Swami Vivekananda Jayanti 2025: उठो, जागो... युवा दिवस पर जानिए स्वामी विवेकानंद के जीवन, विचार और भाषण

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि प्रत्येक राष्ट्र का एक जीवन प्रयोजन होता है, और जब समय व आवश्यकता होती है तो राष्ट्र का जन्म होता है. और जब उस प्रयोजन की आवश्यकता समाप्त होती है तो उस राष्ट्र का विलय हो जाता है.

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National Youth Day Quotes: स्वामी विवेकानंद से जुड़े कुछ खास कोट्स हिन्दी में

163rd Birth Anniversary of Swami Vivekananda: युवाओं के लिये प्रेरणास्रोत के रूप में स्वामी विवेकानंद की जयंती, 12 जनवरी को हर वर्ष भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस (National Yuva Diwas 2025) तथा राष्ट्रीय युवा सप्ताह मनाया जाता है. राष्ट्रीय युवा सप्ताह के एक हिस्से के रूप में भारत सरकार प्रत्येक वर्ष राष्ट्रीय युवा महोत्सव का आयोजन करती है और इस महोत्सव का उद्देश्य राष्ट्रीय एकीकरण, सांप्रदायिक सौहार्द्र तथा भाईचारे में वृद्धि करना है. इस साल स्वामी विवेकानंद की 163वीं जयंती है. स्वामी विवेकानंद का मानना था कि किसी भी राष्ट्र का युवा जागरूक और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित हो, तो वह देश किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है. युवाओं को सफलता के लिये समर्पण भाव को बढ़ाना होगा तथा भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये तैयार रहना होगा, विवेकानंद युवाओं को आध्यात्मिक बल के साथ-साथ शारीरिक बल में वृद्धि करने के लिये भी प्रेरित करते हैं.

युवा कौन हैं?

राष्ट्रीय युवा दिवस हर साल 12 जनवरी को महान आध्यात्मिक नेता, दार्शनिक और विचारक स्वामी विवेकानंद की स्मृति में मनाया जाता है. स्वामी विवेकानंद का प्रेरक जीवन और सशक्त संदेश युवाओं को देता है.  15-29 वर्ष के आयु वर्ग के भीतर युवाओं को परिभाषित किया जाता है , जो भारत की कुल आबादी का लगभग 40% हिस्सा हैं. समाज के सबसे जीवंत और गतिशील क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए, यह समूह देश का सबसे मूल्यवान मानव संसाधन है.

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स्वामी विवेकानंद का जीवन (Swami Vivekananda Life)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 में हुआ था. इनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था और इनके गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था. अपने गुरु के नाम पर विवेकानंद ने रामकृष्ण मिशन तथा रामकृष्ण मठ की स्थापना की. विश्व में भारतीय दर्शन विशेषकर वेदांत और योग को प्रसारित करने में विवेकानंद की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, साथ ही ब्रिटिश भारत के दौरान राष्ट्रवाद को अध्यात्म से जोड़ने में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण मानी जाती है. इसके अतिरिक्त विवेकानंद ने जातिवाद, शिक्षा, राष्ट्रवाद, धर्म निरपेक्षतावाद, मानवतावाद पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं, विवेकानंद की शिक्षाओं पर उपनिषद्, गीता के दर्शन, बुद्ध एवं ईसा मसीह के उपदेशों का प्रभाव है. उन्होंने वर्ष 1893 में शिकागो विश्व धर्म सम्मलेन में वैश्विक ख्याति अर्जित की तथा इसके माध्यम से ही भारतीय अध्यात्म का वैश्विक स्तर पर प्रचार-प्रसार हुआ.

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वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजीत सिंह के अनुरोध पर उन्होंने 'विवेकानंद' नाम अपनाया. उन्होंने विश्व को वेदांत और योग के भारतीय दर्शन से परिचित कराया. वर्ष 1902 में बेलूर मठ में उनकी मृत्यु हुई थी.

स्वामी विवेकानंद जी के कोट्स (Swami Vivekananda Quotes)

एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ.

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तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता. तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना हैं.

जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे. खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे.

कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो. जो देना है वो दो, वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो.

वह नास्तिक है, जो अपने आप में विश्वास नहीं रखता.

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ऐतिहासिक भाषण के अंश (Swami Vivekananda Speech)

अपने भाषण के दौरान स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि अमरीकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है. मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देता हूं. सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से आपका आभार व्यक्त करता हूं. मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने यह ज़ाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है. मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है. हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं. मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी. मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली.

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