Fake ID: फर्जी आईडी से झूठ फैलाने वाला शख्स निकला नगर पालिका का अफसर, जानिए क्या है मामला?

Fake ID: पुलिस और साइबर टीम ने जब डिजिटल साक्ष्य जुटाना शुरू किया, तो इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP), डिवाइस लोकेशन और सोशल मीडिया एक्टिविटी के आधार पर एक अंदरूनी लिंक सामने आया. आख़िरकार पुलिस ने पुष्टि की कि फर्जी फेसबुक आईडी चलाने वाला व्यक्ति नगर पालिका का ही एक अधिकारी है.

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Fake ID: फर्जी फेसबुक आईडी से अफवाह फैलाने वाला निकला नगर पालिका का अधिकारी

Fake ID: विदिशा में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है. सोशल मीडिया पर नगर पालिका और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ लगातार झूठी और भ्रामक पोस्ट डालने वाला शख्स कोई बाहरी व्यक्ति नहीं, बल्कि नगर पालिका का ही एक अधिकारी निकला. पुलिस जांच में इसका खुलासा होते ही पूरा सिस्टम सकते में है. शिकायत के अनुसार, ‘जगदीश पारसर' नाम की एक फर्जी फेसबुक आईडी से नगर पालिका की योजनाओं, अधिकारियों और बीजेपी नेताओं के खिलाफ लगातार कटाक्ष और झूठी जानकारियां पोस्ट की जा रही थीं.

क्या है मामला?

यह आईडी काफी समय से सक्रिय थी और धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर सनसनी फैलाने लगी थी. ये पोस्ट कभी भ्रष्टाचार के आरोप लगाती, तो कभी योजनाओं की विफलता का हवाला देती. लेकिन पीछे छिपा चेहरा किसी ने नहीं पहचाना.

मार्च 2025 में नगर पालिका की महिला सहायक यंत्री ने कोतवाली थाने में लिखित शिकायत दर्ज कराई. उन्होंने बताया कि इस फर्जी आईडी से न सिर्फ उन्हें लेकर भ्रामक जानकारियां पोस्ट की गईं, बल्कि उनके मोबाइल नंबर पर आपत्तिजनक मैसेज भी भेजे गए.

पुलिस ने शिकायत को गंभीरता से लिया और साइबर सेल को जांच सौंप दी.

तकनीकी जांच में हुआ बड़ा खुलासा

पुलिस और साइबर टीम ने जब डिजिटल साक्ष्य जुटाना शुरू किया, तो इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP), डिवाइस लोकेशन और सोशल मीडिया एक्टिविटी के आधार पर एक अंदरूनी लिंक सामने आया. आख़िरकार पुलिस ने पुष्टि की कि फर्जी फेसबुक आईडी चलाने वाला व्यक्ति नगर पालिका का ही एक अधिकारी है.

तकनीकी साक्ष्यों से पुष्टि : एसएसपी

एसएसपी, विदिशा डॉ. प्रशांत चौबे ने कहा कि "शिकायत के आधार पर हमने तकनीकी जांच की. उस फेसबुक अकाउंट से जुड़े सभी डिजिटल साक्ष्य इकट्ठा किए. आरोपी की पुष्टि हो चुकी है और उसे हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है. आगे की कानूनी कार्रवाई जारी है.”

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इस खुलासे ने एक बार फिर सोशल मीडिया के गैर-जिम्मेदाराना इस्तेमाल पर सवाल खड़े कर दिए हैं. जब सरकारी सिस्टम के भीतर बैठे लोग ही अफवाहें फैलाने लगें, तो भरोसा कहां टिकेगा? यह मामला सिर्फ एक फर्जी पोस्ट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सिस्टम की साख पर सीधा प्रहार है.

आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ जारी है. डिजिटल डिवाइसेज़ की फॉरेंसिक जांच भी कराई जा रही है. संभावित सस्पेंशन या विभागीय जांच की संभावना है.

फर्जी नाम, असली साजिश

‘फर्जी नाम, असली साजिश' – इस एक लाइन में पूरा मामला समाया जा सकता है. सोशल मीडिया की ताकत को जब साजिश में बदला जाता है, और जब सिस्टम के अंदर बैठे लोग ही इसके सूत्रधार निकलते हैं — तो एक नए तरह का खतरा जन्म लेता है. अब देखने वाली बात होगी कि सरकार और प्रशासन इस झूठ के पर्दाफाश को कितनी पारदर्शिता से संभालते हैं.

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