महापरिनिर्वाण दिवस: डॉ बीआर अम्बेडकर और संविधान

विज्ञापन
Sachin Kumar Jain, Ajay Kumar Patel

संविधान के साथ डॉ बीआर अम्बेडकर (Dr Bhimrao Ramji Ambedkar) का नाम इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि दोनों को एक दूसरे के बिना अधूरा कहा जा सकता है. उन्हें भारतीय संविधान का निर्माता भी कहा जाता है. अक्सर यह सुनने में आता है कि भारत के संविधान का निर्माण डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने किया. परंतु क्या यह पूरा सच है? शायद नहीं. यह सच है कि संविधान निर्माण में डॉ. अम्बेडकर की महत्वपूर्ण भूमिका थी लेकिन यह तथ्य पूरी तरह सही नहीं है कि उन्होंने अकेले ही भारतीय संविधान तैयार किया था. डॉ. अम्बेडकर ने हमारे संविधान में न्याय, बंधुता और सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र जैसे भाव शामिल करने में एक निर्णायक भूमिका निभाई लेकिन वह संविधान के अकेले निर्माता या लेखक नहीं थे.

भारत का संविधान एक साझा पहल का नतीजा है. भारत की संविधान सभा ने 29 अगस्त 1947 को मसौदा (प्रारूप) समिति के गठन का निर्णय लिया. इस समिति की भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि “परिषद (संविधान सभा) में किए गए निर्णयों को प्रभाव देने के लिए वैधानिक परामर्शदाता (श्री बी. एन. राऊ) द्वारा तैयार किए गए भारत के विधान (संविधान) के मूल विषय की जांच करना, उन सभी विषयों के जो उसके लिए सहायक हैं या जिनकी ऐसे विधान में व्यवस्था करनी है और कमेटी द्वारा पुनरावलोकन किए हुए विधान के मसौदे के मूल रूप को परिषद के समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत करना.”

डॉ. अम्बेडकर ने संविधान सभा में इस विषय में एक महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया था. उनके इस वक्तव्य के माध्यम से भी तथ्यों को आंका जा सकता है. उन्होंने 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में संविधान का अंतिम मसौदा प्रस्तुत करते हुए कहा था:

Advertisement

“जो श्रेय मुझे दिया जाता है, वास्तव में मैं उसका अधिकारी नहीं हूं. उसके अधिकारी श्री बी. एन. राऊ हैं, जो इस संविधान के संविधानिक परामर्शदाता हैं और जिन्होंने मसौदा समिति के विचारार्थ संविधान का मोटे रूप में मसौदा बनाया. कुछ श्रेय मसौदा समिति के सदस्यों को भी मिलना चाहिए, जिन्होंने 141 दिन तक बैठकें कीं. उनके नये सूत्र खोजने के कौशल के बिना तथा विभिन्न दृष्टिकोणों के प्रति सहनशील तथा विचारपूर्ण सामर्थ्य के बिना संविधान बनाने का कार्य इतनी सफलता के साथ समाप्त न हो पाता. सबसे अधिक श्रेय इस संविधान के मुख्य मसौदा लेखक श्री एस. एन. मुखर्जी को है, बहुत ही जटिल प्रस्थापनाओं को सरल से सरल तथा स्पष्ट से स्पष्ट वैध भाषा में रखने की उनकी योग्यता की बराबरी कठिनाई से की जा सकती है. इस सभा के लिए वे एक देन स्वरूप थे. उनकी सहायता न मिलती तो इस संविधान को अंतिम स्वरूप देने में कई और वर्ष लगते. यदि यह संविधान सभा विभिन्न विचार वाले व्यक्तियों का एक समुदाय मात्र होती, एक उखड़े हुए फर्श के समान होती, जिसमें हर व्यक्ति या हर समुदाय अपने को विधिवेत्ता समझता तो कार्य बहुत कठिन हो जाता. तब यहां सिवाय उपद्रव के कुछ नहीं होता. सभा में कांग्रेस पक्ष की उपस्थिति ने इस उपद्रव की संभावना को पूरी तरह से मिटा दिया. इसके कारण कार्यवाहियों में व्यवस्था और अनुशासन दोनों बने रहे. कांग्रेस पक्ष के अनुशासन के कारण ही मसौदा समिति यह निश्चित जानकर कि प्रत्येक अनुच्छेद और प्रत्येक संशोधन का क्या भाग्य होगा, इस संविधान का संचालन कर सकी. अतः इस सभा में संविधान के मसौदे के शांत संचालन के लिए कांग्रेस पक्ष ही श्रेय का अधिकारी है. यदि इस पक्ष के अनुशासन को सब लोग मान लेते तो संविधान सभा की कार्यवाही बड़ी नीरस हो जाता. यदि पक्ष के अनुशासन का कठोरता से पालन किया जाता तो यह सभा “जी हुज़ुरों” की सभा बन जाती. सौभाग्यवश कुछ द्रोही थे. श्री कामत, डॉ. पी. एस. देशमुख, श्री सिधावा, प्रो. सक्सेना और पंडित ठाकुर दास भार्गव थे. इनके साथ-साथ मुझे प्रो. के. टी. शाह और पंडित हृदयनाथ कुंजरू का भी उल्लेख करना चाहिए. जो प्रश्न उन्होंने उठाये, वे बड़े सिद्धान्तपूर्ण थे. मैं उनका कृतज्ञ हूं. यदि वे न होते तो मुझे वह अवसर नहीं मिलता, जो मुझे इस संविधान में निहित सिद्धांतों की व्याख्या करने के लिए मिला और जो इस संविधान के पारित करने के यंत्रवत कार्य की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण था.”

