Malegaon Bomb Blast Case: 29 सितंबर 2008... दहल उठा था मालेगांव, 17 साल पहले हुए ब्लास्ट की कहानी

Malegaon Bomb Blast Case: 2016 में एनआईए ने अपर्याप्त सबूतों का हवाला देते हुए प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कई अन्य आरोपियों को बरी करते हुए एक आरोप पत्र दाखिल किया. घटना के लगभग 17 साल बाद आए इस फैसले का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था.

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Malegaon Bomb Blast Case: मालेगांव बम ब्लास्ट मामला, जानिए पूरी कहानी

Malegaon Bomb Blast Case: मालेगांव बम ब्लास्ट मामले (Malegaon Blast Case) में 17 साल के लंबे इंतजार के बाद गुरुवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने फैसला सुनाया. सबूत के अभाव में कोर्ट ने सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि एटीएस और एनआईए की चार्जशीट में काफी अंतर है. अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि बम मोटरसाइकिल में था. प्रसाद पुरोहित के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला कि उन्होंने बम बनाया या उसे सप्लाई किया. यह भी साबित नहीं हुआ कि बम किसने लगाया. घटना के बाद विशेषज्ञों ने सबूत इकट्ठा नहीं किए, जिससे सबूतों में गड़बड़ी हुई. कोर्ट ने यह भी कहा कि धमाके के बाद पंचनामा ठीक से नहीं किया गया, घटनास्थल से फिंगरप्रिंट नहीं लिए गए और बाइक का चेसिस नंबर कभी रिकवर नहीं हुआ. साथ ही, वह बाइक साध्वी प्रज्ञा के नाम से थी, यह भी सिद्ध नहीं हो पाया. आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला?

2008 में हुआ था ब्लास्ट Malegaon Blast Case

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में रमजान के पवित्र महीने में और नवरात्रि से ठीक पहले एक विस्फोट हुआ. इस धमाके में छह लोगों की जान चली गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए. एक दशक तक चले मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 34 अपने बयान से पलट गए. शुरुआत में, इस मामले की जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने की थी. हालांकि, 2011 में एनआईए को जांच सौंप दी गई. 

  • साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर साजिश में सक्रिय भागीदारी के साथ ही हथियार और वाहन उपलब्ध कराने का आरोप लगा. वहीं जिस मोटरसाइकिल LML फ्रीडम पर बम लगाए गए वो साध्वी प्रज्ञा की ही बतायी गई.
  • लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को बम धमाके का “मास्टरमाइंड ” बताया गया. अभिनव भारत संगठन के गठन से लेकर धमाके के लिए विस्फोटक और हथियारों की व्यवस्था कराने के आरोप लगे.
  • रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय : संगठन अभिनव भारत से जुड़े होने, साजिश में सक्रिय भागीदारी और बैठकें आयोजित करने के आरोप लगे.
  • अजय राहिरकर : धमाके के लिए धन इकट्ठा करने, वित्तीय सहायता प्रदान करने और उसके वितरण के आरोप लगे.
  • सुधाकर द्विवेदी : आरोप है की द्विवेदी ने साजिश की बैठकों में शामिल होने के साथ ही, धमाके को अंजाम देने वालों को धार्मिक नैरेटिव के माध्यम से मानसिक तौर पर प्रेरित करने का काम किया.
  • सुधाकर चतुर्वेदी : साजिश की बैठकों में शामिल होने और योजना में भागीदारी का आरोप है.
  • समीर कुलकर्णी पर भी बैठकों का हिस्सा बनने और साज़िश में शामिल होने के आरोप लगे.
इस मामले में सात लोग, जिनमें लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय शामिल हैं, जिन पर मुकदमा चल रहा था. इन सभी लोगों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए हैं. सभी आरोपी वर्तमान में जमानत पर रिहा हैं.

इस मामले में अदालत ने अभियोजन और बचाव पक्ष की ओर से सुनवाई और अंतिम दलीलें पूरी करने के बाद 19 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. अप्रैल में इस मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी थी, लेकिन मामले में एक लाख से अधिक पन्नों के सबूत और दस्तावेज होने के कारण, फैसला सुनाने से पहले सभी रिकॉर्ड की जांच के लिए अतिरिक्त समय चाहिए था. 

2016 में एनआईए ने अपर्याप्त सबूतों का हवाला देते हुए प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कई अन्य आरोपियों को बरी करते हुए एक आरोप पत्र दाखिल किया. घटना के लगभग 17 साल बाद आए इस फैसले का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था.

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17 साल बाद आया फैसला

महाराष्ट्र के मालेगांव ब्लास्ट मामले में 17 साल बाद गुरुवार को अदालत का फैसला आ गया है. इस मामले ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है. मालेगांव के भिक्कू चौक पर हुए बम धमाके में कई निर्दोष लोगों की जान गई थी और दर्जनों घायल हुए थे. इस मामले में मुख्य आरोपी के रूप में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम सामने आया था, जिन पर पहले मकोका लगाया गया था, हालांकि, बाद में हटा लिया गया था.

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