Panna Tiger Reserve Madhya Pradesh: मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व (पीटीआर) में 57 वर्षीय हथिनी अनारकली ने दो मादा शावकों को जन्म देकर इतिहास रच दिया है. PTR में यह पहला अवसर है जब किसी हथिनी ने एक साथ जुड़वां बच्चों को जन्म दिया हो. दोनों शावकों का जन्म लगभग तीन घंटे के अंतराल में हुआ.
डॉक्टरों और वन्यजीव विशेषज्ञों की निगरानी में माँ और दोनों नवजात पूरी तरह स्वस्थ बताए जा रहे हैं. वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने इसे “प्रकृति का अजूबा और दुर्लभ घटना” बताया है. वन्य जीव विज्ञान में हाथियों का जुड़वां जन्म अत्यंत कम देखा जाता है.
Elephant Twins Birth in Panna Tiger Reserve Madhya Prades
Photo Credit: @PannaTigerResrv
Elephant PTR: पन्ना टाइगर रिजर्व में कुल 21 हाथी
पन्ना टाइगर रिजर्व यूं तो बाघों के लिए फेमस है, मगर यहां पर हाथी भी काफी हैं. अनारकली हथिनी के परिवार में दो नए सदस्यों के आने के बाद अब पीटीआर में हाथियों की कुल संख्या बढ़कर 21 हो गई है. पीटीआर प्रबंधन द्वारा नवजातों के स्वास्थ्य, पोषण और सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.
फील्ड डायरेक्टर नरेश सिंह यादव के अनुसार, अनारकली के लिए दलिया, गन्ना, गुड़ और शुद्ध घी के लड्डू सहित पौष्टिक भोजन की विशेष व्यवस्था की गई है. नवजातों के भोजन और देखभाल को लेकर अलग टीम तैनात की गई है.
Anarkali Elephant Panna: 1986 में आई थी अनारकली
पीटीआर रिकॉर्ड के अनुसार, हथिनी अनारकली को वर्ष 1986 में पन्ना टाइगर रिजर्व में लाया गया था. आज तक वह छह बार शावकों को जन्म दे चुकी है, लेकिन यह पहला अवसर है जब उसने एक साथ जुड़वां मादा शावकों को जन्म दिया है. वन विभाग के अनुसार, प्रशिक्षित हाथी पन्ना टाइगर रिजर्व की सुरक्षा व्यवस्था में अहम भूमिका निभाते हैं. बरसात के मौसम में ये जंगल निगरानी, बाघ गणना और रेस्क्यू मिशन में उपयोग होते हैं. ऐसे में यह जुड़वां जन्म प्रकृति संरक्षण और रिजर्व के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है.
पन्ना टाइगर रिजर्व: एक नजर में
पन्ना टाइगर रिजर्व भारत का 22वां और मध्यप्रदेश का पांचवां टाइगर रिजर्व है. यह विंध्य पर्वतमाला में पन्ना और छतरपुर जिलों के विस्तृत वन क्षेत्र में फैला है.पन्ना राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना साल 1981 में गई थी. साल 1994 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर में शामिल किया गया. पूर्व में यह क्षेत्र पन्ना, छतरपुर और बिजावर रियासतों का राजकीय शिकार क्षेत्र था. आज यह बाघ संरक्षण, मगरमच्छ पुनर्वास और गिद्धों के लिए विश्व स्तर पर पहचान बना चुका है.