MP Election : मध्य भारत, महाकौशल, विंध्य और बुंदेलखंड अंचल की सीटों का गणित, कांग्रेस-बीजेपी कहां है भारी?

MP Election : मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और (Congress) के अपने-अपने गढ़ हैं. इन गढ़ों को जो भेद लेता है, वहीं चुनावी सिकंदर कहलता है. 2018 में कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ और ग्वालियर-चंबल का किला भेदा था. आज हम मध्यप्रदेश के विंध्य, मध्य भारत, महाकौशल और बुंदेलखंड, चार अंचलों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएंगे और देखेंगे कि कहां कौन सी पार्टी को कितनी सीटें मिलीं.

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Assembly Election 2023 : मध्यप्रदेश विधान सभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Election 2023) अब जोर पकड़ चुका है, हर जगह चुनावी शोर भी सुनाई देने लगा है. बात अगर मध्यप्रदेश की सत्ता की करें तो इसकी किस्मत पांच अंचलों के मतदाताओं (Voters) द्वारा लिखी जाती है और यहीं से सत्ता का ताला खुलता है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) और (Congress) के अपने-अपने गढ़ हैं. इन गढ़ों को जो भेद लेता है, वहीं चुनावी सिकंदर कहलता है. 2018 में कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ और ग्वालियर-चंबल का किला भेदा था. आज हम मध्यप्रदेश के विंध्य, मध्य भारत, महाकौशल और बुंदेलखंड, चार अंचलों के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएंगे और देखेंगे कि कहां कौन सी पार्टी को कितनी सीटें मिलीं?

पहले जानते हैं सत्ता दिलाने वाले अंचल कौन हैं?

मध्यप्रदेश को अगर भौगोलिक रूप बांटते हुए देखा जाए तो प्रदेश से 6 प्रमुख अंचल निकलते हैं, जो इस प्रकार हैं. निमाड़-मालवा (66 सीट), ग्वालियर-चंबल (34 सीट), मध्य भारत (36 सीट), महाकौशल (38 सीट), विंध्य (30 सीट) और बुंदेलखंड (26 सीट). इन्हीं अंचलों की सभी सीटों को मिलाकर प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों का गणित बनता है. आज हम मध्य भारत, महाकौशल, विंध्य और बुंदेलखंड के पिछले परिणामों पर नजर दौड़ाएंगे.

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मध्य भारत (36 सीट)

मध्य प्रदेश के मध्य में स्थित मध्य भारत अंचल में राजधानी भोपाल और नर्मदापुरम (पहले होशंगाबाद) संभाग आता है. इन दोनों संभाग के आठ जिलों (भोपाल, सीहोर, राजगढ़, रायसेन, विदिशा, नर्मदापुरम, हरदा और बैतूल) में से 36 विधानसभा सदस्य चुने जाते हैं.

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इस समय मध्य भारत की 36 में 24 सीटें भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पास हैं जबकि 12 सीटें कांग्रेस के हिस्से में हैं. इसमें सीएम शिवराज सिंह चौहान की बुधनी सीट भी शामिल है.

जिलेवार सीटों का आंकड़ा देखें तो इसमें भोपाल की 7 सीट (भोपाल उत्तर, भोपाल दक्षिण, भोपाल मध्य, गोविंदपुरा, हूजूर, बैरसिया, नरेला), सीहोर की 4 सीट (बुधनी, सीहोर, इच्छावर, आष्टा), राजगढ़ की 5 सीट (राजगढ़, ब्यावरा, नरसिंहगढ़, खिलचीपुर, सारंगपुर), रायसेन की 4 सीट (सांची, सिलवानी, उदयपुरा, भोजपुर), विदिशा की 5 सीट (विदिशा, शमशाबाद, कुरवाई, सिरोंज, बासोदा), नर्मदापुरम की 4 सीट (नर्मदापुरम, पिपरिया, सोहागपुर, सिवनी-मालवा) हरदा की 2 सीट (हरदा, टिमरनी) और बैतूल की 5 सीट (बैतूल, मुलताई, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही, आमला) आती है.

