आजीविका मिशन की मदद से सविता के जीवन में आई खुशहाली, गरीब परिवार की सविता ऐसे बन गई सफल व्यवसायी

सविता की कहानी एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि कैसे एक गरीब परिवार की महिला अपने सपनों को पूरा कर सकती है और आत्मनिर्भर बन सकती है. सविता ने आजीविका मिशन के माध्यम से न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार किया, बल्कि अपने समाज में भी एक नई पहचान बनाई है.

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गरीब परिवार की सविता ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके दिन बदल जाएंगे और वह एक व्यवसायी बन जाएगी, लेकिन जहां चाह होती है वहां राह निकल ही आती है. सविता के साथ भी ऐसा ही हुआ है. सविता के मन में आगे बढ़ने और आत्मनिर्भर बनने की ललक थी, लेकिन पूंजी का अभाव था. ऐसे में आजीविका मिशन से मिली मदद ने उसके दिन बदल दिये हैं और वह एक सफल व्यवसायी बन गई है.

बालाघाट जिले की लालबर्रा तहसील के ग्राम खमरिया की निवासी सविता खरोले ने बहुत गरीबी देखी है। परिवार के जीवन यापन के लिए उसे गांव में ही मजदूरी करना पड़ता था. पति गुरूप्रसाद भी छोटी सी चिकन शॉप चलाने के साथ मजदूरी किया करता था. इससे केवल इतनी आय होती थी कि किसी तरह दो वक्त की रोटी इंतजाम हो जाता था.

कक्षा-10वीं तक पढ़ी सविता अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए प्रयास कर रही थी, लेकिन परिवार के आर्थिक हालात उसे आगे नहीं बढ़ने देते थे. वर्ष 2019 में आजीविका मिशन के लोग गांव में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाने के लिए आए थे तो सविता भी इस मिशन से जुड़ गई. 15 फरवरी 2019 को रविदास आजीविका स्वं सहायता समूह का गठन किया गया और सविता को इस समूह का अध्यक्ष बनाया गया.

सविता के नेतृत्व‍ एवं अनुशासन में उनका समूह अच्छा कार्य करने लगा. समूह की महिलाओं के आपसी लेनदेन एवं नियमित रूप से बचत को देखते हुए आजीविका मिशन द्वारा समूह को पहले 05 हजार रुपये की रिवाल्विंग फंड की राशि दी गई. इसके बाद समूह की महिलाओं को स्वयं का व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए सीआईएफ की 50 हजार रुपये एवं सीसीएल की 30 हजार रुपये व 2 लाख रुपये की राशि प्राप्त  हो गई.

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सविता ने समूह को मिली राशि से 30 हजार रुपये लोन लेकर अपने पति के लिए अक्टूबर 2021 में जूते-चप्पल की दुकान खोल दी. इसके बाद उसने अक्टूबर 2022 में समूह से 2 लाख रुपये का लोन लेकर कपड़े की दुकान शुरू की. वर्ष 2023 में सविता ने बैंक से 1 लाख रुपये का मुद्रा लोन लेकर कपड़े की दुकान का काउंटर बनाया और उसे अच्छी तरह से सजाया-संवारा. जूते-चप्पल एवं कपड़ा दुकान से सविता के परिवार को आय होने लगी तो उसने पति की चिकन शॉप को भी पक्का बना दिया है.

सविता और उसके पति गुरूप्रसाद के दिन अब बदल गए हैं. उनके तीनों व्यवसाय अच्छे से चलने लगे हैं. उन्हें अब मजदूरी करने नहीं जाना पड़ता है. उसके परिवार को हर माह 25 हजार रुपये की आय हो जाती है. आर्थिक स्थिति अच्छी होने से सविता अपने दोनों बेटों की पढ़ाई पर भी विशेष ध्यान दे रही है. उसका बड़ा बेटा बड़े शहर में माइनिंग की पढ़ाई कर रहा है और छोटा बेटा अपनी पढ़ाई के साथ उनके व्यवसाय में मदद करता है.

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सफल व्यावसायी बनने से सविता और उसके पति का समाज में रूतबा भी बढ़ गया है और समाज में मान सम्मान मिलने लगा. सविता अपने समूह से लिए गए ऋण एवं बैंक से लिए गए लोन की किश्त भी समय पर अदा कर रही है और अपने परिवार के लिए बचत भी कर रही हैं. सविता अपने समूह के लिए एवं आजीविका मिशन के लिए उदाहरण बन चुकी है. सविता कहती हैं कि वक्त से पहले और किस्मत से ज्यादा किसी को नहीं मिलता है. उसके जीवन का यह बदलाव आजीविका मिशन के समूह से जुडने के बाद ही संभव हो पाया है. आजीविका मिशन ने उसे आत्म विश्वास देने के साथ ही आत्म निर्भर बना दिया है.