Shivpuri News: आज के समय में महंगी होती स्वास्थ्य व्यवस्थाएं (Health Facilities) आम आदमी के पहुंच से भी बाहर होती जा रही हैं. ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के शिवपुरी (Shivpuri) जिले में सामने आया. जहां एक बीमार बच्चे के मां-बाप की दर्द भरी कहानी निकलकर सामने आई है. यहां एक मिडिल क्लास परिवार (Middle Class Family) से दिल्ली (Delhi) के डॉक्टरों ने उनके बच्चे कृष्णा की जान बचाने के लिए 16 करोड़ रूपए की मांग की. असल में उनका दो साल का बच्चा स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी (Spinal Muscular Atrophy) नाम की बीमारी से जूझ रहा है. इस बीमारी का या तो इलाज नहीं है और अगर है तो इतना महंगा कि हर किसी के बस की बात नहीं है.
दिल्ली में चल रहा है इलाज
शिवपुरी जिले के मिडिल क्लास माता-पिता के सामने अपने बच्चे की जान बचाने के लिए करोड़ों रुपए का इंतजाम कर पाना समस्या बना हुआ है. उनके बेटे को स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी बीमारी है, जिसका दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल में इलाज चल रहा है. वहां के डॉक्टरों ने लिखकर दे दिया है कि बच्चे को अगर Zolgensma नाम का इंजेक्शन नहीं मिला तो वह ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह सकता है. बता दें कि इस इंजेक्शन की कीमत लगभग 16 करोड़ रुपए से भी ज्यादा है.
कर चुके हर संभव प्रयास
बच्चे के माता-पिता का कहना है कि उन्होंने हर स्तर तक जाने की कोशिश की और उनसे जो कुछ संभव हो पाया उन्होंने किया. लेकिन, बात करोड़ों की है और वह अपना सब कुछ भी बेच देंगे तो उनके पास इतने पैसे का इंतजाम नहीं हो पाएगा. डॉक्टर यह भी बताते हैं कि 16 करोड़ के इंजेक्शन लगने के बाद भी कोई गारंटी नहीं है कि उनका बच्चा पूरी तरह स्वस्थ हो जाए क्योंकि उसे जीवन के 10 साल इसी तरह के महंगे इंजेक्शन की जरूरत पड़ेगी.
क्या है स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी का इलाज? (What is Spinal Muscular Atrophy)
इस बीमारी को लेकर हेल्थ एक्सपर्ट बताते हैं कि पहले तो इस बीमारी का कोई इलाज है ही नहीं और अगर इलाज है भी तो इतना महंगा है कि आम आदमी के बस की बात नहीं. डॉक्टर कहते हैं कि इस बीमारी से निपटने के लिए कुछ दवाइयां हैं जिनका सहारा लेकर स्थिति को कंट्रोल करने की कोशिश की जाती है. अब दावा किया जाने लगा है कि 16 करोड़ से भी ज्यादा कीमत का एक इंजेक्शन इस तरह की बीमारी को ठीक कर सकता है.
कितने प्रकार की होती है स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी (Types of Spinal Muscular Atrophy)
विशेषज्ञ डॉक्टर बताते हैं कि इस बीमारी के अब तक पांच प्रकार पाए गए हैं:
यह बीमारी तब होती है जब बच्चा पेट में पल रहा होता है और उसे जोड़ों के दर्द की शिकायत होती है. हालांकि, इस तरह की बीमारी दुनिया में बहुत कम देखी गई है.
इस बीमारी में एक लक्षण ऐसा भी है जिसके तहत बच्चा बिना किसी की मदद के अपना सर तक नहीं हिला पाता. लगभग इसी तरह की बीमारी से कृष्णा भी गुजर रहा है.
इस बीमारी का तीसरा प्रकार तब देखने को मिलता है जब बच्चे की उम्र एक साल से दो साल के बीच की होती है. उसे खड़े होने में समस्या होने लगती है साथ ही उसका शरीर कमजोर पड़ने लगता है.
कुछ मामलों में दो साल से 17 साल तक इस तरह के लक्षण कम दिखाई देते हैं. लेकिन, आगे चलकर व्हीलचेयर की जरूरत लगने लगती है.
इतना महंगा इंजेक्शन क्यों?
जानकार बताते हैं कि इस बीमारी को ठीक करने के लिए इंजेक्शन को स्विट्जरलैंड की कंपनी नोरवाटेस बनाती है और इस कंपनी का दावा है कि यह जीन ट्रीटमेंट थेरेपी है जिसे दो साल से कम उम्र के बच्चों को लगाया जाता है. कृष्णा भी दो साल से कम उम्र का ही है. कंपनी का दावा है कि यह कहीं ना कहीं अपना असर करती है और इस दवा के कारण बच्चे ठीक हो सकते हैं.
क्या कहते हैं चिकित्सक? (Doctors on Spinal Muscular Atrophy)
इस बीमारी के संबंध में डॉक्टर बी एल यादव का कहना है कि यह बीमारी जेनेटिक है और जन्म से ही सामने आती है. लेकिन, इसके लक्षण कुछ समय बाद पता लगते हैं. भारत में इसका कोई उपचार नहीं है. इसमें बच्चों की हड्डियां काम नहीं करती है. विदेश से आने वाली दवा पर चिकित्सकीय टैक्स वगैरा लगाकर काफी महंगी हो जाती है. वर्तमान में इसकी कीमत करीब 16 करोड़ रुपए बताई गई है.