Advertisement
डॉ. अम्बेडकर संविधान सभा की उस समिति के सभापति थे, जिसने भारतीय संविधान का दूसरा प्रारूप तैयार किया. संविधान का पहला प्रारूप संविधानिक परामर्शदाता बी. एन. राऊ द्वारा तैयार किया गया था. डॉ. अम्बेडकर ने संवैधानिक प्रावधानों और शब्दों को अर्थ देने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

डॉ. अम्बेडकर ने वर्ष 1945 में अनुसूचित जाति फेडरेशन (जिसकी स्थापना 1940 के दशक के आरंभ में उन्होंने स्वयं की थी) के लिए स्टेट्स एंड माइनॉरिटीज़ (राज्य और अल्पसंख्यक/अल्पमत) नाम से एक दस्तावेज तैयार किया था. संविधान के रूप में ही लिखे गए इस दस्तावेज का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति समुदाय के लिए सुरक्षा तंत्र के विकल्प प्रस्तुत करना था.

Advertisement

इसकी प्रस्तावित उद्देशिका में उन्होंने लिखा था – “हम ब्रिटिश शासित भारत के प्रांतीय और केंद्र प्रशासित क्षेत्रों और भारतीय राज्यों के लोग” प्रांतीय और केंद्र प्रशासित क्षेत्रों को मिलाकर एक व्यवस्थित संघ बनाने के मकसद से व्यवस्थित विधायिका, कार्यपालिका और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए संयुक्त राज्य भारत के रूप में निम्न लक्ष्यों से एकजुट होते हैं –

  1. अपने और अपनी भावी पीढ़ी के लिए संयुक्त राज्य भारत में स्व-शासन और सुशासन की स्थापना.
  2. जीवन के हर पक्ष में जीवन, स्वतंत्रता, खुशहाली, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता की सुनिश्चितता.
  3. समाज के वंचित और उपेक्षित वर्गों को बेहतर अवसर उपलब्ध करवाकर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक असमानता को ख़त्म करना.
  4. हर व्यक्ति को भय और दबाव से स्वतंत्रता मिलना.
  5. देश की भीतरी सुरक्षा और बाहरी आक्रमण/घुसपैठ से सुरक्षा के लिए संयुक्त राज्य भारत का संविधान बनाया जाना.
उन्होंने संविधान में लिखा कि नागरिकों के मौलिक अधिकार के रूप में संयुक्त राज्य भारत में जन्मे व्यक्ति की पदवी, जन्म, व्यक्ति, परिवार, धर्म और परंपरा आधारित विशेषाधिकार और वंचना को खत्म किया जाता है. राज्य ऐसा कोई क़ानून नहीं बनायेगा, जो नागरिक के अधिकार और प्रतिरक्षा को सीमित करता हो और किसी उचित क़ानून या क़ानून की प्रक्रिया के बिना जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार से नागरिक को वंचित करता हो. हर व्यक्ति क़ानून के समक्ष समान होगा. सभी नागरिक क़ानून के सामने समान हैं, और ऐसा कोई भी कानून, रीति-रिवाज़, परम्परा, आदेश, जिनके तहत किसी दंड या सज़ा का प्रावधान है, इस संविधान के लागू होते ही निष्प्रभावी हो जायेंगे. किसी भी तरह का और किसी भी स्थान पर भेदभाव अपराध होगा. बंधुआ और जबरिया मजदूरी करवाना अपराध होगा.

इसके अलावा प्रेस, मतदान, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धर्म परिवर्तन की स्वतंत्रता को शामिल किया और लिखा कि राज्य किसी धर्म को राज्य धर्म (राज्य के धर्म) के रूप में मान्यता नहीं देगा. असमानता के व्यवहार, सामाजिक-आर्थिक शोषण, भेदभाव, छुआछूत से मुक्ति के लिए प्रावधान किया.

स्वतंत्र भारत को लेकर अम्बेडकर की चिंताएं

सच तो यह भी है कि डॉ. अम्बेडकर के मन में स्वतंत्र भारत के हालात को लेकर भी कुछ चिंताएं थीं. उनका मानना था कि भारत को पूर्ण स्वराज्य मिल जाने के बाद भी समाज के भीतर छुआछूत, भेदभाव, शोषण और असमानता बनी रहेगी क्योंकि स्वतंत्र होने के बाद भारत की शासन व्यवस्था पर उन लोगों और समूहों का आधिपत्य होगा, जो जातिवादी, वर्ण और लैंगिक भेद आधारित साम्प्रदायिक स्वभाव रखते हैं. ऐसा नहीं है कि वे भारत की स्वतंत्रता के खिलाफ थे बल्कि उन्हें ब्रिटिश शासन से मुक्ति मिलने के बाद के भारत के भीतर बनने वाले हालातों का अंदाजा था. उन्हें लगता था कि ब्रिटिश सरकार के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक बदलाव लाना संभव होगा.

आज़ादी के इतने वर्षों के बाद देश के सामाजिक-राजनैतिक हालात देखकर लगता है कि उनकी चिंताएं और आशंकाएं गैरवाजिब नहीं थीं. दुर्भाग्यवश हम उन्हें गलत साबित नहीं कर सके और इतने वर्ष बाद भी देश में छुआछूत, शोषण और असमानता जैसी समस्याएं बरकरार हैं. अगर हम इन समस्याओं को दूर करके बंधुता और न्याय के मार्ग का पालन करने वाला देश बना सके तो यही डॉ. अम्बेडकर के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

सचिन कुमार जैन, संविधान शोधार्थी एवं अशोका फेलोशिप प्राप्त सामाजिक कार्यकर्ता है. ‘संविधान की विकास गाथा', ‘संविधान और हम' सहित 65 से अधिक पुस्तक-पुस्तिकाओं का लेखन कर चुके हैं.

इस लेख के लिए संविधान संवाद टीम का विशेष आभार.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.