आगामी नवंबर में होने वाले छत्तीसगढ़ राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों के मुद्दे क्या होंगे? कौन सा मुद्दा कितना प्रभावी रहेगा जो किसी एक को 46 या उसके पार पहुंचा देगा ? फिलहाल यह यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब चुनाव में मतदाता ही देंगे. दरअसल 90 सीटों की विधानसभा में सरकार बनाने के लिए न्यूनतम 46 सीटें चाहिए.कांग्रेस ने पिछले चुनाव में 68 सीटें जीतीं थीं जबकि भाजपा पंद्रह तक सिमट गई थी. 23 के चुनाव के लिए दोनों अपने-अपने एजेंडे के साथ पुनःआमने सामने है. जहां तक सत्तारूढ़ कांग्रेस का सवाल है, निश्चिततः वह विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी. भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस सरकार के कथित कुशासन व भ्रष्टाचार के अलावा बस्तर में धर्मांतरण को अपना ट्रम्प कार्ड बनाया है.
वैसे ही भाजपा ने इन पांच वर्षों के दौरान विपक्ष की भूमिका में रहते हुए जनता की मूलभूत समस्याओं को जानने-समझने तथा उनके समाधान के लिए ऐसे कौन से उपक्रम किए , ऐसे कितने आंदोलन किए जिससे जनता को महसूस हुआ हो कि यह पार्टी उनकी हितैषी है, उनके लिए लड़ती है ? सवाल यह भी कि भाजपा ने राज्य सरकार के खिलाफ विभिन्न सरकारी योजनाओं में करोड़ों के भ्रष्टाचार के जो आरोप लगाएं हैं, क्या वे मतदाताओं को प्रभावित कर रहे हैं ? सरकार के कुछ उच्च अफसरों व नेताओं पर लगातार पड़ रहे ईडी व आईटी के छापों को लोग किस नज़रिए से देख रहे हैं और इसका चुनाव पर कितना असर पड़ सकता है ? ऐसे ही कुछ सवाल हैं जिनका जवाब राज्य के करीब ढाई करोड़ मतदाताओं के पास है. मतदान के जरिए वे अपना मत व्यक्त करेंगे. तब स्पष्ट हो जाएगा कि उनकी सोच ने किसे जिताया, किसे हराया.
लिहाज़ा प्रदेश के 37 लाख से अधिक किसान परिवारों ने इस पर विश्वास जताया और अपने बूते पर कांग्रेस को सत्ता के सिंहासन पर पहुंचा दिया. सरकार के बनते ही कांग्रेस ने पहला काम किसानों की कर्जमाफी, समर्थन मूल्य से अधिक मूल्य पर धान खरीदी व बिजली बिल आधा जैसे कुछ वायदे तत्काल पूर्ण कर दिए. और इसके बाद तो सरकार का पूरा ध्यान घोषित वायदों के मुताबिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उन्नत करने व रोजगार के निर्माण पर केंद्रित हो गया. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए दर्जनों योजनाएं बनाई गईं जिनमें से चंद को देशव्यापी ख्याति मिली. लेकिन इन योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रशासनिक स्तर पर घनघोर लापरवाही के कारण इनका लाभ जिस अनुपात में आम लोगों को मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला है. फिर भी यह जरूर है कि सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों से छत्तीसगढ़ में कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई मिली है. किसान खुश हैं. लिहाज़ा वर्ष 23 में पुन: जीत दर्ज कराने कांग्रेस के पास यही मूल मंत्र है.
इसलिए इस बार भी कांग्रेस सरकार अपने इसी हथियार को नये सिरे से मांजने का प्रयास कर रही है. संकेतों से यह जाहिर भी है. किसानों से धान खरीदी की मात्रा बढा़ दी गई है तथा समर्थन मूल्य के भी बढ़ने के आसार है. 2023 के कांग्रेस के घोषणा पत्र में इनके अलावा और क्या वायदे किए जाएंगे यह तो बाद में स्पष्ट होगा लेकिन सरकार की इस बात के लिए तीव्र आलोचना होती रही है कि उसने गांवों में खुशहाली लाने के चक्कर में शहरों की अनदेखी की.
वैसे कहा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ के शहरों की आबोहवा कांग्रेस के प्रति वैसी खुशगवार नहीं है जैसे कि 2018 के चुनाव में थी.
इधर मुद्दों को भुनाने की कोशिश में भाजपा ने एक साल के भीतर एक तरह से चमत्कार किया है. 2018 की भीषण पराजय के बाद निर्जीव पड़े प्रदेश संगठन को केंद्रीय नेतृत्व ने कांग्रेस के मुकाबले में खड़ा कर दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह , भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा , केंद्र सरकार के अन्य मंत्रीगण, राष्ट्रीय संगठन के अन्य प्रमुख पदाधिकारी व आरएसएस के प्रचारक एक प्रकार से छत्तीसगढ़ को मथ रहे हैं. उनके तेज दौरे, सभाएं , परिवर्तन यात्राएं व कार्यकर्ताओं से निरंतर संवाद इस बात का संकेत है कि पार्टी कांग्रेस को प्रत्येक मोर्चे पर घेरना चाहती है. उसने अभी कोई चुनावी वायदा नहीं किया है, कोई प्रलोभन नहीं दिया है. जनता की मांग के आधार पर संकल्प पत्र तैयार हो रहा है इसलिए फिलहाल कांग्रेस सरकार का कथित कुशासन व सांगठनिक भ्रष्टाचार ही उसका वह एजेंडा है जिसके जरिए उसका मकसद सरकार के खिलाफ माहौल खड़ा करना है.
क्या इस तरह का कोई माहौल बन पाया है ? कहना कठिन है लेकिन जिन मुद्दों के साथ भाजपा जनता के बीच में है , वे शहरी इलाकों में जरूर असर दिखा सकते है किंतु गांव व किसान बहुत संभव है इनसे अप्रभावित रहे.