छिंदवाड़ा में बना श्री बादलभोई आदिवासी राज्य संग्रहालय, PM मोदी कल करेंगे उद्घाटन, जानें क्या है खासियत 

MP News: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को समर्पित श्री बादलभोई आदिवासी राज्य संग्रहालय का नया भवन बनकर तैयार हो गया है. कल 15 नवंबर को पीएम नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन करेंगे.

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Madhya Pradesh News: जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को समर्पित श्री बादलभोई आदिवासी राज्य संग्रहालय के नए भवन का उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) 15 नवंबर को करेंगे . इस भवन में स्वतंत्रता संग्राम के आदिवासी नायकों के योगदान को विशेष रूप से दर्शाया गया है. आदिवासी बहुल छिंदवाड़ा के बादल भोई संग्रहालय में आदिवासी कलाकृतियों और संस्कृति को दीवार पर अंकित किया गया है.

संपूर्ण परिचय दर्शाया गया है

ट्राइबल रिचर्स इंस्टीट्यूट भोपाल की टीम की देखरेख में इसका कायाकल्प किया गया है.बादलभोई संग्रहालय पहले से ही यहां स्थापित है और पहले आदिवासी संस्कृति और खान पान को दर्शाया गया था. लेकिन अब इसे विस्तार देते हुए आदिवासी नायकों का आजादी की लड़ाई में उनका योगदान और उनका संपूर्ण परिचय दर्शाया गया है.

संग्रहालय की दीवारों पर टंट्या भील, भीमा नायक, शंकर-शाह रघुनाथ शाह, रघुनाथ सिंह मंडलोई, राजा गंगाधर गोंड, बादल भोई और सीताराम कंवर, ढिल्लन शाह गोंड मालगुजार, राजा अर्जुन सिंह गोंड, राजा गंगाधर गोंड की शौर्यगाथा को दिखाया गया है. 

इसके अलावा बांस शिल्प, लौह शिल्प और पेंटिंग के माध्यम से जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को दिखाया गया है.इस संग्रहालय की स्थापना 20 अप्रैल 1954 को हुई थी. 8 सितम्बर 1997 को इस संग्रहालय का नाम बदलकर कर श्री बादल भोई राज्य आदिवासी संग्रहालय कर दिया गया.

श्री बादल भोई आदिवासी संग्रहालय 8 एकड़ क्षेत्र में फैले इस परिसर में 14 कमरे और 4 गैलरियों में संचालित है. इस संग्रहालय को विस्तार देने के लिए तीन साल पहले 33 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई थी.संग्रहालय में आदिवासी जनजाति बैगा, गोंड, भारिया समेत अन्य जन जातियों की जीवन शैली, सांस्कृतिक धरोहर, प्रतीक चिन्हों और शिल्पों को अंकित किया गया है.

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परंपरा से रूबरू हो सकेंगे

जनजातीय कार्य विभाग के सहायक आयुक्त सत्येंद्र सिंह मरकाम ने बताया कि सरकार की मंशा अनुसार श्री बादल भोई राज्य आदिवासी संग्रहालय बनकर तैयार हो गया है. यहां पर सैकड़ों वर्ष पुरानी जनजातियों की परंपरा और उनका स्वतंत्रता के संघर्ष में योगदान को दिखाया गया है, जिससे लोग उनकी परंपरा से रूबरू हो सकें.

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