Madhya Pradesh Assembly Elections: मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) द्वारा तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात लोकसभा सांसदों को मैदान में उतारा गया है. ऐसे में सवाल है कि क्या केंद्र की राजनीति के चेहरे राज्य की सियासत में भी असर डालेंगे और सत्ता विरोधी भावनाओं को नियंत्रित कर भाजपा को दो दशकों में पांचवी बार प्रदेश की सत्ता में पहुंचायेंगे ? विधानसभा चुनाव के लिए तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत सात लोकसभा सांसदों को मैदान में उतारने के भाजपा के फैसले को प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में अपेक्षाकृत ज्यादा असर वाले चेहरों पर भरोसा कर खुद को मजबूत करने के प्रयास की तरह देखा जा रहा है. विधानसभा चुनाव लड़ रहे तीन केंद्रीय मंत्री- नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद सिंह पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते (Narendra Singh Tomar, Prahlad Singh Patel and Faggan Singh Kulaste)मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदारों के रूप में भी देखे जा रहे हैं. सत्तारूढ़ दल ने मौजूदा कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला के खिलाफ इंदौर-1 विधानसभा सीट से भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) को मैदान में उतारा है और इन्हें भी मुख्यमंत्री पद का संभावित चेहरा माना जा रहा है.
"बड़े नामों को उतारना बीजेपी की घबराहट"
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई कहते हैं कि 230 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव में तीन केंद्रीय मंत्रियों के साथ चार लोकसभा सांसदों को मैदान में उतारना कागज पर भले ही भव्य लगे,लेकिन यह सत्तारूढ़ दल की चिंता और घबराहट दर्शाता है. किदवई के अनुसार, साफ लगता है कि भाजपा की जिला इकाइयों ने तोमर, विजयवर्गीय, पटेल और सांसदों के नामों की सिफारिश टिकटों के लिए नहीं की थी. उन्होंने कहा कि इन नेताओं को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में पार्टी को मजबूती देने के लिए भाजपा संसदीय बोर्ड द्वारा चुना गया है.किदवई पूछते हैं कि -क्या कोई मतदाता सिर्फ इसलिए अपनी प्राथमिकता बदल देगा क्योंकि मौजूदा विधायक या स्थानीय दावेदार को नजरअंदाज कर उसकी जगह लोकसभा सदस्य को टिकट दिया गया है ? इस रणनीति में ‘संदेश अधिक लेकिन सार कम' नजर आता है.
ग्वालियर-चंबल में तोमर को उतारने के मायने
पूर्व राज्य भाजपा अध्यक्ष और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना से मौजूदा लोकसभा सांसद है.वह दिमनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट पर कांग्रेस ने एक बार फिर मौजूदा विधायक रविंद्र सिंह तोमर (Ravindra Singh Tomar) को टिकट दिया है. बता दें कि साल 1980 के बाद से दिमनी विधानसभा सीट पर हुए 10 चुनावों में से छह में भाजपा जीती है.हालांकि,पार्टी मुरैना जिले की सीट पर एक उपचुनाव सहित पिछले सभी तीन चुनाव हार गई थी.
उन्होंने कहा ‘‘यह फीडबैक भाजपा को मिल गया होगा इसलिए उसने दोहरी रणनीति अपनाई.एक तो-कुछ उम्मीदवारों को बदल दिया गया और दूसरा,इस क्षेत्र से नरेंद्र सिंह तोमर जैसे दिग्गज को मैदान में उतारा गया.'' भुवनेश के मुताबिक ऐसा करके भाजपा अपने चुनावी लाभ को अधिकतम करने की कोशिश कर रही है. उन्होंने कहा ‘‘माना जाता है कि मतदाताओं के बीच यह धारणा बनाने के लिए एक केंद्रीय मंत्री को मैदान में उतारा गया है कि वह मुख्यमंत्री बन सकते हैं. हालांकि, अंतिम परिणाम भाजपा की प्रमुख महिला कल्याण योजना ‘लाडली बहना'से पैदा हुए सद्भावना को वोटों में परिवर्तित करने की क्षमता पर भी निर्भर करेगा.''
