Gwalior Crime News: ग्वालियर के एक ढाबे में दस हज़ार की नौकरी करने वाला रसोइया, अचानक से करोड़ों के खेल में घिर गया. एक ऐसे नोटिस ने उसके दरवाज़े पर दस्तक दी, जिसने उसकी नींद ही नहीं, उसकी पहचान तक छीन ली. आयकर विभाग का दावा था कि उसके खाते से 46 करोड़ का लेन-देन हुआ है. सवाल ये कि जिस आदमी की सालाना आमदनी तीन लाख भी नहीं, वो अचानक करोड़ों का कारोबारी कैसे बन गया? ये कहानी किसी क्राइम थ्रिलर की पटकथा जैसी है. फर्क सिर्फ़ इतना है कि इसका नायक एक बेबस रसोइया है, और खलनायक वही सिस्टम है, जिस पर हम भरोसा करते हैं.
10 हजार की नौकरी, करोड़ों का नोटिस़
भिंड के गांधी नगर निवासी रविन्द्र सिंह चौहान की ज़िंदगी हमेशा चूल्हे-चौके में ही बीती. छठी के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी, क्योंकि घर का खर्च उठाना मुश्किल था. हाथ में हुनर सिर्फ़ कुकिंग का था, तो ढाबे में काम करने लगा. लेकिन कौन जानता था कि एक दिन उसके नाम से ऐसा खाता खोला जाएगा, जिसमें 46 करोड़ रुपये का धंधा घूमेगा, और वो आदमी, जिसे महीने के बस दस हज़ार तनख्वाह मिलती थी वो देश का “करोड़पति” कर चोर घोषित हो जाएगा.
टोल प्लाजा से शुरु हुआ ये खेल !
कहानी शुरू होती है ग्वालियर बायपास के एक टोल प्लाज़ा से. 2017 में रविन्द्र वहां कुकिंग हेल्पर का काम कर रहा था. पेट की मार थी, तनख्वाह थी दस हज़ार. तभी नौकरी में आया सुपरवाइजर—बक्सर, बिहार का शशिभूषण राय. धीरे-धीरे नज़दीकी बढ़ी और एक दिन उसने रविन्द्र को कहा- “तुम्हारा पीएफ निकल सकता है, नया अकाउंट खुलवाओ, हर महीने पांच-दस हज़ार एक्स्ट्रा इनकम होगी. ग़रीबी से जूझता इंसान जब झूठी उम्मीद सुनता है, तो अक्सर सच्चाई का तराज़ू भूल जाता है. रविन्द्र भी उसकी बातों में आ गया.
लालच ने बुरा फंसा दिया !
11 नवंबर 2019 को वो और तीन और लड़के दिल्ली ले जाए गए. पहले घुमाया गया, होटल में ठहराया गया, फिर बैंक में ले जाकर खाते खुलवाए गए. वादा था- हर महीने पैसा आएगा, पर हक़ीक़त में आया सिर्फ़ धोखा. महीनों गुज़र गए, न पीएफ मिला, न कोई इंसेंटिव. रविन्द्र ने अकाउंट बंद कराने की कोशिश की, तो बैंक वालों ने नई पहेली सुना दी- “जीएसटी शाखा की परमिशन चाहिए”.
2023 में टोल कंपनी का कॉन्ट्रैक्ट भी खत्म हुआ और रविन्द्र की भी नौकरी चली गई. पेट पालने के लिए वो पुणे पहुंचा. तभी घर पर अंग्रेज़ी में लिखे नोटिस आने लगे. जिसे पढ़ने की योग्यता न उसमें थी न उसकी पत्नी में . सोचा होगा- “सरकार को भी अगर मज़ाक करना है, तो कम से कम हिंदी में तो करे”. लेकिन जब वकील से पता चला कि नोटिस असली है, तो पैर कांपने लगे. क्योंकि आरोप था- 46 करोड़ के लेन-देन और टैक्स चोरी का.
सच पता चला तो होश उड़ गए !
वकील प्रद्युम्न सिंह भदौरिया की मदद से रविन्द्र ग्वालियर आयकर दफ्तर पहुंचा. जांच में पता चला कि नोटिस असली है. फिर बैंक जाकर हिसाब-किताब निकलवाया गया, तो हकीकत सामने आई- भिंड वाले उसके खाते में तीन साल में तीन लाख का भी ट्रांजेक्शन नहीं हुआ. लेकिन दिल्ली वाले खाते से, जो ‘शौर्या ट्रेडिंग कंपनी' से जुड़ा था, पूरे 46 करोड़ रुपये का धंधा घूम चुका था. खास बात ये है कि आज भी उस खाते में 13 लाख रुपये जमा हैं.
कभी बैंक तो कभी पुलिस का चक्कर
अब रविन्द्र पुलिस के पास पहुंचा. ग्वालियर में शिकायत की, तो पुलिस ने हाथ खड़े कर दिए ये कहकर कि- ये दिल्ली का मामला है, वहीं जाओ. यानी गरीब आदमी का काम अब सिर्फ़ पुलिस-थानों और दफ्तरों के चक्कर लगाना है. अपराधी कहां है, ये पूछने का काम कोई नहीं करेगा. रविन्द्र की कहानी सिर्फ़ उसकी नहीं है. यह उस पूरे सिस्टम की पोल है, जिसमें सबसे आसान शिकार वही है, जिसके पास न पढ़ाई है, न पैसे, न पहुंच. सिस्टम इतना “डिजिटल” हो चुका है कि अब खाते किसी के भी नाम पर खुल सकते हैं, लेन-देन करोड़ों का हो सकता है, लेकिन जब जिम्मेदारी तय करनी हो तो कहा जाता है- “ये हमारा मामला नहीं है”. सोचिए, एक रसोइया अपनी ज़िंदगी किचन में रोटियां सेंकते हुए बिताए, और अचानक उसके हिस्से में थाली नहीं, नोटिस आ जाए. वो आदमी, जो रोज़ पसीना बहाकर अपने बच्चों का पेट पाल रहा हो, उसे कानून यह समझाने लगे कि “तुम करोड़पति हो और हमें हिसाब दो.” यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि वही हकीकत है जिसे हम देखने के बावजूद अनदेखा करते आ रहे हैं. यह आईना है उस व्यवस्था का, जहां मेहनत की रोटी कमाने वाला भी कभी भी ‘करोड़पति अपराधी' घोषित हो सकता है.