Samvidhan Hatya Divas 2025: वह अपने देश के लिए कठिन समय था. बहुत कठिन. 1971 में 'गरीबी हटाओ' के नारे के साथ इंदिरा गांधी चुनकर सत्ता में आई थी. किंतु देश दयनीय स्थिति में था. भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ था. उन दिनों भारत एक गरीब देश समझा जाता था. 1975 में हमारा आर्थिक विकास दर मात्र 1.2% था. विश्व का, जनसंख्या के मामले में दूसरा देश होने के बाद भी, अर्थव्यवस्था में हम 15 वें क्रमांक पर थे. हमारे पास विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 1.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स था (आज हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 640 बिलियन अमेरिकी डॉलर हैं). महंगाई चरम पर थी. मुद्रास्फीति का दर 20% से भी ज्यादा था. देश की 50% से ज्यादा जनता गरीबी रेखा के नीचे थी. बेरोजगारी जबरदस्त थी. उद्योग विकास दर नहीं के बराबर था.
एक दो राज्यों का अपवाद छोड़, कांग्रेस की सत्ता पूरे देश पर थी. उनके इस राज में भ्रष्टाचार अपने चरम पर था.
1975 का शीतकालीन सत्र केंद्रित रहा, कांग्रेस के सांसद तुलमोहन राम पर. तुलमोहन राम ने आयात - निर्यात के लाइसेंस को लेकर एक बहुत बड़ा घोटाला किया था, जो सामने आया. यह तुलमोहन राम, रेलवे मंत्री ललित नारायण मिश्रा के खास चेले थे. कहा जाता था कि ललित नारायण मिश्रा, कांग्रेस के 'ऐसे' सारे आर्थिक व्यवहार देखते थे. यह तुलमोहन राम प्रकरण सामने आने के तुरंत बाद, 3 जनवरी 1975 को, केंद्रीय मंत्री ललित नारायण मिश्रा की हत्या हुई थी.
कुल मिलाकर, भारत पर राज करने वाली कांग्रेस, ऐसे भ्रष्टाचार के एक से बढ़कर एक उदाहरण प्रस्तुत कर रही थी. स्वाभाविक था, कि इसके विरोध में लोगों का आक्रोश बढ़ना. सरकार आर्थिक व्यवस्था पटरी पर लाने के लिए कोई ठोस कदम उठाते हुए दिख नहीं रही थी. सरकार के विरोध में आंदोलनों और हड़तालों का दौर चल रहा था.
आखिरकार इंदिरा गांधी को झुकना पड़ा. गुजरात विधानसभा बर्खास्त हुई. नए चुनाव की घोषणा हुई. जनसंघ, संगठन कांग्रेस, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जैसे दल एक आकर, उन्होंने 'जनता मोर्चा' का गठन किया. इस जनता मोर्चा के नेतृत्व में विपक्ष ने चुनाव लड़ा.
और इतिहास बन गया..!
पहली बार कांग्रेस के विरोध में, विपक्षी दल के विधायक बड़ी संख्या में चुनकर आए. 182 सदस्यों की विधानसभा में जनता मोर्चा के 86 विधायक जीतककर आए. उन्हें आठ निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिला.
और जून 1975 में, पहली बार गुजरात में बाबूभाई पटेल के नेतृत्व में जनता मोर्चा की सरकार बनी..!
इंदिरा गांधी के लिए यह जबरदस्त झटका था. गुजरात जैसा ही आंदोलन बिहार में भी चल रहा था. छात्रों की मांग पर जयप्रकाश नारायण जी ने इस आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया. कांग्रेस की भ्रष्ट और अकर्मण्य व्यवस्था के विरोध में, नवनिर्माण आंदोलन देश में फैलने लगा था. जयप्रकाश नारायण जी को लोगों ने 'लोकनायक' की उपाधि दी थी.
ऐसे में आया 12 जून
रायबरेली संसदीय क्षेत्र में भ्रष्ट तरीके अपनाने के आरोप में, प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार राज नारायण ने इंदिरा गांधी पर कोर्ट में मुकदमा दायर किया था. 12 जून को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जगमोहन सिन्हा ने इस मुकदमे में अपना ऐतिहासिक निर्णय सुनाया.
यह निर्णय इंदिरा गांधी के विरोध में था.
न्यायमूर्ति सिन्हा ने भ्रष्टाचार के आरोप में धारा 123 (7) के तहत इंदिरा गांधी का निर्वाचन रद्द किया (शून्य किया) और उन्हें अगले 6 वर्षों तक चुनाव लड़ने हेतु अपात्र (अयोग्य) घोषित किया.
यह निर्णय सभी अर्थों में अभूतपूर्व था. ऐतिहासिक था. स्वतंत्रता के बाद, पहली बार पद पर रहे प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचार के कारण चुनाव लड़ने के लिए प्रतिबंधित किया गया था.
किंतु प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने का न तो इंदिरा गांधी का मन था, और नहीं इच्छा. संजय गांधी, इंदिरा गांधी के त्यागपत्र के पक्ष में कतई नहीं थे.
प्रधानमंत्री निवास में मानसिकता बन गई थी, कि इंदिरा जी ने त्यागपत्र नहीं देना है. वहां की सारी गतिविधियों का प्रबंधन आर के धवन के पास आ गया था. यह राजकुमार धवन, मंत्रालय में क्लर्क थे. किंतु बाद में वें इंदिरा जी के विश्वासपात्र बने और अधिकृत रूप से इंदिरा गांधी के सचिव. उनके साथ हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसीलाल और कांग्रेस के अध्यक्ष देवकांत बरुआ भी थे. यह सभी संजय गांधी और इंदिरा गांधी के खास विश्वासपात्र सिपाही थे. इन सब की राय यही थी इंदिरा गांधी ने त्यागपत्र देना दूर की बात इन विपक्षी दलों के विरोध में कोई सख्त कदम उठाने की आवश्यकता हैं.
प्रधिनमंत्री निवास, 1 सफदरजंग रोड से पूरे देश में संदेसे गए की बड़ी कार्यवाही के लिए तैयार रहना हैं. गुजरात और तमिलनाडु को छोड़कर लगभग सभी मुख्यमंत्री कांग्रेस के थे. उनसे कहा गया कि जिनको गिरफ्तार करना हैं, उनकी सूची तैयार की जाए.
इधर कांग्रेस, विपक्षी दलों को कुचलने की तैयारी कर रही थी, तो वहां कम्यूनिस्टों को छोड, लगभग सभी विपक्षी दल, जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व मे, इंदिरा गांधी के त्यागपत्र के लिये, व्यापक आंदोलन की योजना बना रहे थे..!
प्रशांत पोळ, राष्ट्रीय चिन्तक, विचारक, लेखक- व्यवसाय से अभियंता (आईटी व टेलिकॉम), तकनिकी एवं प्रबंधन सलाहकार हैं.
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