भीषण गर्मी में कूनो के चीतों को मिली बड़ी राहत, नेशनल पार्क में बनाया सौर-संचालित आर्टिफिशियल ठंडा क्षेत्र 

प्रबंधन के अनुसार, इस पहल से चीतों की मां और उनके शावकों को गर्मी में काफी राहत मिली है. विशेष रूप से मादा चीता निरवा, जिसने 27 अप्रैल को पांच शावकों को जन्म दिया और मादा चीता वीरा, जिसके दो शावक 4 फरवरी को जन्मे थे.

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Kuno National Park: मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में प्रबंधन ने भीषण गर्मी में चीतों और उनके नन्हे शावकों को राहत देने के लिए एक बड़ी पहल की है. पार्क में आर्टिफिशियल (कृत्रिम) ठंडा क्षेत्र विकसित किया गया है. कूनो प्रबंधन ने इस संबंध में रविवार को एक वीडियो जारी कर यह जानकारी दी.

वर्तमान में कूनो नेशनल पार्क में कुल 27 चीते हैं, जिनमें 10 वयस्क और 17 शावक शामिल हैं. इसके अलावा, दो चीते गांधीसागर क्षेत्र में भी हैं. केंद्र सरकार की हरित ऊर्जा नीति के अंतर्गत सौर पंपों के उपयोग से जल आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है, जो वन्यजीव संरक्षण की दिशा में एक सफल और पर्यावरण अनुकूल कदम माना जा रहा है.

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इस साल श्योपुर में तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है, जो इन संवेदनशील जीवों के लिए अत्यधिक खतरनाक साबित हो सकता था. कूनो पार्क प्रबंधन ने इस योजना को सौर ऊर्जा आधारित वाटर लिफ्ट प्रणाली के माध्यम से लागू किया है.इस व्यवस्था का उद्देश्य विशेष रूप से उन शावकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जो हाल ही में कूनो में जन्मे हैं और पहली बार गर्मी का सामना कर रहे हैं.

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ऐसे पहुंचाया जा रहा है पानी

कूनो नदी से पानी को पाइपलाइन के जरिए करीब 8.6 किलोमीटर की दूरी तक ले जाकर 15 जल बिंदुओं और स्प्रिंकलरों में पहुंचाया जा रहा है. ये जल स्रोत पार्क के बाड़ों के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर विकसित किए गए हैं. इस सिस्टम से न केवल जानवरों को पीने के लिए ठंडा पानी उपलब्ध हो रहा है, बल्कि स्प्रिंकलर के माध्यम से क्षेत्र में हरियाली भी बढ़ रही है, जिससे वातावरण में ठंडक बनी हुई है.

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गर्मी में काफी राहत मिली है

प्रबंधन के अनुसार, इस पहल से चीतों की मां और उनके शावकों को गर्मी में काफी राहत मिली है. विशेष रूप से मादा चीता निरवा, जिसने 27 अप्रैल को पांच शावकों को जन्म दिया और मादा चीता वीरा, जिसके दो शावक 4 फरवरी को जन्मे थे. इस योजना की प्रेरणा कूनो की मादा चीता ज्वाला के चार शावकों की दुखद मृत्यु से मिली. गर्मी और पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण ज्वाला के शावकों को बचाया नहीं जा सका. इस अनुभव को चुनौती के रूप में लेते हुए पार्क प्रबंधन ने आर्टिफिशियल कूलिंग जोन बनाने का निर्णय लिया. 

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