Women's Day Special : भारत की पारंपरिक कलाओं में से एक है - मांडना कला... इस कला के बारे में हम आज विस्तार से बात करेंगे लेकिन आपको बता दें कि ये कला अब सिर्फ आंगन और दीवारों तक सीमित नहीं है. इसे एक नई पहचान देने का काम किया है मध्य प्रदेश की वंदना शिवहरे ने. उन्होंने इस कला को आधुनिक रूप देकर देश-विदेश तक पहुंचाने का संकल्प लिया है. इससे उनका परिवार चलता है. साथ ही 200 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है. जानकारी के लिए बता दें कि मांडना कला मध्य प्रदेश और राजस्थान की पारंपरिक लोक कला है. पुराने समय में त्योहारों और शुभ अवसरों पर घर की दीवारों और आंगन को सुंदर आकृतियों से सजाने की परंपरा थी. इस कला में ज्यादातर ज्यामितीय डिजाइन, फूल-पत्तियां, पेड़-पौधे, स्वास्तिक और शुभ संकेत बनाए जाते हैं. पहले के समय में ये सिर्फ दीवारों और फर्श पर बनाई जाती थी मगर अब इसका इस्तेमाल कपड़ों, साड़ियों, पेंटिंग्स और क्राफ्ट उत्पादों में भी किया जा रहा है.
वंदना ने कैसे शुरू किया सफर ?
वंदना शिवहरे को ये कला अपनी दादी और नानी से सीखने को मिली. बचपन से ही वे अपने घर की बुजुर्ग महिलाओं को आंगन में मांडना बनाते हुए देखती थीं. शादी के बाद भी उन्होंने इस कला को जारी रखा और धीरे-धीरे इसे एक कारोबार बना लिया. अब वे इस कला को सिखाकर दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बना रही हैं.
नेचुरल चीजों से तैयार होती है मांडना कला
वंदना और उनकी टीम पूरी तरह प्राकृतिक उत्पादों का इस्तेमाल करती हैं. वे केमिकल युक्त रंगों की जगह गोबर, मिट्टी, फूल, पत्तियां और लकड़ी के प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करती हैं. खास बात तो ये है कि इस कला में लाल और सफेद रंग का खास महत्व होता है. पहले जमीन को गोबर और गेरू (लाल मिट्टी) से लीपा जाता है, फिर उस पर चूने या खड़िया से सुंदर आकृतियां बनाई जाती हैं.
मांडना को अब मिल चुकी है नई पहचान
अब मांडना कला घर की दीवारों से निकलकर फैशन और होम डेकोर में भी अपनी जगह बना रही है. वंदना शिवहरे और उनकी टीम मांडना डिजाइन वाली साड़ियां, टी-शर्ट, बरमूडा, जींस, बैग और लकड़ी के सजावटी सामान तैयार कर रही हैं.
महिलाओं को पसंद आ रही मांडना साड़ी
साड़ी पर मांडना डिजाइनों की काफी मांग बढ़ रही है. खासतौर पर देसी लुक पसंद करने वाली महिलाएं इन्हें खरीद रही हैं. ये साड़ियां देखने में आकर्षक होती हैं और इनकी कीमत भी ज्यादा नहीं होती. वंदना की टीम बांस की डलिया, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी और पत्तों से बनी चीजों पर भी मांडना डिजाइन बना रही है. इससे उत्पादों की सुंदरता बढ़ती है. वे प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल भी रहते हैं.
300 से ज्यादा चीज़ें तैयार कर रही हैं महिलाएं
अब यह कला टी-शर्ट, बैग, तकिए के कवर और दीवारों की सजावट में भी इस्तेमाल होने लगी है. 300 से ज्यादा प्रकार के उत्पाद बनाए जा रहे हैं, जिनकी मांग युवाओं और महिलाओं में तेजी से बढ़ रही है. वंदना शिवहरे को वज्र वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक में पहले ही जगह मिल चुकी है. अब वे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं. उनका सपना है कि भारतीय पारंपरिक कला को दुनियाभर में पहुंचाया जाए.
विदेशों में भी बढ़ रही मांडना कला की मांग
वंदना के बनाए गए उत्पादों की मांग अब एशिया से लेकर यूरोप तक पहुंच चुकी है. विदेशी लोग इस कला को काफी पसंद कर रहे हैं. इससे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का बड़ा मौका मिल रहा है. वंदना शिवहरे कहती हैं कि मांडना कला सीखना बहुत आसान है. अगर महिलाएं इसमें रुचि लें, तो वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकती हैं. वे महिलाओं को फ्री में ट्रेनिंग भी देती हैं, ताकि वे इस कला को सीखकर खुद का व्यवसाय शुरू कर सकें. जीवन में आगे बढ़ सके.