कहां है हिंदी माता का मंदिर? साहित्यकारों को करते हैं याद, आज भी चल रहा ये देशव्यापी आंदोलन

Hindi Day 2024: हिंदी दिवस के खास मौके पर NDTV आपके लिए लेकर आया है, खास कहानी.. ये कहानी है हिंदी माता मंदिर से जुड़ी हुई. शायद किसी भाषा के नाम पर मंदिर का होना आपने पहली बार ही सुना होगा. तो चलिए जानते हैं, आखिर कैसे बना हिंदी माता का मंदिर.

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Hindi Mata Mandir Gwalior: हिंदी और हिंदी प्रेमियों के लिए आज का दिन काफी खास है, क्योंकि आज हिंदी दिवस है. इस खास मौके पर NDTV आपके लिए एक खास खबर लेकर आया है. क्योंकि MP गजब है, यहां कई अजब के किस्से हैं. हिंदी दिवस पर ये खास कहानी आई है, चंबल के ग्वालियर शहर से. वही चंबल जो अपनी तासीर के लिए देशभर में जाना जाता है, तभी तो कहा जाता कि चंबल के पानी की तासीर ही अलग है. इसीलिए चंबल की लोक विरासत अन्य प्रांतों से हटकर है.

 अनूठा है ये मंदिर 

अब आते हैं, कहानी पर दरअसल आपने मंदिरों के बारे में तो बहुत सुना होगा. लेकिन भारत का ये शायद अनूठा मंदिर होगा जो किसी भाषा के नाम पर है. ये मंदिर है, हिंदी माता का मंदिर जो स्थित है, ग्वालियर जिले में. एडवोकेट विजय सिंह चौहान  इस मंदिर के संस्थापक है. ये सिर्फ मंदिर नहीं, बल्कि अपनी भाषा को भगवान की तरह पूजने का एक भाव भी है. 

ग्वालियर से यह रिश्ता खास

हिंदी दिवस पर हिंदी माता मंदिरमें कार्यक्रम के दौरान एक समूह चित्र में हिंदी प्रेमी जन.

वैसे तो हिंदी पूरे देश की भाषा है और उसका पूरे देश से ही रिश्ता है. लेकिन ग्वालियर से यह रिश्ता खास है, क्योंकि देश का संभवत पहला हिंदी माता का मंदिर ग्वालियर में ही बनाया गया. हर वर्ष हिंदी दिवस पर यहां आयोजन और पूजा अर्चना भी होती है, यह परंपरा आज भी जारी रही.

देशव्यापी आंदोलन चला रहे...

ग्वालियर में शिंदे की छावनी स्थित सत्यनारायण की टेकरी पर 1995 में कुछ हिंदी प्रेमी लोगों ने छोटा सा हिंदी माता मंदिर बनवाक़र उसमे प्रतिमा और तस्वीर स्थापित करवाई. इसको स्थापित करवाने में  एडवोकेट विजय सिंह चौहान की भूमिका खास है जो चालीस सालों से हिंदी को बढ़ावा देने के लिए देशव्यापी आंदोलन चला रहे है.

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ऐसे आया था विचार

विजय सिंह चौहान का कहना है कि वे लगातार हिंदी के उत्थान के लिए आंदोलन चला रहे थे, उसमे गति आए. इसलिए हमारे मन में आया कि हिंदी माता का मंदिर बनाया जाना चाहिए. उनके अनुसार हमें किसी भी आंदोलन को चलाने के लिए प्रतीकों की जरूरत होती है. इसलिए हमने हिंदी प्रेमी लोगों के साथ मिलकर यह मंदिर स्थापित किया. इसके बाद उनके हिंदी आंदोलन को बहुत गति मिली. अब इसके परिणाम भी आने लगे है न.

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 इस मंदिर पर रोज पूजा होती

 एडवोकेट चौहान कहते हैं कि इस मंदिर पर रोज पूजा होती है. देश भर से हिंदी प्रेमी लोग यहां पहुंचकर प्रेरणा पाते हैं, और फिर हिंदी आंदोलन से जुड़ते हैं. मंदिर निर्माण के बाद देशभर में 60 हिंदी सम्मेलन हो चुके हैं और अब सरकारों से लेकर कॉरपोरेट तक हिंदी के बारे में सोचने के लिए बाध्य हैं. अब दुनिया भर में हिंदी पढ़ाई जाने लगी है. मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसी पढ़ाई और यूपीएससी जैसे एग्जाम में भी हिंदी को स्थान मिलने लगा यह इस आंदोलन का ही परिणाम है.

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