Happy Holi: चुकंदर, हल्दी, मोरिंगा की पत्तियों से महिलाओं ने तैयार किया हर्बल कलर, विदेशों तक है डिमांड

Happy Holi: कैमिकल युक्त रंग सस्ता जरूर होता है लेकिन इसके दुष्परिणाम भी होते हैं. जैसे त्वचा संबंधी रोग और आंखों में जलन, लेकिन जो हमारे प्राकृतिक रंग है हमें उनका उपयोग करना चाहिए.

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Holi Herbal Colors: होली रंगों का त्योहार है, खुशियों का पर्व है, लेकिन जिस तरह बाजार में मिल रहे कैमिकल युक्त रंग गुलाल होली के रंग में भंग घोल देते है. इसी से बचने के लिए अब  लोगों का रुझान हर्बल गुलाल की ओर बढ़ने लगा है. खंडवा में महिला स्व सहायता समूह ने ऐसा हर्बल गुलाल तैयार किया है. इसमें फूलों का प्रयोग कर किया गया है. इस  रंगीले हर्बल गुलाल की डिमांड  खंडवा से लेकर विदेशों तक है. 

इस तरह से तैयार हो रहा है रंग 

खंडवा के पंधाना ब्लॉक में स्व सहायता समूह ने पहली बार चुकंदर, देसी हल्दी,पलाश के फूल, मोरिंगा की कच्ची पत्तियों से होली के लिए हर्बल कलर तैयार किया है. ये कलर लोगों को इतना पसंद आ रहा है कि उत्तर प्रदेश के आगरा की हर्बल कंपनी ने महिलाओं द्वारा तैयार किए 400 किलो कलर खरीदा है .

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हर्बल कलर के निर्माण से ना केवल समूह को दोगुना लाभ हुआ बल्कि उनकी आय का अन्य साधन भी बन गया. कंपनी इसे विदेशों तक अच्छे दामो में बेच भी रही है.

हर्बल रंग तैयार करने वाली महिलाओं का कहना कि, अभी तक बाजार में सिंथेटिक कलर होते थे. लेकिन इस बार हल्दी और पलाश के फूलों से हर्बल कलर तैयार किया गया है जो इन महिलाओं का पहला सफल प्रयास है. कलर का त्वचा पर कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होगा. स्व सहायता समूह खालवा , पंधाना ओर खंडवा की महिलाओं के समूह ये हर्बल रंग तैयार किया है.

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जिसमें चुकंदर का रस, देसी हल्दी, मोरिंगा की कच्ची पत्तियों को बारीक पीसकर उसे उबाला और उसका अर्क निकालकर कलर तैयार किया. कलर तैयार करने में कच्चे माल के रूप में आरारोट का उपयोग किया गया. समूह द्वारा  मिलाकर 4 क्विंटल कलर तैयार किया है . 

महिला समूह द्वारा तैयार किया गया यह हर्बल रंग शहर के लोगों को भी खूब पसंद आ रहा है. नगर निगम चौराहे पर लगा स्तर पर काफी लोग हर्बल रंग खरीदने आ रहे हैं. लोगों का कहना है कि केमिकल वाले रंग से चेहरा खराब होता है लेकिन हर्बल रंग से कोई साइड इफेक्ट और कोई नुकसान नहीं होता है.

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कलेक्टर ने की ये अपील

वहीं जिला कलेक्टर ऋषव गुप्ता ने बताया कि प्राय देखा जाता है कि हमारे प्राकृतिक गुलाल की जगह केमिकल युक्त रंगों में जगह ले ली है. केमिकल युक्त सस्ता जरूर होता है लेकिन इसके दुष्परिणाम भी होते हैं. जैसे त्वचा संबंधी रोग और आंखों में जलन, लेकिन जो हमारे प्राकृतिक रंग है हमें उनका उपयोग करना चाहिए. क्योंकि इसी से हमारी होली मनाती आई है. इसी को ध्यान में रखते हुए हमारी आजीविका मिशन की बहनों ने प्राकृतिक गुलाल बनाया है. जिसमें फूलों का और पत्तियों का उपयोग किया गया है. उन्होंने कहा कि हमारा फॉरेस्ट डिपार्मेंट भी इस तरह के रंगों को मना रहा है. उन्होंने अपील करते हुए कहा कि सभी इसी तरह के प्राकृतिक और हर्बल रंग खरीदे. ताकि दुष्परिणामों से बचा जा सके. इससे ना हमसे पारंपरिक होली बना पाएंगे. बल्कि हमारी बहनों को रोजगार भी मिलेगा. 

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