बृजमोहन के लिए अंगूर फिलहाल खट्टे

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Diwakar Muktibodh

जैसी कि संभावना थी, रायपुर लोकसभा से नवनिर्वाचित सांसद बृजमोहन अग्रवाल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया. बृजमोहन अग्रवाल का राजनीतिक ट्रेक रिकॉर्ड भले ही उम्दा व चमकदार क्यों न हो, वे कई कारणों से चयन की उस प्रक्रिया में फिट नहीं बैठते जिसमें व्यक्तिगत पसंदगी-नापसंदगी भी शामिल है अन्यथा आठ बार के विधायक, प्रदेश सरकार के वरिष्ठ मंत्री व लोकसभा चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीतने वाले बृजमोहन को  72 मंत्रियों की जंबो लिस्ट में शामिल कर लिया जाना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. एकदम नये-नवेले तोखन साहू को मंत्रिमंडल में ले लिया गया, जिन्होंने बिलासपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से अपना पहला ही चुनाव लड़ा था. तोखन साहू छत्तीसगढ़ की राजनीति में बहुत जाना-पहचाना नाम नहीं है किंतु जातीय समीकरण में वे फिट बैठते हैं. उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा मिला है. वे मनोहर लाल  खट्टर के मातहत शहरी विकास मंत्रालय देखेंगे. शहरों के विकास की दृष्टि से यह महत्वपूर्ण विभाग है जिसका फायदा छत्तीसगढ़ को कितना मिलेगा,  यह आने वाला समय बताएगा.

केंद्र में तीसरी बार एनडीए सरकार के गठन के पूर्व छत्तीसगढ़ में यह बात जानने की बड़ी उत्सुकता थी कि  किसका नाम फाइनल होगा. बृजमोहन का या किसी और का? चर्चा थी कि राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को हराने वाले संतोष पांडेय अथवा दुर्ग से दूसरी बार जीते विजय बघेल जो ओबीसी वर्ग का बड़ा चेहरा है, को मौका मिल सकता है. पर मौके - मौके पर अचंभित करने वाली मोदी-स्टाइल ने इस दफे भी ऐसा नाम फायनल किया जो न तो चर्चा में था और न ही किसी को उम्मीद थी. जाहिर है इस घटना से बृजमोहन तथा भारी उम्मीद पाले हुए उनके समर्थकों को अपार निराशा हुई है.

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बृजमोहन अग्रवाल   फिलहाल रायपुर दक्षिण से विधायक हैं.  लोकसभा चुनाव के नतीजे 4 जून को जारी हुए. यानी एक हफ्ता बीत चुका है लेकिन उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा नहीं दिया.   इस हेतु उनके पास  18 जून तक का समय है. यह आश्चर्यजनक है कि वे इतना समय क्यों ले रहे है ? इस सवाल के जवाब में उन्होंने मीडिया से कहा था कि हाईकमान से निर्देश नहीं मिले हैं. क्या वाकई यही बात है या कोई और खिचड़ी पक रही है? कहना मुश्किल है लेकिन यह तय है भाजपा की राजनीति में उनका अगला मुकाम प्रदेश नहीं, देश है.

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यह अलग बात है कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व उनके लंबे राजनीतिक अनुभवों का लाभ किस तरह उठाना चाहेगा. उन्हें किसी सरकारी संगठन में लिया जाएगा अथवा पार्टी में कोई बडी जिम्मेदारी दी जाएगी? पर यह तय है राज्य की राजनीति में अब उनका सीधा दखल नहीं रह पाएगा. चार दशक से प्रदेश की राजनीति करने वाले व्यक्ति के लिए यकीनन यह स्थिति बहुत पीड़ादायक है. बृजमोहन की कसक को महसूस किया जा सकता है.

क्रिकेट की तरह किसी नेता राजनीतिक भविष्य के बारे में कोई भी अनुमान लगाना खतरे से खाली नहीं रहता. लिहाज़ा हो सकता है केन्द्रीय मंत्रिमंडल के आगामी विस्तार अथवा पुनर्गठन के दौरान बृजमोहन की किस्मत चमक जाए. अभी मोदी मंत्रिमंडल में कुछ स्थान रिक्त है. इसलिए किसी भी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.  वैसे भी छत्तीसगढ़ से एक और सांसद को जगह मिल सकती है.  इसलिए संभावनाएं खत्म नहीं हुई हैं. किंतु भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व उन उम्रदराज नेताओं को धीरे धीरे मुख्य धारा से बाहर कर रहा है जो सत्ता व संगठन में लंबी पारी खेल चुके हैं.

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बृजमोहन  1990 से लगातार विधायक, अविभाजित मध्यप्रदेश में तीन बार व छत्तीसगढ़ के रमन सिंह सरकार मे 15 वर्ष तक मंत्री रहने के बाद अब वर्तमान में विष्णुदेव साय मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सदस्य हैं. अभी वे 65-66 के हैं. इस दृष्टि से सक्रिय राजनीति में बने रहने के लिए , नेतृत्व के अघोषित नियम के अनुसार , उनके पास  दस वर्ष और हैं. फिर भी कह सकते हैं कि राज्य के वरिष्ठतम नेताओं को किनारे करने की जो प्रक्रिया चल रही है, उसमें बृजमोहन को भी शामिल कर लिया गया है.

दरअसल छत्तीसगढ़ में सत्ता व संगठन में पुराने चेहरे विभिन्न कारणों से बिदा होते जा रहे है. कमान नये व युवा हाथों में आ रही है. विष्णुदेव साय मंत्रिमंडल में इस बदलाव को देखा जा सकता है. क्या यह सोचा जा सकता था कि पहली बार विधायक बने विजय शर्मा डिप्टी सीएम के साथ  गृह मंत्री बन जाएंगे या कोरबा जिले के लोरमी से विधान सभा के लिए निर्वाचित पूर्व सांसद अरूण साव को भी उपमुख्यमंत्री बना दिया जाएगा. इसी क्रम में ओपी चौधरी,  टंकराम वर्मा व लक्ष्मी राजवाडे को पहली बार विधायक बनते ही मंत्री बना दिया गया. इनकी तुलना में सबसे सीनियर व अपराजेय विधायक बृजमोहन अग्रवाल को अपेक्षाकृत कम महत्व का शिक्षा व संस्कृति मंत्रालय दिया गया.  अर्थात नेतृत्व की ओर से संकेत था कि निकट भविष्य में उनकी भूमिका बदल दी जाएगी. लोकसभा चुनाव में  ऐसा ही हुआ. उन्हें टिकिट दी गई. अब वे सिर्फ सांसद हैं.

दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखते है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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