एमपी में पहली ही बारिश में बह गया पुल, सीधी में ग्रामीणों की बढ़ गईं मुश्किलें, रास्ता हुआ बंद

MP News In Hindi: मध्य प्रदेश के सीधी में बना पुल बारिश के पहले ही सीजन में बह गया. पुल के बहने से ग्रामीणों की मुश्किलें बढ़ गईं. उनका रास्ता बंद हो गया. ये मामला कुसमी विकासखंड के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र का है. जानें यहां कैसे प्रोजेक्ट बैगा को लेकर खेल किया जा रहा है.

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एमपी में पहली ही बारिश में बह गया पुल, सीधी में ग्रामीणों की बढ़ गईं मुश्किलें, रास्ता हुआ बंद.

Sidhi News: एमपी के सीधी जिले का कुसमी विकासखंड आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. यहां विकास के लिए शासन के द्वारा करोड़ों रुपये फूंक दिए गए. लेकिन आज तक तस्वीर नहीं बदल पाई है. आवागवन की सुदृढ़ व्यवस्था के लिए जो पुल-पुलिया बनाए गए, वह पहली बरसात में ही बह गए हैं. अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर इनकी गुणवत्ता कैसी रही है कि एक बरसात भी यह लाखों रुपये के बने निर्माण कार्य नहीं झेल पाए हैं.

बैगा प्रोजेक्ट के नाम पर मजाक

शासन द्वारा बैगा जाति को लेकर काफी प्रयास किये जा रहे हैं. जन-मन योजना सहित अनेकों ऐसी योजनाएं हैं, जिनके तहत बैगा समाज को आगे लाने का प्रयास किया जा रहा है. क्षेत्र में निर्माण का कार्य भी तेजी के साथ कराया जा रहा है, जिसमें सड़क निर्माण और पुल-पुलियों का निर्माण शामिल है. यहां निर्माण एजेंसियों के अधिकारी कर्मचारी भ्रष्टाचार करने में लगे हुए हैं, जिसके चलते लाखों रुपये के बने निर्माण कार्य एक बरसात भी नहीं झेल पाए.

नाले पर बना पुल बह गया

जिले के जनपद पंचायत कुसमी अंतर्गत ग्राम पंचायत खैरी से देवदंडी पहुंच मार्ग के गेरमनिया नाले में पुल का निर्माण कराया गया था, जो लगभग 15 लाख रुपये की लागत से निर्मित था. वह पहले ही बरसात में धराशाई हो गया है. बैगा समाज सहित अन्य वर्गों के लोगों का आना-जाना संभव नहीं हो पा रहा है, यह पुल एक झटके में एक बारिश में ही खत्म हो गया.

80 प्रतिशत आबादी बैगा समाज की

ग्राम खैरी केदेडंडी गांव में 80 फीसदी आबादी बैगा समुदाय की है. सरकार ने उनके लिए करोड़ों रुपए का प्रोजेक्ट स्वीकृत किया है, जो अलग-अलग क्षेत्र में उनके विकास कार्य के लिए रखा गया. यह एक ऐसी जाति है, जो विलुप्त होने की कगार पर है. इसलिए सरकार इसके संरक्षण के साथ उत्थान का प्रयास कर रही है. लेकिन बैगा समाज के विकास की जगह मजाक किया जा रहा है.

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स्कूल नहीं पहुंच पा रहे छात्र-छात्राएं

पुल के टूट जाने के कारण छात्र छात्राएं स्कूल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, आदिवासी अंचलों में बारिश के पानी का तेज प्रभाव रहता है और ऐसे में टूटे पुल से स्कूल तक पहुंचना संभव नहीं हो पा रहा है. ग्रामीणों द्वारा कोशिश भी की जाती है पर पानी अधिक होने के कारण उनकी हिम्मत नहीं हो पाती कि अपने बच्चों को स्कूल भेज सकें.

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गुणवत्ता पर सवाल? 

पुल का निर्माण आरईएस विभाग एवं आदिम जाति कल्याण विभाग के द्वारा कराया गया था 15 लाख रुपये की लागत से बनी पुल के टूट जाने के बाद तकनीकी अमले और गुणवत्ता पर तरह-तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. नियमानुसार पुल के निर्माण के लिए बाकायदा प्राक्कलन तैयार होता है, उसमें सभी मटेरियल की मात्रा निर्धारित होती है, और इसकी मॉनिटरिंग भी इंजीनियर एसडीओ वह एग्जीक्यूटिव इंजीनियर करते हैं. लेकिन सवाल यह है कि जब पुल का निर्माण हो रहा था तो उसके गुणवत्ता को परखने का कार्य क्यों नहीं किया गया.

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