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महाकौशल (38 सीट)

2018 के चुनाव में इस क्षेत्र से भी भारतीय जनता पार्टी को नुकसान हुआ था. महाकौशल क्षेत्र की बात करें तो यहां से विधानसभा की 38 सीटें आती हैं. इस क्षेत्र में जबलपुर संभाग के आठ जिले (जबलपुर, छिंदवाड़ा, कटनी, सिवनी, नरसिंहपुर, मंडला, डिंडोरी और बालाघाट) शामिल हैं. इस निराशा की वजह आदिवासी वोटर बताए जा रहे हैं. 2018 में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में अधिकांश सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं.

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का गृह जिला भी इसी क्षेत्र में आता है. 2018 के चुनाव में छिंदवाड़ा की सभी 7 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी. कांग्रेस और बीजेपी दोनों के प्रदेश अध्यक्ष इसी अंचल से हैं. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ छिंदवाड़ा का प्रतिनिधित्व करते हैं तो वहीं बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा का नाता जबलपुर से है. विष्णु दत्त शर्मा के संसदीय क्षेत्र खजुराहो में महाकौशल के कटनी जिले का बड़ा हिस्सा आता है. इस लिहाज से भी दोनों दल यहां ज्यादा फोकस कर रहे हैं.

2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने जबलपुर संभाग के आठ जिलों में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 13 सीटों में से 11 पर जीत हासिल की थी. जबकि शेष दो सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी. वहीं 2018 में महाकौशल के आठ जिलों की कुल 38 विधानसभा सीटों में से 24 कांग्रेस के खाते में गई थीं, जबकि बीजेपी को सिर्फ 13 सीट पर संतोष करना पड़ा. एक सीट निर्दलीय ने जीती थी. 2013 के चुनाव में बीजेपी ने 24 और कांग्रेस ने 13 सीट जीती थीं, उस बार भी एक सीट निर्दलीय के खाते में गई थी. महाकौशल क्षेत्र में बसपा, गोंगपा, आप और जयस जैसे संगठन भी उपस्थिति दिखा चुके हैं.

जिलेवार सीटों को देखें तो जबलपुर में 8 सीट (पाटन, बरगी, जबलपुर पूर्व, जबलपुर उत्तर, जबलपुर कैंट, जबलपुर पश्चिम, पनागर, सीहोरा) हैं, यहां चार सीट पर कांग्रेस और चार पर बीजेपी का कब्जा है. छिंदवाड़ा में 7 सीट (जुनारदेव, अमरवाड़ा, चौरई, सौंसर, छिंदवाड़ा, परासिया, पांढुर्णा) हैं, कांग्रेस ने सभी सीटें जीती थीं. डिंडौरी में 2 सीट (डिंडौरी, शाहपुरा) हैं, दोनों सीटें कांग्रेस ने जीती. बालाघाट में 6 सीट (बैहर, बालाघाट, परसवाड़ा, लांजी, बारासिवनी, कटंगी) हैं, पांच सीटें कांग्रेस और बारासिवनी में निर्दलीय प्रदीप जायसवाल जीते. कटनी में 4 सीट (बड़वारा, विजयराघवगढ़, मुड़वारा, बहोरीबंद) हैं, यहां पर तीन सीटें बीजेपी और एक पर कांग्रेस का कब्जा है.  नरसिंहपुर में 4 सीट (गोटेगांव, नरसिंहपुर, तेंदूखेड़ा, गाडरवाड़ा) हैं, तीन कांग्रेस और एक पर बीजेपी का कब्जा है. सिवनी में 4 सीट (बरघाट, सिवनी, केवलारी, लखनादौन) हैं, बीजेपी और कांग्रेस ने दो-दो सीटों पर जीत दर्ज की. मंडला में 3 सीट (बिछिया, निवास, मंडला) हैं दो सीट कांग्रेस और एक भाजपा के पास है.

विंध्य (30 सीट) 

विंध्य क्षेत्र मध्य प्रदेश की सियासत में कितना मायने रखता है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस बार बीजेपी के विधायक नारायण त्रिपाठी अलग विंध्य प्रदेश की मांग को लेकर अपनी पार्टी ही बना डाली. इसे बघेलखंड के नाम से भी जाना जाता है. चुनावी आंकड़ों की बात करें तो विंध्य में 30 सीटें आती हैं. 

