This Article is From Jan 23, 2024

राम विवाद नहीं, समाधान हैं

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Sanjeev Chaudhary

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि राम आग नहीं ऊर्जा हैं, राम विवाद नहीं समाधान हैं ,राम विजय नहीं विनय हैं ,राम सिर्फ हमारे नहीं सबके हैं...अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये शब्द कहे थे.इन शब्दों के बहुत गहरे मायने हैं. पूरे देश में राम उत्सव मनाया गया, सनातनी धर्माविलंबियों ने अपने-अपने तरीके से उत्सव किये, किसी ने आतिशबाजी छोड़ी, किसी ने अपने घरों में दीप जलाए , कहीं सामूहिक ,मोहल्ला और समितियों ने आयोजन किये ,भंडारे हुए, मूर्तियां स्थापित की गई ,जुलूस निकाले गए. हर जगह हजारों सनातनियों की भीड़ एकत्रित हुई लेकिन कहीं भी अल्पसंख्यक समुदाय को ना तो उत्तेजित किया गया,ना ही उनके सम्मान पर सवाल उठाया गया.  पूरे देश में एक भी ऐसी कोई घटना नहीं हुई जो यह साबित करें कि राम विजय के प्रतीक थे विनय के नहीं.

सनातन धर्माविलंबियों ने पूरे देश में अपने-अपने तरीकों से उत्सव मनाया.बहुत जगह अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के बंधु भी शामिल हुए लेकिन जहां मुस्लिम शामिल नहीं हुए वहां भी किसी भी तरह का कोई भी ऐसा कृत्य नहीं किया गया, जिससे तनाव हो या यह साबित हो सके कि हम विजय उत्सव मना रहे हैं विनय उत्सव नहीं.

 किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय के प्रार्थनाघरों के सामने कोई उत्तेजना पूर्ण नारे नहीं लगाए गए, जबरन आयोजन नहीं किए गए ताकि उत्सव को उत्सव की तरह रहना दिया जाए, उत्सव को अति उत्साह में उत्तेजना की तरफ ना बढ़ा दिया जाए. यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि भारत ने अब तक जितने भी अधिनायकवाद देखे, उनकी ही तरह या उनसे कहीं अधिक प्रधानमंत्री मोदी के दिए गए संदेश को लोगों ने शब्दशः निभा दिया. पीएम मोदी की इस अपील कि राम आग नहीं,राम ऊर्जा हैं को लोगों ने आत्मसात किया. 90 के दशक के बाद से जयश्रीराम के उद्घोष को जहां आक्रमण का प्रतीक माना जाने लगा था, जिस उद्घोष को सांप्रदायिक माना जाने लगा, 22 जनवरी के लोकोत्सव ने जय श्रीराम के उद्घोष के मर्म को यथार्थ रूप में पेश कर दिया. यह भी सिद्ध कर दिया कि श्रीराम अखिल ब्रह्मांड के अधिनायक हैं, वे विवाद नहीं बल्कि समाधान हैं. 

 यह देश के 100 करोड़़ सनातनियों की भावनाएं थी कि यह हमारे लिए उत्सव, गर्व उत्त्साह का दिन है, जैसे दीपावली को हम उत्सव के रूप में शांति से उत्साह के साथ मनाते हैं, इसी तरह 22 जनवरी को भी बहुत शांति और उत्साह के साथ उत्सव  मनाया गया,  होने को तो कुछ भी हो सकता था, दोनों सम्प्रदायों में से किसी की भी नासमझी हिंसा या दंगे की आग भड़का सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ यह देश का सौभाग्य है. इस महाआयोजन की सफलता के लिए बहुसंख्यक समाज के साथ-साथ निश्चित रूप से अल्पसंख्यक समुदाय को भी इस बात के लिए श्रेय दिया जाना चाहिए, कि उन्होंने श्रीराम के बताए गए धैर्य और मर्यादा के संदेश को अंगीकार किया. 

देश में कई जगह से जैन, बौद्ध, और सिख समुदाय के द्वारा इस उत्सव को अंगीकार किया गया, यही नहीं अपनी सहभागिता देकर इसे सामूहिक रूप से मनाया गया ,यह एक सामाजिक समरसता की पहल है, जिसे राम उत्सव ने साकार किया है. यदि देश में इसी तरह मिलजुल कर उत्सव मनाए जाते रहें तो देश में सांप्रदायिक तनाव दूर की बात हो जाएगी.

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संजीव 40 सालों से पत्रकारिता कर रहे हैं, इसमें भी 24 सालों से NDTV से जुड़े हैं. उन्हें मध्य प्रदेश सरकार का अमृता देवी बिश्नोई अवार्ड प्राप्त है. 
  डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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