सांची स्तूप : यहां पहुंचने वाले मुख्यमंत्रियों ने सत्ता गंवाई, क्या CM शिवराज तोड़ पाएंगे मिथक?

सांची वैसे तो शांति का संदेश देता है लेकिन सीएम का मन यहां जाने के नाम से ही अशांत हो जाता है. दरअसल स्थानीय लोगों का मानना है जब भी कोई मुख्यमंत्री सांची स्तूप पर पहुंचता है तो उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ता है. दिग्विजय सिंह, बाबूलाल गौर और उमा भारती ने यहां पहुंचने के बाद सत्ता गंवा दी थी. CM शिवराज सिंह चौहान के साथ भी यह मिथक जुड़ चुका है, लेकिन उन्होंने फिर भी सांची स्तूप का दौरा हाल ही में किया है.

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सांची:

कुछ जगहें ऐसी होती हैं जहां प्रदेश के मुखिया जाने से बचते हैं. इन जगहों को लेकर राजनेताओं में अंधविश्वास या मिथक रहता है. वैसा ही मिथक जैसा नोएडा को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों में रहता था. नोएडा को लेकर यह अंधविश्वास था कि अगर यूपी का सीएम वहां का दौरा करेगा तो वह दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाएगा. आखिरकार 29-30 वर्षों के इस अंधविश्वास को सीएम योगी आदित्यनाथ ने तोड़ा दिया. कुछ ऐसा ही अंधविश्वास विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल और यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट सांची को लेकर भी है.

सोलर सिटी के शुभारंभ कार्यक्रम में पहुंचे थे CM शिवराज

स्तूप को शांति का टापू कहा जाता है. शांति की तलाश में दुनिया भर से लोग यहां आते हैं. लेकिन शांति का संदेश वाले इस विश्व प्रसिद्ध स्थल का दौरा करने से राजनेता परहेज करते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है जब भी कोई मुख्यमंत्री सांची स्तूप पर पहुंचता है तो उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ता है.

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हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जब सांची सोलर सिटी का शुभारंभ करने के लिए इस शहर का दौरा किया था तब वे सांची स्तूप की पहाड़ी पर पहुंचे थे. अब लोगों में इस बात की चर्चा बढ़ गई है कि क्या सीएम शिवराज सांची के मिथक को तोड़ पाएंगे?

सांची पहुंचने वाले इन मुख्यमंत्रियों ने गंवाई है कुर्सी

ऐसा कहा जाता है जब-जब कोई मुख्यमंत्री सांची स्तूप पहाड़ी पर पहुंचा तो उसकी सत्ता चली गई. यह सिलसिला दिग्विजय सिंह के दौर से शुरु हुआ था, दरअसल तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए सांची पहुंचे थे, उसके बाद उनके हाथों से सत्ता हमेशा के लिए चली गई. मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर भी अपने कार्यकाल के दौरान एक कार्यक्रम के लिए सांची पहुंचे थे, चंद दिनों बाद उनकी भी सत्ता चली गई. उमा भारती को भी सांची पहाड़ी जाने के बाद सत्ता से हाथ धोना पड़ा था. पिछली बार सीएम शिवराज सिंह चौहान जब सांची की पहाड़ी पर पहुंचे थे तो उनकी भी सत्ता चली गई थी. एक बार फिर रिस्क लेते हुए मुख्यमंत्री सांची की पहाड़ी पर पहुंचे हैं, उनके इस कदम से सांची में इस बात की चर्चा गर्मा गई है कि क्या इस बार भी सांची की पहाड़ी पर जाने से शिवराज सरकार पर संकट आ जायेगा या CM शिवराज  अंधविश्वास को तोड़ देंगे.

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इतिहासकार अरविंद शर्मा बताते हैं सांची क्षेत्र का अपने आप में एक प्रभाव है. सम्राट अशोक ने भी राजनीति छोड़ शांति की तलाश सांची से ही की थी. सांची शांति का संदेश देता है इसी का प्रभाव हो सकता है कि नेताओं और ऊंचे बैठे पदों पर बैठे लोगों को सांची यह संदेश देता हो कि शांति की तरफ आओ.

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सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी पहाड़ी चढ़ने से परहेज करते हैं नेता 


पूर्व जनसंपर्क एवं संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने सांची के कई सांस्कृतिक कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, नतीजा उनको भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. पूर्व मंत्री रामपाल सिंह हो, सुरेंद्र पटवा हों या फिर अन्य स्थानीय नेता, ये सभी हमेशा स्तूप की पहाड़ी चढ़ने से बचते रहे हैं. डॉक्टर गौरी शंकर शेजवार हों या स्थानीय विधायक प्रभुराम चौधरी दोनों ही सांची की पहाड़ी से परहेज करते हैं. यहां तक कि सांची बौद्ध यूनिवर्सिटी के शिलान्यास कार्यक्रम में भी तमाम नेताओं ने  कार्यक्रम में तो शिरकत की थी लेकिन पहाड़ी पर जाने से परहेज किया था. यहां सांची महोत्सव का आयोजन किया जाता है लेकिन यह कार्यक्रम सांची स्तूप पहाड़ी के नीचे होता है. इस कार्यक्रम में नेता पहुंचते तो हैं लेकिन पहाड़ी पर पहुंचने से बचते हैं.
 

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