Sawan 2024: अद्भुत है MP का शिवधाम बारहलिंग, सावन महीने में जलाभिषेक का है विशेष महत्व

Shivdham Barhalinga in Betul: शिवधाम बारहलिंग में मौजूद तपेश्वर ज्योर्तिलिंगों का प्राण प्रतिष्ठा त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के द्वारा किया गया था, जो ताप्ती नदी की काली चट्टानों पर भगवान विश्वकर्मा ने अपने उंगलियों से उकेरे थे.

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सावन का महीना भोलेनाथ के लिए बेहद लोकप्रिय है. इस महीने में भगवान शिव को जलाभिषेक, रुद्राभिषेक और शिव पूजन करने का विशेष महत्व होता है. ऐसे में आज हम आपको मध्य प्रदेश के शिवधाम बारहलिंग के बारें में बताएंगे, जहां ताप्ती नदी की जलधारा से बारह तपेश्वर ज्योर्तिलिंगों का अभिषेक होता है, जो अपने आप में एक चमत्कारिक दृश्य है. शिवधाम  बारहलिंग बैतूल में स्थित है और यहां बारह ज्योर्तिलिंगों का प्राण प्रतिष्ठित किया गया हैं, जो पूरी दुनिया में एकमात्र जगह है.

शिवधाम बारहलिंग में मौजूद तपेश्वर ज्योर्तिलिंगों का प्राण प्रतिष्ठा त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने किया था, जो ताप्ती नदी की काली चट्टानों पर भगवान विश्वकर्मा की उंगलियों द्वारा उकेरे गए थे.

बता दें कि हर साल श्रावण माह में ताप्ती नदी की जलधारा से इन बारह तपेश्वर ज्योर्तिलिंगों का अभिषेक होता है, जो  अद्वितीय और चमत्कारिक दृश्य है. यह पवित्र स्थल त्रेतायुग से जुड़ा हुआ. ऐसी मान्यता है कि जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 12 साल के लिए बनवास पर निकले थे तो यहां तीन दिनों तक निवास किया था. दरअसल, यहां स्थित सीता स्नानागार और बारह ज्योर्तिलिंग इस ऐतिहासिक धरोहर के प्रमाण हैं. 

जानें शिवधाम का महत्व और ताप्ती नदी की महिमा

मध्य प्रदेश शासन से पंजीकृत मां सूर्यपुत्री ताप्ती जागृति समिति के प्रदेश सचिव सतीश पंवार बताते हैं कि ताप्ती नदी 750 किमी का सफर तय करती है, जिसमें से बैतूल जिले में 250 किमी का सर्पाकार सफर है. ताप्ती नदी का जल मृत आत्माओं को मोक्ष दिलाने की शक्ति रखता है. यह गंगा नदी से भी विशिष्ट है, क्योंकि ताप्ती नदी में विसर्जित अस्थियां तीन दिनों में घुल जाती हैं. ताप्ती नदी का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यंत उच्च है और इसे कुरूवंश की माता और शनि देव की बहन के रूप में भी जाना जाता है.

महात्मा गांधी और रानी विक्टोरिया भी आ चुके हैं शिवधाम

शिवधाम बारहलिंग का मध्य प्रदेश के साथ पूरे दुनिया में भी विशेष महत्व है. यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर महारानी  विक्टोरिया तक दर्शन करने पहुंचे थे. दरअसल,  रानी विक्टोरिया हाथी खुर्र और रानी पठार की यात्रा पर आई थीं तो उस दौरान ताप्ती नदी के दर्शन करने बैतूल पहुंची थीं. इस स्थल के आसपास रानी विक्टोरिया फॉल और रानी पठार जैसे मनोरम दृश्य आज भी उनकी मौजूदगी का अहसास कराते हैं.

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हर वर्ष आदिवासी जतरा का किया जाता है आयोजन

इतना ही नहीं यहां हर साल सावन महीने में शिवधाम बारहलिंग में भगवान श्रीराम के रुकने की स्मृति में आदिवासी जतरा (मेला) का आयोजन किया जाता है. इस मेले में शामिल होने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं और इस पवित्र स्थल के अद्वितीय धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का अनुभव करते हैं.

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