उत्तरप्रदेश से सटे हुए इस क्षेत्र में 9 जिले (रीवा, सतना, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर, उमरिया, मैहर और मऊगंज) जिले आते हैं. 2018 के चुनाव में इस इलाके में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. विंध्य की जनता ने 30 में से सिर्फ 6 सीटें कांग्रेस को दी थीं, जबकि बीजेपी को 24 सीटों पर विजयी बनाया था. 2013 के चुनाव परिणामों को देखें तो तब बीजेपी ने यहां 17 सीटें जीती थीं, वहीं कांग्रेस के झोली में 11 सीट गई थीं. बसपा (BSP) को भी दो सीट मिली थीं. 

विभिन्न जिलों की 30 सीटों ऐसी बनती हैं. रीवा जिले में आठ सीट हैं (रीवा, सिरमौर, सेमरिया, त्योंथर, मऊगंज, देवतालाब, मनगवां, गुढ़),  सतना में 7 सीट (सतना, चित्रकुट, रैगांव, नागौद, मैहर, अमरपाटन, रामपुर-बघेलान) हैं. सीधी में 4 सीट (सीधी, चुरहट, सिंहावल, धौहनी) हैं. सिंगरौली में 3 सीट (सिंगरौली, चितरंगी, देवसर) हैं. शहडोल में 3 सीट (ब्योहरी, जयसिंहनगर, जैतपुर) हैं. अनूपपुर में 3 सीट (अनूपपुर, कोतमा, पुष्पराजगढ़) हैं. वहीं उमरिया में  2 सीट (बांधवगढ़, मानपुर) हैं.

बुंदेलखंड (26 सीट)

इस क्षेत्र को मध्यप्रदेश में विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ बताया जाता है. यहां पानी, पलायन और रोजगार जैसी बड़ी समस्या है. उत्तर प्रदेश से लगा हुआ होने के कारण इस इलाके में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का भी दमखम देखने को मिलता है. बुंदेलखंड पैकेज, बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे और केन-बेतवा लिंक परियोजना को मंजूरी देकर मोदी सरकार ने बुंदेलखंड में BJP की मजबूती के लिए बड़ा दांव खेला है. वहीं कांग्रेस बुंदेलखंड में जातीय समीकरण साधने के साथ ही पिछड़ेपन को भी मुद्दा बना रही है.

2018 के चुनाव परिणाम के अनुसार यहां 26 में से 17 विधायक BJP के हैं, 7 कांग्रेस के हैं जबकि 2 अन्य पार्टियों के हैं. यहां से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के खाते में भी एक-एक सीट आई थी.बाद में कमलनाथ सरकार का तख्तापलट होने के बाद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के विधायक राजेश शुक्ला ने बीजेपी का दामन थाम लिया था, जबकि BSP की राम बाई ने बीजेपी खेमे में जाने से इनकार कर दिया था. 
 

मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में छह जिले आते हैं. इसमें सागर, दमोह, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना और निवाड़ी शामिल हैं. यहां की 26 सीटों में से 6 अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित हैं. बुंदेलखंड को प्रदेश का पिछड़ा इलाका माना जाता है. यहां कुपोषण का आंकड़ा ज्यादा है. पानी की कमी के कारण खेती का भी बुरा हाल है. बेरोजगारी के कारण पलायन भी यहां का बड़ा मुद्दा है.

पिछले चुनावों के परिणाम को देखें तो भाजपा ने 2003 में 20 सीटें जीतीं, उसके बाद 2008 में 14, 2013 में 20 और 2018 में 18 सीटें (2018 चुनावों में 16, जबकि दो सीटें बाद में उपचुनाव में जुड़ी) अपने नाम की है. वहीं कांग्रेस ने 2003 में केवल दो सीटें जीतीं जबकि इसकी संख्या 2008 में 8, 2013 में 6 और 2018 में 7 (2018 के चुनावों में आठ और उसके बाद उपचुनावों में एक निर्वाचन क्षेत्र की हार) हो गई.

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