Mobile Addiction: एम्स के रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा, मोबाइल की लत से बच्चों में हो रही है ये गंभीर बीमारी

मोबाइल का इस्तेमाल बच्चों के लिए कितना घातक हो सकता है. इसका खुलासा एम्स भोपाल के एक ताजा रिसर्च में खुलासा हुआ है. जानिए, मोबाइल की लत से बच्चों में किस तरह की बीमारी हो रही है और इससे कैसे बचे?

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Mobile Impact on Children: मोबाइल फोन और स्क्रीन टाइम की बढ़ती आदत बच्चों और किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रही है. एम्स भोपाल (AIIMs Bhopal) के शोध और ओपीडी विश्लेषण ने चौंकाने वाले आंकड़े प्रस्तुत किए हैं. इन रिपोर्ट्स से पता चला है कि मध्यप्रदेश में 33.1% किशोर डिप्रेशन और 24.9% चिंता जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं.

7 साल का मासूम और मोबाइल की लत का खतरनाक असर

भोपाल के 7 वर्षीय सूर्यांश दुबे वर्चुअल ऑटिज्म डिसऑर्डर से पीड़ित है. एक समय ऐसा था, जब सूर्यांश दिन में 8 घंटे मोबाइल का इस्तेमाल करता था. इसके चलते वह बोलने की क्षमता खो बैठा और अजीब तरह की आवाजें निकालने लगा. परिवार ने लाखों रुपये खर्च कर इलाज कराया, जिसके बाद अब स्थिति में थोड़ा सुधार है. सूर्यांश के दादा लक्ष्मीनारायण दुबे ने बताया कि पहले वह 6-8 घंटे तक मोबाइल चलाता था. अब यह आदत घटकर केवल आधे घंटे तक सीमित हो गई है. वह अब धीरे-धीरे बोलना और पढ़ाई करना सीख रहा है.

एम्स भोपाल की रिसर्च के मुख्य निष्कर्ष

कोरोना महामारी के बाद बच्चों और किशोरों की मानसिक स्थिति को समझने के लिए एम्स भोपाल ने 2 साल तक एक अध्ययन किया. इसमें 413 किशोरों को शामिल किया गया, जिनकी उम्र 14 से 19 वर्ष थी.

रिसर्च के आंकड़े

  • 33.1% किशोर डिप्रेशन से पीड़ित
  • 24.9% किशोरों में चिंता के लक्षण
  • 56% किशोरों में उतावलापन
  • 59% किशोरों में गुस्से की अधिकता


अधिकांश किशोरों में एक से अधिक मानसिक समस्याएं

डॉ. अनुराधा कुशवाहा जोकि चाइल्ड साइकोलोजिस्ट और शोधकर्ता हैं. उन्होंने बताया कि हम छोटे बच्चों में ऑटिज्म, डिले स्पीच और किशोरों में चिड़चिड़ापन, आक्रामकता, मोटापा जैसी समस्याएं देख रहे हैं. माता-पिता यह नहीं समझते कि स्क्रीन टाइम को सीमित रखना कितना महत्वपूर्ण है. बच्चे बोलना देर से सीख रहे हैं, लेकिन मशीनों से जल्दी सीख रहे हैं.

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डब्ल्यूएचओ (WHO) की स्क्रीन टाइम गाइडलाइंस

बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की स्पष्ट गाइडलाइंस मौजूद हैं, लेकिन लोगों में इसकी जानकारी की कमी है.

  • 2 साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन से पूरी तरह दूर रखना चाहिए.
  • 2 से 5 साल के बच्चों के लिए स्क्रीन समय 1 घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए.
  • बड़े बच्चों और किशोरों को स्क्रीन टाइम को अन्य शारीरिक और मानसिक गतिविधियों के साथ संतुलित करना चाहिए.

मानसिक स्वास्थ्य पर व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत

एम्स भोपाल के मनोचिकित्सा विभाग के प्रमुख डॉ. विजेंदर सिंह कहते हैं कि स्क्रीन टाइम के कारण बच्चों के विकास में बाधा आ रही है. माता-पिता को बच्चों को परिवार के साथ अधिक समय बिताने और खेल-कूद में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. इनके अलावा, एम्स भोपाल के डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह कहते हैं कि आज की तकनीकी दुनिया में स्क्रीन एडिक्शन से मानसिक और शारीरिक समस्याएं बढ़ रही हैं. हमारे संस्थान में मानसिक स्वास्थ्य के इलाज और वेलनेस सेंटर जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं.

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समाज और परिवार की भूमिका

डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइंस और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह पर ध्यान देना जरूरी है. मोबाइल और गैजेट्स के जरूरत से ज्यादा उपयोग को रोकने के लिए अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका अहम है. बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देकर ही इस बढ़ते संकट से निपटा जा सकता है.

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