी हुई.  जेल से बाहर निकलने के बाद वे फुल टाइम पॉलीटिशियन बन गए थे.इसके बाद 1978 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के मध्यप्रदेश के संयुक्त सचिव बने. फिर 1984 में युवा मोर्चा में शामिल हुए और अगले ही साल मोर्चा के ज्वाइंट सेक्रेटरी बन गए.  

'वन नोट-वन वोट' था शिवराज के पहले चुनाव में नारा

फिर आया 1990 का दौर- तब पार्टी ने उन्हें बुधनी सीट से विधानसभा चुनाव लड़ाने का फैसला किया. शिवराज के पास पैसे नहीं थे. तब उन्होंने नारा दिया था- वन वोट, वन नोट. पहले ही विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार को 22 हजार वोटों से हराया. इस तरह वे महज 31 साल की उम्र में ही विधायक बन गए हालांकि वे एक ही साल विधायक रहे. वजह था- अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था. पार्टी ने उन्हें विदिशा से चुनावी मैदान में उतार दिया. पहला लोकसभा चुनाव भी जीतने में शिवराज सफल रहे और सबसे कम उम्र के सांसद बने.1992 में वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के के जनरल सेक्रेटरी बने. 1996 में वह दोबारा विदिशा लोकसभा सीट से जीते. 1998 और 1999 में भी लगातार लोकसभा चुनाव जीते.

साल 2000 से 2003 तक वे भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. इसी दौरान 2004 में उन्होंने पांचवीं बार विदिशा से लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की मगर इस बार वे केवल एक साल के ही सांसद रह पाए क्योंकि अगले ही साल पार्टी ने उन्हें राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया.इसके बाद तो शिवराज ने मध्यप्रदेश का सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड ही बना दिया. 

आजीवन शादी नहीं करना चाहते थे शिवराज

चलते-चलते शिवराज की शादी का किस्सा भी आपको बता देते हैं. दरअसल संघ के सदस्य होने की वजह से वे आजीवन शादी नहीं करना चाहते थे. परिवार के दबाव डालने पर भी वे इनकार करते रहे. इसी दौरान वे एक बार साधना सिंह से मिले. ये पहली नजर का प्यार था. शादी नहीं करने की कसमें खाने वाले शिवराज सिंह चौहान साधना सिंह से छिप-छिप कर मिलने लगे. खुद शिवराज ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने चिट्ठी लिख कर साधना सिंह से अपने प्रेम का इजहार किया था. इजहार और इकरार के बाद दोनों ने एक-दूसरे को खूब लव स्टोरी लिखे. बाद में घरवालों की सहमति से 6 मई 1992 को शिवराज और साधना शादी के बंधन में बंध गए. विवाह के बाद शिवराज का कद सियासत में बढ़ता चला गया. खुद शिवराज ने एक बार कहा था- मेरी सफलता के पीछे  साधना ही हैं. उन्होंने हमेशा मेरा सहयोग किया कभी जिद नहीं की. शिवराज के शब्दों में ही इस किस्से का अंत करते हैं- मेरी जिंदगी एक मिशन है, मैंने पहले से कुछ भी तय नहीं किया.