यहां स्मार्ट मीटर के खिलाफ हुआ ऐसा जनआंदोलन, पूरा गुलाबगंज हो गया बंद, जानें - पूरा मामला

Gulabganj Strike: विदिशा जिले के गुलाबगंज में स्मार्ट मीटर की परेशानी को लेकर पूरे शहर में बंद का असर देखने को मिला. दुकानें बंद रहने के कारण लोगों को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा.

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विदिशा में स्मार्ट मीटर के खिलाफ आंदोलन

Strike against Smart Meter: बिजली विभाग की मनमानी, स्मार्ट मीटर की मार और 10 गुना बढ़े बिजली बिलों ने जनता को सड़क पर ला खड़ा किया है. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के गुलाबगंज में स्मार्ट मीटर (Smart Meter) के खिलाफ उठी आवाज अब जनांदोलन का रूप ले चुकी है. तीन दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे लोगों को अब व्यापारियों और आम नागरिकों का खुला समर्थन मिल चुका है.

बिजली विभाग के खिलाफ पूरे शहर में बंद

बिजली विभाग के खिलाफ प्रदर्शन

गुलाबगंज में बिजली के नाम पर जनता का धैर्य टूट चुका है. लगातार तीन दिन से भूख हड़ताल पर बैठे लोग अब अकेले नहीं है, बल्कि पूरा गुलाबगंज आज उनके साथ खड़ा है. स्मार्ट मीटर और बढ़े हुए बिजली बिल के खिलाफ व्यापारी, किसान, यहां तक की छात्र तक मैदान में हैं.

व्यापारियों ने कही ये बात

शहर के व्यापारियों ने बिजली विभाग की लापरवाही और परेशानी के बारे में अपनी बात कही. उन्होंने कहा, "हम हर महीने समय पर बिल भरते हैं, फिर ये स्मार्ट मीटर क्यों? 500 रुपये का बिल अब 5 हजार से ऊपर आने लगा है. आम आदमी कहां जाए? हमने अपने प्रतिष्ठान बंद कर दिए. जब पेट भरने के लाले हों तो दुकान चलाकर क्या करेंगे? पहले जनता का बिल कम हो, तभी बाजार चलेगा."

बिजली विभाग के खिलाफ पूरे शहर में बंद

अचानक से बढ़ गया बिजली बिल

स्थानीय नागरिकों का आरोप है कि स्मार्ट मीटर लगने के बाद बिजली के बिल 5 से 10 गुना तक बढ़ गए हैं, जहां पहले महीने में 400-500 रुपये का बिल आता था, अब वही बिल 4000-5000 रुपये तक पहुँच गया है. आम आदमी की जेब पर भारी पड़ते इस बदलाव ने गरीबों और मध्यमवर्गीय परिवारों की नींदें उड़ा दी हैं. इस आंदोलन की सबसे खास बात ये रही कि सिर्फ भूख हड़ताल पर बैठे लोग ही नहीं, बल्कि व्यापारी, किसान, छात्र और स्थानीय नागरिकों तक ने इस आंदोलन का समर्थन किया.

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लोगों के ये हैं आरोप

लोगों का आरोप है कि यह सब विद्युत मंडल और मीटर कंपनी की मिलीभगत से हो रहा है. उनका कहना है कि यह योजना नहीं, सुनियोजित लूट है. लेकिन आश्चर्य की बात है कि अब तक न तो कोई राजनीतिक प्रतिनिधि पहुंचा, न ही प्रशासन की ओर से समाधान की कोई ठोस पहल हुई. जनता अब खुद कह रही है कि सुनने वाला कोई नहीं है.

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