महाकौशल में पटेल-कुलस्ते के चेहरे पर दांव
महाकौशल क्षेत्र से केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल और फग्गन कुलस्ते सहित चार मौजूदा सांसदों को टिकट दिया गया है. भाजपा ने जबलपुर से वर्तमान सांसद राकेश सिंह (Rakesh Singh) को जबलपुर-पश्चिम विधानसभा सीट से और होशंगाबाद से वर्तमान सांसद उदय प्रताप सिंह को गाडरवारा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल को छोड़कर,चुनाव मैदान में उतरे सभी मौजूदा भाजपा सांसदों को उनकी संबंधित लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में से एक से टिकट दिया गया है. दमोह से मौजूदा लोकसभा सांसद प्रह्लाद पटेल नरसिंहपुर से मैदान में हैं, जो होशंगाबाद संसदीय सीट के अंतर्गत आता है.नरसिंहपुर विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व वर्तमान में प्रह्लाद पटेल के छोटे भाई जालम सिंह पटेल करते हैं. कांग्रेस ने केंद्रीय मंत्री के खिलाफ लाखन सिंह पटेल (Lakhan Singh Patel) को मैदान में उतारा है, जिन्हें 2018 में जालम सिंह पटेल ने हराया था.
मंडला (एसटी) संसदीय सीट से मौजूदा लोकसभा सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते निवास विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं जो उनके संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आती है. केंद्रीय मंत्री ने 1990 में कांग्रेस से निवास सीट छीनी थी, लेकिन 1993 में अगले विधानसभा चुनाव में वह हार गए. सन 2003 के बाद से फग्गन कुलस्ते के भाई राम प्यारे कुलस्ते ने तीन बार यह सीट जीती, लेकिन 2018 में वह हार गए. अब,केंद्रीय मंत्री का मुकाबला कांग्रेस के उम्मीदवार चैन सिंह वरखेड़े से है.
भगवा पार्टी पहली बार जबलपुर (पश्चिम)से तब जीती जब 1990 में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की सास जयश्री बनर्जी ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली. यह सीट 2013 तक भाजपा के पास रही.2013 में इस सीट से कांग्रेस के तरुण भनोट जीते थे.जबलपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से चार पर भाजपा और चार पर कांग्रेस का कब्जा है.
होशंगाबाद में उदय प्रताप नाव पार लगाएंगे?
भाजपा ने होशंगाबाद (हाल ही में इसका नाम बदलकर नर्मदापुरम किया गया है) से मौजूदा लोकसभा सांसद उदय प्रताप सिंह (Uday Pratap Singh) को गाडरवारा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है, जो उनके प्रतिनिधित्व वाले संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विधानसभा क्षेत्रों में से एक है. सन 2009 में कांग्रेस के टिकट पर चुने गए तीन बार के सांसद उदय प्रताप सिंह 2014 के संसदीय चुनावों से ठीक पहले भाजपा में शामिल हो गए और भगवा पार्टी के लिए होशंगाबाद सीट जीती.उन्होंने 2019 में यह लोकसभा सीट बरकरार रखी। कांग्रेस ने गाडरवारा विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक सुनीता पटेल को मैदान में उतारा है.
उनके अनुसार, भाजपा का मानना है कि ये उम्मीदवार क्षेत्र में लहर पैदा कर सकते हैं. महाकौशल की 38 सीटों में से 2018 में कांग्रेस ने 24, भाजपा ने 13 सीटें जीती थीं, जबकि एक सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी.
विंध्य में बीजेपी का रिकॉर्ड रहा है बढ़िया
सत्तारूढ़ पार्टी विंध्य क्षेत्र में भी खुद को मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जहां उसने दो लोकसभा सांसदों -सतना से चार बार के सांसद गणेश सिंह और सीधी से दो बार की सांसद रीति पाठक (Riti Pathak),को मैदान में उतारा है. 2004 में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ने वाले गणेश सिंह सतना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जिसे भाजपा 2018 में हार गई थी. रीति पाठक अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. उनको सीधी विधानसभा सीट पर एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि यहां के मौजूदा भाजपा विधायक केदारनाथ शुक्ला ने घोषणा की है कि वह एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे. सीधी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्रों में से 2018 में भाजपा ने सात और कांग्रेस ने एक सीट जीती थी. 2018 में विंध्य की 30 सीटों में से भाजपा को 24 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं.