Madhya Pradesh News : ग्वालियर के किले (Gwalior Fort) पर सिखों का अंतर्राष्ट्रीय स्तर (International Level) तक चर्चित और महत्ता रखने वाला तीन दिवसीय दाता बंदी छोड़ महोत्सव से शुरु हो गया है. इसमे शामिल होने के लिए न केवल देश, बल्कि दुनिया भर से सिख धर्म (Sikh Religion) से जुड़े लोग ग्वालियर पहुंचते हैं. खास बात ये है कि यह आयोजन ग्वालियर में जिस गुरुद्वारे (Gurudwara) पर होता है, वह एक ऐतिहासिक किले में है. इस किले पर गुरुद्वारे की स्थापना इसलिए हुई, क्योंकि मुगल बादशाह (Mughal Emperor) ने सिखों के छठवें गुरु हरिगोविंद सिंह (Guru Hargovind Singh) साहब को इसी किले में कैद करके रखा था. बता दें कि यहीं से उनको दाता बंदी छोड़ का नाम मिला था.
कौन थे सिखों के छठवें गुरु
हरिगोविंद सिंह सिख पंथ के छठवें गुरु थे. वे पांचवे गुरु अर्जन देव के पुत्र थे. गुरु हरिगोविंद सिंह ने ही सबसे पहले सिखों को शारीरिक सौष्ठव और अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए निपुण होने के लिए प्रेरित किया. पांचवे गुरु सिर्फ भक्तिभाव मे लीन थे, लेकिन उनकी शहीदी के बाद छठवें गुरु बने हरिगोविंद सिंह ने भक्ति के साथ शक्ति को भी बराबर का स्थान दिया. उन्होंने सिखों की सैन्य शक्ति बढ़ाने की दिशा में कदम उठाया. उन्होंने ही अकाल तख्त की नींव रखी थी.
ऐसे हुई रिहाई और नाम पड़ा दाता बंदी छोड़
ग्वालियर किले में कैद के लिए लाए गए गुरु साहेब जब यहां पहुंचे तो वहां किले में 52 राजा और कैद थे, जिन्हें तरह-तरह के मुगलिया उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा था. लेकिन मुगल बादशाह जब आगरा पहुंचा तब अचानक बीमार पड़ गया. नजूमी बुलाये गए, उसने उत्तम स्वास्थ्य के लिए ग्वालियर के किले में चालीस दिनों तक पूजा-पाठ करवाने के लिए कहा और यह भी कहा कि इस काम में सिखों के महान गुरु हरिगोविंद सिंह को लगाया जाए. इसी बहाने गुरु साहेब को ग्वालियर भेजा गया. बादशाह के लिए पूजा हुई, वह स्वस्थ्य भी हो गया लेकिन गुरु को भूल गया.
गुरु साहेब 2 साल 3 महीने ग्वालियर के किले में कैद रहे. इसके बाद बादशाह को गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने मनसबदार को ग्वालियर भेजा जिसने संदेश दिया कि वे दिल्ली चलें और बादशाह से मिलें. साहेब ने मना कर दिया बोले वे तो अब यहीं भक्ति में लीन हैं. लेकिन उनका असल मकसद था बंदी राजाओं की रिहाई. गुरु ने एक साथ सभी राजाओं की रिहाई की शर्त रख दी. इससे बगावत की आशंका के चलते जहांगीर घबरा गया. उसने मल्लिका नूरजहां से भी सलाह किया. उनके मशविरा के संदेश के साथ वजीर फिर आया.
सभी 52 राजाओं ने एक एक कली पकड़ ली. सब दरोगा के सामने गुरु का दामन थामें किले से बाहर आ गए. बाकी कैदी भी पीछे-पीछे बाहर निकल आये. दरोगा हरिदास ने ऊंची आवाज में जयकारा लगाया - बंदी छोड़ सतिगुरु. उसने चरण वंदना भी की. जयकारे गूंजने लगे - जै दाता बंदी छोड़. तब से उनका नाम ही दाता बंदी छोड़ पड़ गया. बाद में किले पर इसी नाम से एक गुरुद्वारे की स्थापना हुई.
दाता बंदी छोड़ उत्सव
सिखों के छठवें गुरु हरिगोविंद सिंह की मुगलों से रिहाई की याद में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ग्वालियर स्थित गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ पर दाता बंदी छोड़ महोत्सव मनाया जा रहा है. 12 से 14 अक्टूबर तक मनाए जा रहे इस महोत्सव में देश भर के ही नहीं बल्कि दूसरे मुल्कों में भी रहने वाले सिख समाज के लोग भी इस आयोजन में शामिल होने ग्वालियर पहुंच रहे हैं. इसके साथ ही अमृतसर और देश के अलग-अलग हिस्सों से सिख संगत भी ग्वालियर पहुंच चुकी है.
अमृतसर से पैदल पहुंचा कीर्तन दल
अमृतसर से पैदल चलकर आई कीर्तन यात्रा ग्वालियर पहुंच चुकी है. यात्रा में लगभग 250 धर्मावलंबी अमृतसर से चलकर ग्वालियर पहुंचे हैं. यह शबद चौकी रोजाना किले के ऊपर गुरुद्वारा की परिक्रमा करेगी, फिर पूरे किले की परिक्रमा करने के बाद पैदल यात्रा वापिस अमृतसर जाएगी.
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