सूखाग्रस्त बुंदेलखंड के पास है चंदेलों के समय के ऐसे-ऐसे जल स्रोत, पियास बुझाने के लिए एक बार फिर इसे संवार रही है सरकार

World Water Day 2025 Special: चंदेल राजाओं ने बरसाती पानी को सहेजने के लिए 2 पहाड़ों के बीच पत्थर और मिट्‌टी का प्रयोग करते हुए बांधों का निर्माण कराया था, ताकि पहाड़ियों के तराई इलाके में बरसाती पानी इकट्‌ठा हो सके.

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World Water Day 2025: बुंदेलखंड में चंदेल कालीन तालाबों और बावड़ियों को पुनः जीवित करने के लिए सरकार ने अच्छी पहल की है. हालांकि बुंदेलखंड का नाम सामने आते ही उसे सूखा ग्रस्त इलाका, पलायन और बेरोजगारी जैसी समस्याओं से जुड़ दिया जाता है. पानी के संकट से जूझ रहे इस इलाके को पानीदार बनाने के लिए देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना केन-बेतवा रिवर लिंक प्रोजेक्ट की आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा रखी गई है.

66 बावड़ियां और तालाबों को चिन्हित कर किया जा रहा है जल संरक्षण

चंदेल कालीन तालाबों को पुनर्जीवित करने में मध्य प्रदेश का पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग, जल संरक्षण पर काम करने वाली सामाजिक संस्थाओं (NGO) और पब्लिक एक साथ मिलकर काम करेगी. बता दें कि जल संरक्षण के लिए चंदेल राजाओं ने मध्य प्रदेश और उतर प्रदेश के जिलों में बांध, तालाब और बावड़ियां बनवाए थे, जिससे बुंदेलखंड में पानी की कमी न हो सके. वहीं अब मध्य प्रदेश सरकार ने चंदेल कालीन राजाओं द्वारा निर्माण किए गए इन संरचना और धरोहर को बचाने के लिए छतरपुर जिले की 66 बावड़ियां और तालाबों को चिन्हित कर काम कर रही है.

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चंदेल शासन ने करवाया था इन बावड़ियों और तालाबों का निर्माण

बता दें कि बुंदेलखंड में पानी का लगातार स्तर नीचे जा रहा है, लेकिन आज भी चंदेल कालीन तालाब और बावड़ियों में पानी का स्तर अच्छा बना हुआ है. इस वजह से छतरपुर जिले में 52 बावड़ियों को चिन्हित कर इसकी संरचना को सुधार किया गया. इन तालाबों और बावड़ियों का निर्माण 9वीं से 16वीं शताब्दी तक चंदेल शासनों ने करवाया था.

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2 पहाड़ों के बीच कराया गया था बांध का निर्माण

पानी की कमी से यह इलाका हमेशा जूझता रहा है. चंदेल राजाओं ने बरसाती पानी को सहेजने के लिए 2 पहाड़ों के बीच पत्थर और मिट्‌टी का प्रयोग करते हुए बांधों का निर्माण कराया था, ताकि पहाड़ियों के तराई इलाके में बरसाती पानी इकट्‌ठा हो सके. इन तालाबों को बनाने में ऐसी तकनीक का प्रयोग किया गया, जिसमें एक तालाब के भरने पर वेस्टवियर के जरिए उसके तराई इलाके का तालाब भी भर सके. इन तालाबों के साथ ही बावड़ियां भी बनवाई गई, ताकि तालाबों और बांधों के किनारे की बावड़ियां भर सकें.

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