छत्तीसगढ़ के आगामी विधानसभा चुनाव में वोटों के संघर्ष के पूर्व राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में चुनावी वायदों की जो बहार आएगी,वह देखने लायक रहेगी. जनता से किए जाने वाले वायदे भी बड़ी जीत का कारण बन सकते हैं, यह कांग्रेस के पिछले जन संकल्प- पत्र से जाहिर है. छत्तीसगढ़ के 2018 के चौथे चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस के कुछ प्रमुख वायदों पर भरोसा करते हुए भाजपा की पंद्रह वर्षीय सत्ता का अंत कर दिया तथा राज्य की कमान कांग्रेस की सौंप दी. छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब किसी पार्टी का घोषणा पत्र इतना प्रभावी सिद्ध हुआ कि उसने सरकार ही बदल दी. कांग्रेस के चुनावी वायदे उसकी बंपर जीत के प्रमुख आधार बने. इस दफे भी राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र , वोटों के युद्ध में कितने सहायक होंगे , यह तो समय ही बताएगा पर यह देखना दिलचस्प रहेगा कि मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा ऐसे-ऐसे वायदे किए जाएंगे जो समाज के एक बडे़ वर्ग को आकर्षित कर सकते हैं. मसलन दलीय संकल्प के कुछ उदाहरण सामने आए हैं जबकि अभी चुनाव की तिथि घोषित नहीं हुई है. फिर भी राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ने घोषित तौर पर कुछ निर्णय सार्वजनिक कर दिए हैं.
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए अब करीब दो माह का समय शेष है.
2023 के चुनाव की तिथियां अभी घोषित नहीं हुई हैं और आचार संहिता के लिए भी अभी वक्त है. आमतौर पर राजनीतिक पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र मतदान के चंद दिन पूर्व जारी किए जाते हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस, भाजपा, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ व अन्य के संकल्प पत्र 9-10 नवंबर को सार्वजनिक किए गए थे. इस बार भी ऐसा ही कुछ होने की संभावना है. लेकिन इसके पूर्व कांग्रेस व आम आदमी पार्टी ने सभाओं एवं मीडिया से बातचीत में कुछ वायदें किए हैं.
मसलन प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे ने 07 सितंबर को एक बयान में कहा कि कांग्रेस के पुनः सत्तारूढ़ होने पर किसानों से धान 3600 रूपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जाएगा. अभी सरकार 2500 रूपए के हिसाब से खरीद रही है जो समर्थन मूल्य 2040 रूपए से कही ज्यादा है. किसानों को इतना मूल्य कोई भी राज्य सरकार नहीं दे रही है. पिछले चुनाव घोषणा पत्र के इस एक वायदे से कांग्रेस की झोली में भरभराकर वोट गिरे थे. अब सरकार इसमें 1100 रूपयों का इजाफा करेगी. यानी किसानों से उनका धान 3600 रूपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदा जाएगा. यह महत्वपूर्ण निर्णय है जो सरकार के वरिष्ठ मंत्री ने जाहिर किया है. धान के मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले ही कह चुके हैं कि अब किसानों से धान की खरीद प्रति एकड़ 15 क्विंटल के स्थान पर 20 क्विंटल की जाएगी. ये दोनों वायदे किसानों के व्यापक हित में है.
कांग्रेस ने एक और मुद्दे पर बढ़त बना ली है. उसने रसोई गैस सिलेंडर 500 रूपए में उपलब्ध कराने का वायदा किया है. रसोई की महंगाई से जूझ रही महिलाओं के लिए गैस सिलेंडर का मूल्य मौजूदा कीमत 974 से 474 रूपए घटना मायने रखेगा. चुनाव पूर्व सरकार के ये तीन वायदे यकीनन पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में शामिल रहेंगे. कांग्रेस के 2018 के संकल्प-पत्र में 36 वायदे थे जिनमें से अधिकांश अमल में लाए गए। लेकिन अब सरकार व संगठन सामने इस बात की चुनौती है कि 2023 के जनपत्र में धान के अलावा और कौन से मुद्दे शामिल किए जाएं ताकि मतदाताओं का सरकार पर भरोसा कायम रहे.
कांग्रेस के बाद वायदों के मामले में आम आदमी पार्टी ने भी अपने कुछ पत्ते खोले हैं. पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 19 अगस्त को राजधानी में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य व मुफ्त बिजली सहित दस वायदों का एलान किया. ये वे ही वायदें हैं जो पंजाब व गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए थे. केजरीवाल ने गारंटी दी है कि यदि उनकी पार्टी जीती तो राज्य की जनता को 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त, दस लाख बेरोजगारों को सरकारी नौकरी और जब तक नौकरी न मिले तब तक तीन हजार रूपए बेरोजगारी भत्ता, 18 वर्ष से अधिक आयु की लड़कियों, महिलाओं को एक हजार रूपए सम्मान निधि, हर गांव व वार्ड में मोहल्ला क्लिनिक तथा राज्य पुलिस के जवान तथा सेना में तैनात राज्य के जवानों के शहीद होने पर पीड़ित परिवार को एक करोड रूपए की सहायता राशि दी जाएगी. आम आदमी पार्टी ने जनता को लुभाने के लिए अपनी तरकश से ये तीर निकाले हैं पर उसका मास्टर स्ट्रोक अभी बाकी है.
प्रदेश भाजपा फिलहाल कोई वायदा करने के बजाए घोषणा-पत्र की तैयारी में जुटी हुई है. वह भी जनता के मनोभावों को समझने एवं उनकी आकांक्षाओं को जानने का प्रयास कर रही है. उसका पिछला अर्थात 10 नवंबर 2018 का घोषणा पत्र पचास पेज का था जिसे पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने जारी किया था और जिसे अटल संकल्प-पत्र कहा गया गया था. उसमें अनेक वायदे थे. इनमें से एक था राज्य के सभी संभागों में गो-अभ्यारण्य की स्थापना.
कुल मिलाकर कांग्रेस व भाजपा के ईर्दगिर्द विधानसभा चुनाव का गणित कुछ हद तक घोषणा पत्र के वायदों पर टिका हुआ है.हालांकि मतदाता किसी पार्टी के पक्ष में फैसला देने के पूर्व आश्वासनों पर आंख मूंदकर भरोसा करने बजाए जमीनी हकीकत पर विचार करते हैं. फिर भी घोषणा पत्रों में कुछ तो ऐसा रहता है जो शहर की तुलना में ग्रामीणजनों को अधिक आकर्षित करता है.
दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और राज्य की राजनीति की गहरी समझ रखते है.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.