Ashura Ka Roza: यहूदियों के पैगंबर हजरत मूसा की याद में मुसलमान मुहर्रम में इस दिन रखते हैं रोजा, जानिए-क्या है इसकी वजह

10 Moharram Ka Roza: मौलाना जियाउद्दीन ने बताया कि हजरत मूसा को मुसलमान भी अपना पैगंबर और अल्लाह का नेक बंदा मानते हैं. वहीं, उन को अल्लाह की ओर से दी गई किताब तौरात को भी मुसलमान अल्लाह की किताब मानते हैं. हालांकि, उसमें लिखी गई उन बातों को नहीं मानते हैं, जिसकी पुष्टि कुरआन शरीफ से नहीं होती है, क्योंकि मुसलमानों को मानना है कि असली तौरात (यहूदियों का धर्म ग्रंथ) खो चुका है और मौजूदा तौरात में समय के साथ दूसरी बातें भी शामिल कर दी गई हैं, जो अल्लाह की तरफ से नहीं है.

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10 Muharram Ka Roza: फिलिस्तीन-इजरायल और ईरान-इजरायल युद्ध की वजह से इन दिनों यहूदी और मुसलमानों के रिश्तों की खूब चर्चा हो रही है. इन युद्धों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे यहूदी और इस्लाम-धर्म इसके लिए जिम्मेदार है, लेकिन हकीकत बिल्कुल ही इससे अलग है.  सच्चाई ये है कि जिस हजरत मूसा को यहूदी अपना पैगंबर मानते हैं, उसे मुसलमान भी अपना पैगंबर मानते हैं. लिहाजा, जिस दिन पैगंबर मूसा (PBUH) और उनके मानने वाले बनी इस्राइल को मिस्र के जालिम राजा फराओ पर विजय मिली थी, उस दिन मुसलमान भी अल्लाह का शुक्र अदा करने के लिए रोजा रखते हैं.

आशूरा के रोजे की जानकारी देते हुए नूर मस्जिद के इमाम व खतीब मौलाना जियाउद्दीन ने बताया कि मक्का से हिजरत कर पैगम्बर मुहम्मद (PBUH) जब मदीना पहुंचे, तो पता चला कि महीना में रहने वाले यहूदी मोहर्रम की 10 तारीख यानी आशूरा के रोजे रखते हैं. इस पर पैगम्बर मुहम्मद (PBUH) ने पूछा कि यहूदी रोजा क्यों रखते हैं, तो बताया गया कि इस दिन हजरत मूसा  (PBUH) को मिस्र के जालिम राजा फराओ को सेना समेत अल्लाह ने डुबो दिया था और हजरत मूसा की कौम को उनसे आजादी मिली थी. यानी इस दिन अल्लाह ने अपने मानने वालों यानी हजरत मूसा और उनके अनुयायियों की रक्षा की थी. इसी की खुशी में अल्लाह का शुक्र अदा करने के लिए यहूदी रोजा रखते हैं. इस पर पैगम्बर मुहम्मद (PBUH) ने फरमाया कि हजरत मूसा तो यहूदियों से ज्यादा हमसे करीब है. लिहाजा, अगले साल से हम दो रोजा रखेंगे. हालांकि, अगला आशूरा का दिन आने से पहले ही पैगम्बर मुहम्मद (PBUH) की मौत हो गई. लिहाजा, पैगम्बर मुहम्मद (PBUH) तो आशूरा का रोजा नहीं रख पाए, लेकिन आपकी इच्छा को देखते हुए आपके शिष्यों ने 9 और 10 मुहर्रम या 10 और 11 मोहर्रम को रोजा रखना शुरू कर दिया, जिसे मुसलमान आज तक निभाते आ रहे हैं. हालांकि, ये रोजा रमजान के रोजे की तरह फर्ज नहीं है. आशूरा का रोजा नफिल यानी ऐच्छिक है. इसे रखने पर पुण्य (सवाब) मिलता है और छोड़ने पर कोई गुनाह (पाप नहीं होता है)

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हजरत मूसा को मुसलमान भी मानते हैं अपना पैगंबर

मौलाना जियाउद्दीन ने यह भी बताया कि हजरत मूसा को मुसलमान भी अपना पैगंबर और अल्लाह का नेक बंदा मानते हैं. वहीं, उन को अल्लाह की ओर से दी गई किताब तौरात को भी मुसलमान अल्लाह की किताब मानते हैं. हालांकि, उसमें लिखी गई उन बातों को नहीं मानते हैं, जिसकी पुष्टि कुरआन शरीफ से नहीं होती है, क्योंकि मुसलमानों को मानना है कि असली तौरात (यहूदियों का धर्म ग्रंथ) खो चुका है और मौजूदा तौरात में समय के साथ दूसरी बातें भी शामिल कर दी गई हैं, जो अल्लाह की तरफ से नहीं है. हालांकि, दुनिया का कोई भी मुसलमान हजरत मूसा के पैगंबर होने और तौरात के अल्लाह की किताब होने का इंकारी नहीं है, जो कोई इन बातों को इनकार करेगा, इस्लामी विश्वास के मुताबिक वह मुसलमान ही नहीं रहेगा. दरअसल, मुसलमानों का मानना है कि दुनिया का कोई भी ऐसा देश और ट्राइब नहीं है, जहां अल्लाह ने अपना पैगंबर नहीं भेजा. हालांकि, कुरआन शरीफ में मात्र 25 पैगंबरों के नाम है दर्ज हैं. इसके मुताबिक दुनिया के पहले आदमी यानी आदम (PBUH) इस्लाम धर्म के पहले पैगंबर और पैगंबर मुहम्मद (PBUH) आखरी पैगंबर हैं. यहां एक बात बताने योग्य ये है कि जैसा इतिहास की किताबों में पैगंबर (PBUH)को इस्लाम धर्म का प्रवर्तक पढ़ाया जाता है, वैसा इस्लाम धर्म के मानने वाले नहीं मानते हैं. मुसलमान (PBUH) को इस्लाम धर्म का प्रवर्तक नहीं, बल्कि आखिरी पैगंबर मानते हैं.

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आशूरा से जुड़ा है ये दर्दनाक वाकया

हालांकि, 10 मुहर्रम यानी आशूरा की असल पहचान पैगम्बर मुहम्मद (PBUH) के नवासे हजरत हुसैन (PBUH) की शहादत की वजह से ज्यादा जाना जाता है. दरअसल, 10 मुहर्रम के दिन ही सीरिया स्थित मुसलमानों के शासक यजीद की सेना ने पैगम्बर मुहम्मद (PBUH) के नवासे हजरत हुसैन (PBUH) समेत उनके 72 साथियों को शहीद कर दिया था. जिसकी वजह से यह दिन मुसलमानों के लिए एक दुखद घड़ी की याद को भी ताजा कर देता है. इसी की याद इस दिन शिया मुसलमान मातम और ताजियादारी करते हैं. 

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