Khargone Mandir: मध्यप्रदेश अपनी ऐतिहासिक और प्राकृतिक सुंदरता के साथ साथ धार्मिक छवि के लिए भी जाना जाता है. मध्यप्रदेश की धरती पर कई ऐसे दुर्लभ मंदिर है, जो देश में कहीं नहीं हैं. उन्हीं में से एक है, मध्यप्रदेश के खरगोन जिले का नवग्रह मंदिर. मध्यप्रदेश के खरगोन को नवग्रह की नगरी (Khargone is the city of Navagraha) भी कहा जाता है. यह देश का एकमात्र सूर्य प्रधान नवग्रह मंदिर (Surya Navgrah Mandir) है. आइए जानते हैं इस मंदिर में क्या ख़ास है और इसका इतिहास कितना पुराना है?
दक्षिण भारतीय शैली बना है मंदिर
कुंदा नदी के तट पर बना श्री नवग्रह मंदिर लगभग तीन सौ साल पुराना है. मंदिर में विराजित सभी नौ ग्रह एवं अन्य मूर्तियां और मंदिर की संरचना दक्षिण भारतीय शैली की है. ग्रह शांति मंत्र के आधार पर मंदिर स्थापित है. सूर्य प्रधान नवग्रह मंदिर होने से सूर्यदेव के दर्शन और पूजा का यहां बेहद खास महत्व है.
मंदिर के तीन शिखर हैं बेहद ख़ास
मंदिर बहुत ही आकर्षक है. मंदिर में तीन शिखर है, जो त्रिदेव ब्रम्हा, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं. गर्भगृह में सूर्य की मूर्ति के बीच में हैं. सामने शनि दाई ओर गुरू बाई ओर मंगल ग्रह की मूर्ति है. ये सभी ग्रह अपने-अपने वाहन, ग्रह मंडल, ग्रह यंत्र, ग्रह रत्न और अस्त्र-शस्त्र के साथ स्थापित हैं.
बगलामुखी माता ने बनवाया है मंदिर
मंदिर के पंडित बताते हैं कि 300 साल पहले पुजारी को स्वप्न में बगलामुखी माता के दर्शन हुए और उनकी आज्ञा से ही नवग्रह मंदिर की स्थापना हुई. कहा जाता है कि व्यक्ति के जीवन में जिस भी ग्रह संबंधी समस्या आती है, उस ग्रह से जुड़े दान की पोटली यहां समर्पित करने से समस्याओं का निवारण होता है.
पीठ के दर्शन करने आते हैं भक्त
इस मंदिर में नौ ग्रहों की अधिष्ठात्री मां बगलामुखी के स्थापित होने से पितांबरी ग्रह शांति पीठ भी कहलाता है. यहां ब्रह्माश्त्र एवं श्री सूर्य चक्र के रूप में ब्रम्हांड की दो महाशक्तियां भी स्थापित है.
मंदिर की रचना है बहुत आकर्षक
- प्राचीन ज्योतिष के सिद्धांतों के आधार पर इस मंदिर की रचना की गई, मंदिर में घुसते ही सात सीढ़ियां हैं, जो सात बार का प्रतीक है.
- इसके बाद ब्रम्हा विष्णु स्वरूप के रूप में माता सरस्वती, श्रीराम और पंचमुखी महादेव के दर्शन होते हैं.
- फिर गर्भगृह में जाने के लिए 12 सीढ़ियां उतरनी होती है, जो 12 महीने की प्रतीक है.
- गर्भ गृह में नवग्रह का दर्शन होता है, इसके बाद दूसरे मार्ग पर फिर सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हैं. जो बारह की राशियों की प्रतीक है. इस प्रकार सात वार, 12 महीने, 12 राशियां और नवग्रह इनके बीच में हमारा जीवन चलता है और उसी आधार पर मंदिर की रचना भी की गई है.
शनि देव को मनाने आते हैं लोग
मान्यता है कि शनि देव को मनाने के लिए लोग यहां आकर शनि देव से शांति पाने और पीड़ा से मुक्ति हेतु महायोग करते हैं और उन्हें आहुति देते हैं इसीलिए यहां शनि जयंती के दिन भव्य मेला लगता है और भीड़ नज़र आती है.
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