ऐतिहासिक धरोहरों के साथ 'काली मूंछ' चावल है भिंड की पहचान

1956 में जिला भिंड नए मध्य प्रदेश का हिस्सा बना. इस जिले का अपना पौराणिक महत्व भी है. जानकार बताते हैं कि इस जिले का नाम भिंडी ऋषि के नाम पर रखा गया है. एक जमाने में ये उनकी तपोस्थली हुआ करती थी.

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डाकू और बीहड़ से ही नहीं, ऐतिहासिक धरोहरों, इतिहास और पर्यटन संपदाओं से भिंड की पहचान हैं. भिंड संयुक्त राज्य मध्य भारत के 16 जिलों में से एक था. इसका गठन 28 मई, 1948 को किया गया था. 1956 में जिला भिंड नए मध्य प्रदेश का हिस्सा बना. इस जिले का अपना पौराणिक महत्व भी है. जानकार बताते हैं कि इस जिले का नाम भिंडी ऋषि के नाम पर रखा गया है. एक जमाने में ये उनकी तपोस्थली हुआ करती थी. यहां मौर्य वंश से लेकर मुगल साम्राज्य तक का शासन रहा. बाद में सिंधिया के राज्य का हिस्सा बना रहा.

मल्हार राव होल्कर की छतरी बेहद खास

भिंड के सबसे खास स्थानों में मल्हार राव होल्कर की छतरी का नाम आता है. इसका निर्माण 1766 में महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था. भिंड का किला, अटेर का किला और वनखंडेश्वर मंदिर समेत कई पर्यटन स्थल पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है. भिंड को बागियों का गढ़ भी कहा जाता था. सरसों और चावल की प्रसिद्ध किस्म 'काली मूंछ' के उत्पादन से भी इस जिले की पहचान है. ये पांच नदियों का क्षेत्र भी माना जाता है. चंबल, सिंध, क्वारी, वैसली और पहुज नदियां यहां से बहती हैं.

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भिंड का भुजरिया मेला

भिंड में मध्य प्रदेश की पांचवी सबसे बड़ी सहरिया जनजातियां रहती हैं. यहां ब्रज और बुंदेली भाषा ज्यादा बोली जाती है. सावन महीने में जिले के महोबा में भुजरिया मेले का आयोजन होता है. ये मेला वीर योद्धा आल्हा और उदल के नाम से जुड़ा हुआ है. मध्यप्रदेश की पहली सिंचाई परियोजना 'चंबल परियोजना' का लाभ भिंड के लोगों को भी मिलता है. यहां के लोग ज्यादातर डेयरी और खेती-किसानी का काम करते हैं.

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भिंड की खास बातें

  • आबादी - 17.03 लाख
  • विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र - 5
  • प्रमुख फसल - बाजरा, गेहूं, सरसों
  •  जनपद पंचायत- 6
  •  ग्राम पंचायत -447
  •   भिंड जिले में तहसील -8
  •  (भिंड,अटेर, मेहगांव, गोहद, मिहोना,लहार, गोरमी और रौन)
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