धीरेन्द्र शास्त्री केस में कोर्ट का अहम फैसला, बागेश्‍वर बाबा ने क‍िसे बताया था 'देशद्रोही'?

Bageshwar Baba News: मध्‍य प्रदेश के शहडोल कोर्ट ने बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के खिलाफ दायर परिवाद को खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि महाकुंभ को लेकर दिए गए उनके बयान से कोई अपराध प्रमाणित नहीं होता. 

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Bageshwar Baba News: बागेश्‍वर बाबा कथावाचक धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद के मामल में कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. मध्‍य प्रदेश के शहडोल की जिला न्यायालय ने प्रथम दृष्ट्‌या अपराध प्रमाणित न होने पर संज्ञान लिए जाने से इनकार क‍िया है. धीरेंद्र शास्त्री के महाकुंभ 2025 में न जाने वालों को लेकर एक बयान द‍िया था, ज‍िस पर शहडोल के एक अधिवक्ता ने उनके ख‍िलाफ कोर्ट में परिवाद लगाया गया था. 

विदित है कि बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के विरूद्ध परिवादी संदीप तिवारी द्वारा एक परिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया था, जिसमें धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री द्वारा प्रयागराज महाकुंभ के समय दिए गए बयान को असंवैधानिक, आपत्तिजनक तथा भड़काऊ बताया गया था तथा धीरेन्द्र शास्त्री के विरूद्ध भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 196, 197(2), 299, 352, 353 एवं आई.टी. एक्ट की धारा 66ए, 67 के अपराध के संदर्भ में परिवाद प्रस्तुत किया था. 

शहडोल जिला अदालत के  न्यायिक मजिस्ट्रेट  सीताशरण यादव के न्यायालय द्वारा परिवादी एवं उसके साक्षी के कथन लेखबद्ध किए, जिसमें उनके द्वारा धीरेन्द्र शास्त्री के कथन  ''जो महाकुंभ में नहीं आयेगा वह पछतायेगा और देशद्रोही कहलायेगा'' से स्वयं को आहत होना बताया तथा प्रकरण में धीरेन्द्र शास्त्री के विरूद्ध संज्ञान लिये जाने की बात कही. 

धीरेन्द्र शास्त्री की ओर से उनके वकील समीर अग्रवाल  शहडोल द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि धीरेन्द्र शास्त्री द्वारा कोई ऐसे शब्द नहीं कहे गए, जिससे कि परिवादी आहत होता हो या किसी का भी अपमान होता हो. धीरेन्द्र शास्त्री द्वारा कहे गए शब्द से नागरिकों के किसी वर्ग को उकसाने वाले, अमर्यादित अथवा भड़काऊ नहीं थे. उभयपक्षों द्वारा तत्संबंध में अपने-अपने तर्क व विभिन्न न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किए गए.

न्यायालय द्वारा उभयपक्ष एवं उनके अधिवक्ता के तर्क सुनने के उपरांत यह पाया कि प्रकरण में प्रस्तुत परिवाद एवं कथनों से प्रथम दृष्ट्या यह प्रमाणित नहीं पाया जाता कि धीरेन्द्र शास्त्री द्वारा किसी वर्ग, सम्प्रदाय या व्यक्ति के अपमान अथवा दुष्प्रेरण हेतु कोई बयान दिया गया था और न्यायालय द्वारा परिवादी के आरोपों को निराधार पाते हुए धीरेन्द्र शास्त्री के विरूद्ध प्रस्तुत उक्त परिवाद पर संज्ञान लेने से इंकार करते हुए परिवादी का परिवाद पत्र निरस्त कर दिया. प्रकरण में धीरेन्द्र शास्त्री की ओर से अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने पैरवी की थी. 

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