सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का ज्योति जोत पर्व आज, मध्य प्रदेश से भी रहा है उनका गहरा संबंध

गुरु नानक देव जी का मध्य प्रदेश से गहरा संबंध रहा है. उन्होंने मध्य प्रदेश की दो यात्राएं की थी. उनकी यात्रा का स्मरण यहां के गुरुद्वारों से होता है. नानक जी की उज्जैन में कही हुई वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में भी दर्ज हैं.

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गुरु नानक देवजी ने उज्जैन में तीन वाणी कही थीं, जिसे सुनकर भर्तृहरि बहुत प्रसन्न हुए थे. (फाइल फोटो)

सिख धर्म के संस्थापक (Founder of Sikhism) श्री गुरु नानक देव जी महाराज (Guru Nanak Dev Ji) का ज्योति जोत पर्व इस साल 9 अक्टूबर को मनाया जाएगा. इस दिन मध्यप्रदेश में भी अलग अलग स्थानों के गुरुघर में सुबह से कीर्तन पाठ और लंगर की सेवा की जाएगी. जहां बड़ी संख्या में सिख समुदाय के लोग मौजूद रहेंगे. गुरु नानक देव जी का मध्य प्रदेश से गहरा संबंध रहा है. उन्होंने मध्य प्रदेश की दो यात्राएं की थी. उनकी यात्रा का स्मरण यहां के गुरुद्वारों से होता है. नानक जी की उज्जैन में कही हुई वाणी गुरु ग्रंथ साहिब में भी दर्ज हैं. 

ननकाना साहिब में हुआ था गुरु नानक जी की जन्म

गुरु नानक देवजी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई. को तलवंडी राय नामक स्थान पर हुआ था. वर्तमान में इस जगह को ननकाना साहिब (Nankana Sahib) के नाम से जाना जाता है, जो पाकिस्तान में है. यह स्थली सिख धर्म से जुड़े लोगों के लिए बेहद पवित्र मानी जाती है. गुरु नानक देवजी के पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम तृप्ता देवी था. उनकी पत्नी का नाम माता सुलखानी था. गुरु नानक देवजी के जीवन को तीन चरणों में बांटे तो उनके जन्म स्थान ननकाना साहिब (पाकिस्तान), सुल्तानपुर लोधी (भारत) और करतारपुर शहरों का खास महत्व है.

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बाबा नानक ने मध्यप्रदेश के इन स्थानों पर भी किया भ्रमण

गुरु नानक देवजी ने मध्य प्रदेश का दो बार दौरा किया. पहली यात्रा में वे उड़ीसा के पुरी, भुवनेश्वर से लौटकर मध्य प्रदेश के सारंगढ़ पहुंचे थे. इसके बाद उन्होंने अमरकंटक का दौरा किया और फिर जबलपुर आए. यहां से वे चंदेरी, झांसी, ग्वालियर, करौली, धौलपुर और भरतपुर का दौरा करते हुए मथुरा पहुंचे. अमरकंटक, जबलपुर, ग्वालियर और मथुरा के गुरुद्वारे गुरु नानक की पहली यात्रा का स्मरण कराते हैं.

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अपनी दूसरी यात्रा के दौरान उन्होंने राजस्थान के बांसवाड़ा से मध्य प्रदेश में प्रवेश किया और मध्य प्रदेश के जावरा पहुंचे. इसके बाद महिदपुर से गुजरते हुए उन्होंने उज्जैन का दौरा किया जो प्राचीन काल में अवंतिका के नाम से जाना जाता था.

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उज्जैन से भी है गुरु नानक देवजी का बड़ा नाता

बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से भी गुरु नानक देवजी का बड़ा नाता रहा है. दरअसल, मध्य प्रदेश में गुरुनानक देवजी जिन 6 स्थानों पर आए उनमें से एक उज्जैन भी है. गुरुदेव गिरनार पर्वत की यात्रा कर उज्जैन आए. यहां वे लंबे समय तक रहे. इस दौरान उन्होंने रामघाट के सामने इमली के नीचे, योगीराज भर्तृहरि के शिष्यों के साथ सत्संग किया. जिसका उल्लेख गुरु ग्रंथ साहिब की पवित्र किताब में भी किया गया है.

गुरु नानक देवजी ने भर्तृहरि को कहे थे तीन शब्द

गुरु नानक देवजी सब मोह माया त्याग कर एक जोगी बने हुए थे. भर्तृहरि गुफा जो आज भी प्रसिद्ध है, जहां भर्तृहरि ध्यान करते रहते थे. उस गुफा के पास मुस्लिम समाज द्वारा एक मस्जिद बनाई गई थी, जिसमें इमली का विशाल वृक्ष था. गुरुनानक देव जब पहली बार उज्जैन आए तो इसी पेड़ के नीचे बैठ गए थे. जिसके बाद उनकी भर्तृहरि से मुलाकात हुई थी. उज्जैन पहुंचने के बाद नानक साहब और भाई मर्दाना ने कीर्तन शुरू कर दिया. दोनों को कीर्तन करते देख कर भर्तृहरि से रहा नहीं गया और वो नानक साहब के पास पहुंच गए और नानक साहब से प्रश्न करने लगे कि यहां आने वाले कितने जोगी मोक्ष को प्राप्त होंगे, जिसके जवाब में नानक साहब ने भर्तृहरि को 3 शब्द सुनाए जो गुरु ग्रंथ साहिब की किताब के अंग क्रमांक 223 पर लिखे हैं.

गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज है उज्जैन में कही नानक जी की वाणी

गुरु नानक देवजी ने उज्जैन में तीन वाणी कही थीं, जिसे सुनकर भर्तृहरि बहुत प्रसन्न हुए थे. जिसके बाद उन्होंने कई सारे सवाल कर नानक साहब से अपनी मन की शंकाओं को दूर किया. यह सिलसिला श्रद्धा भाव के साथ कुछ दिनों तक चलता रहा. नानक साहब लंबे समय तक उज्जैन में रुके थे. अमृतसर के संग्रहालय में इसका इतिहास लिखा हुआ हैं अगर आप इसके बारे में जानने के इच्छुक हैं तो अमृतसर के संग्रहालय में जाकर इसके बारे में विस्तार से पढ़ सकते हैं. गुरुनानक देवजी ने ये तीन बातें कहीं थीं.....

अंग- 223 : मनुष्य आध्यात्मिक कर्म करे तो सच्चा है. झूठा मनुष्य मुक्ति के रहस्य को नहीं समझ सकता. योगी वह है जो प्रभु मिलन की युक्ति विचारता है और पांच विकारों का अंत कर ईश्वर को हृदय में बसाता है.

अंग- 223 : क्षमा का स्वभाव मेरे लिए व्रत, उत्तम आचरण और संतोष है. मुझे न रोग का दुख है न मृत्यु का. मैं निराकार ईश्वर में लीन होकर मुक्त हो गया हूं.

अंग 411 : मनुष्य को पाप की घाटी से उतर कर गुणों के सरोवर में स्नान करना चाहिए. ईश्वर का गुणगान करना चाहिए. जैसे आकाश में जल है वैसे प्रभु में लीन रहना चाहिए और सत्य का चिंतन कर अमृत रूपी महारस का पान करना चाहिए.