बुंदेलखंड के इस किले से आल्हा-ऊदल का है गहरा संबंध, अब वजूद पर मंडराया खतरा!

Alha Udal Fort In Chhatarpur: छतरपुर जिले में स्थित आल्हा-ऊदल का किला बुंदेलखंड की गौरवशाली विरासत की गवाही दे रहा है. लेकिन समय के थपेड़ों के साथ ये किला अब जर्जर होता जा रहा है. इसके वजूद पर संकट मंडराने लगा. जानें इस किले का क्या है इतिहास.

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MP News In Hindi: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के छतरपुर (Chhatarpur) जिले में मौजूद आल्हा उदल का किला (Alha Udal Fort) वक्त के साथ जर्जर होता जा रहा है. ये किला जिला मुख्यालय से लगभग 110 किलोमीटर दूर गौरिहार तहसील अंतर्गत किशनपुर गांव में स्थित है. टापू नुमा जगह पर स्थित किला आज भी कई दशकों के किस्सों को समेटे हुए है. पहले इसके चारो ओर तालाब थे, जिसकी वजह से सुरक्षा की दृष्टि से यह किला और भी अभेद था.

सुरक्षा को और मजबूत बनाता है

किले की दरकती दीवारें इस बदहाली को बयां कर रही हैं.

तालाबों में आज भी कुएं बावड़ी तक पहुंचने के गुप्त मार्ग देखे जा सकते हैं. किले के चारों ओर विशाल परकोटा उसकी सुरक्षा को और मजबूत बनाता है. लेकिन यह किला अब जर्जर हो रहा है. दरकती दीवारें इस बदहाली को बयां कर रही हैं.

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दशराज यहां निवास किया करते थे

जानकार बताते हैं कि एक गुप्त मार्ग (सुरंग) केन नदी के टापू पर स्थित रामगढ़ के दुर्ग तक गया हुआ है. यहीं एक गुप्त मार्ग जुझार नगर है, जो अब बारीगढ़ के नाम से भी जाना जाता है. बताया जाता है कि आल्हा ऊदल के पिता दशराज यहां निवास किया करते थे.

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आल्हा उदल का जन्म भी यही हुआ था!

यह विशाल किला संरक्षण के अभाव में जर्जर हो चुका है. किले के लगभग हर अलग-अलग हिस्से में दफीना के चक्कर में लोगों ने खुदाई भी की है, जिसकी वजह से यह किला और भी जर्जर चुका है.

किवदंती यह भी है कि आल्हा उदल का जन्म भी यही हुआ था, जानकार बताते हैं कि किले के एक किलोमीटर की दूरी पर आल्हम देवी दीवार पर अंकित थी, जिसमें साफ तौर पर आल्हा की छठी लिखा, गेरुए रंग का शिलालेख मौजूद था, लेकिन दफीना खोदने वालों ने उस स्थान को भी खुर्द बुर्द कर दिया. 

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यहां से रियासत पर निगरानी रखा करते थे

ऊदल यहां निवास किया करते थे और रियासत पर निगरानी रखा करते थे, इसे पहले दशपुरवा के किले के नाम से जाना जाता था,आसपास घना जंगल होने की वजह से शिकार के लिए भी यह जगह आल्हा उदल को माता का शक्तिपीठ है, यहां आल्हा ऊदल पहुंचे थे और उन्होंने देवी मां की आराधना की थी. आल्हा देवी मां के परम उपासक थे. जब उन्होंने यहां पर साधना की तो देवी मां ने प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए थे, उसके बाद इस स्थान में मंदिर बना. यहां का नाम आल्हा मां के नाम से खेत विख्यात हुआ, जो कालांतर में अपभ्रंश होकर आल्हम देवी के नाम लक से आज भी जाना जाता है. पर्यटन विभाग इस मामले पर ध्यान नहीं दे रहा.

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जानें क्या कहा.. पर्यटन विभाग

गौरिहार के निवासी और इतिहास के जानकार शिक्षक ब्रजकिशोर पाठक बताते हैं कि पर्यटन विभाग को कई बार किले के संरक्षण के बारे में लिखा गया. इस किले को संरक्षित करवाने के प्रयास भी किए गए, पर्यटन और पुरातत्व विभाग की टीम भी आई, लेकिन उन्होंने पर्यटन व आय की दृष्टि से इसे उचित नहीं माना, टीम का कहना था कि शासन के करोड़ों रुपये फंस जाएंगे और पैसा रिफंड नहीं होगा.

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