दो महीने पहले गई लाइट आज तक नहीं आई... MP के इस गांव में कठिन है जिंदगी

Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के खारा गांव में जिंदगी कठिन है. गांव में बिजली नहीं है, सड़क नहीं है, और शिक्षा की सुविधा भी सीमित है. बच्चों को पांचवी के बाद स्कूल छोड़ना पड़ता है, और स्वास्थ्य सुविधाएं भी नहीं हैं.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

MP NEWS: किशोर बालाघाट जिले के अति नक्सल प्रभावित गांव खारा में रहता है. अब उसकी उम्र 21 साल हो गई है. उसकी पढ़ाई छूटे हुए करीब 10 साल हो गए है. दरअसल, वह सिर्फ पांचवी तक ही पढ़ पाया है. वह छोटा था, तो सोचता कि बड़ा होऊंगा तो शहर जाकर पढ़ूंगा. लेकिन उसका सपना सिर्फ सपना ही रह गया. अब वह जंगल जाता है और बांस लेकर आता है. साथ ही माता-पिता के साथ खेत के काम हाथ बटाता है.

अब आप सोच रहे है होंगे कि किशोर का स्कूल क्यों छूटा? दरअसल, उनके गांव में सिर्फ प्राइमरी तक का ही स्कूल है. अगर इसके बाद पढ़ना है, तो उन्हें घने जंगलों के बीच से कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ेगा. अब उसके पास दो रास्ते थे एक तो रिश्तेदारों के यहां रहकर पढ़ना या फिर स्कूल छोड़ देना. ऐसे में उसने स्कूल छोड़ना आसान समझा...ये कहानी सिर्फ किशोर की ही नहीं बल्कि उस गांव के कई बच्चों की है, जो पांचवी के बाद स्कूल छोड़ रहे हैं.

Advertisement

एनडीटीवी पहुंचा वन ग्राम खारा

मयूर बिंदु से टीम उस रास्ते पर पहुंची, जहां पर जाना खतरे से खाली नहीं था. ऊंचे-ऊंचे पेड़ों का घना जंगल, जहां कब कहां जंगली जानवरों से आमना-सामना हो जाए पता नहीं. रास्ता पथरीला और पूरा कच्चा. इस रास्ते पर करीब 18 किलोमीटर चलने के बाद रिपोर्टर खारा नाम के गांव में पहुंचा. जहां पर हर घर के ऊपर सोलर पैनल लगे हुए थे. वहां पहुंचने के बाद हमारी मुलाकात एक अम्मा से हुई.

Advertisement

नर्मदा भलावी बताती है कि उनकी नातिन ने पांचवीं तक गांव के स्कूल में पढ़ी. अब उसकी आगे की पढ़ाई कहां होगी पता नहीं. अब वह करीब 28 किलोमीटर दूर उकवा में पढ़ाना चाहते हैं.

Advertisement

दरअसल, वहां के स्कूल में हॉस्टल की सुविधा है. अगर उनका एडमिशन उस स्कूल में नहीं होगा, तो उसे मजबूरन रिश्तेदार के यहां रहकर आगे की पढ़ाई करनी होगी. रिश्तेदार भी गरीब है, उन्हें भी राशन देना होता है. उसके लिए कागज बनवाए जा रहे हैं. अगर समय पर दस्तावेज न बने तो शायद उनका स्कूल छूट जाएगा. वहीं, स्कूल छूटता है तो बच्चे जंगल से बांस का काम और खेती का काम करने को मजबूर हो जाएंगे.

गांव के स्कूल में दो टीचर

अम्मा ने बताया कि गांव के स्कूल में सिर्फ दो टीचर हैं. पहाड़ों के बीच बसे गांव में कोई अधिकारी नहीं आता लेकिन ये दो टीचर अल्टरनेट डे पर जरूर आते हैं. एक दिन एक शिक्षक आता है, तो दूसरे दिन दूसरा शिक्षक आता है. ऐसे में पांच कक्षाओं को दोनों बखूबी पढ़ा रहे है. ऐसे में दुर्गम रास्ते से आने वाले शिक्षकों को एक दिन आराम करने का वक्त जरूर मिल जाता है. इसके पीछे के कारण लाजमी है कि कोई अधिकारी ग्रामीणों की सुध लेने नहीं आता, तो स्कूल पर कौन ही ध्यान देगा.

गांव में न तो बिजली है न ही सड़क

ग्रामीण बताते हैं कि गांव में बड़ी मुश्किल से ही बिजली आ पाती है. गांव में बिजली के खंभे तो पहुंचे लेकिन बिजली कभी-कभी ही आती है. अब करीब दो महीना हो गया बिजली नहीं आई है. इस गांव में बिजली भी मेहमान की तरह आती है. वहीं, बाजार करने के लिए 16 किलोमीटर दूर पैदल वनों के रास्ते से जाना पड़ता है, जहां से दोपहिया भी नहीं गुजरता. वहीं, किसी की तबीयत खराब हो जाए, तो गांव के कुछ लोगों के पास बाइक है. ऐसे में गांव वाले ही एक दूसरे का आसरा बनते हैं. इस गांव में शिक्षा से लेकर चिकित्सा की बड़ी समस्या है.