Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti 2024: छोटे से सरदार क्यों थे असरदार? जानिए उनकी विरासत

Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti: सरदार पटेल के लौह इरादों के आगे कुछ भी असंभव नहीं था. उन्होंने अपने दृढ़ नेतृत्व से अलग-अलग रियासतों में बंटे भारत को एकता के सूत्र में पिरोया. पूरा जीवन देश के लिए जीने वाले सरदार पटेल की जयंती पर लौहपुरुष सरदार पटेल जी का जन्मदिवस राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है. वहीं अब सरकार ने फैसला किया है कि उनके 150वें जन्मदिवस के मौके पर देश भर में अगले 2 वर्षों तक विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे.

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Birth Anniversary Of Sardar Patel: एकता की मिसाल कहे जाने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel) ने हमेशा देश की एकता को सबसे आगे रखा था. उन्होंने बड़ी कुशलता से आजादी के बाद देश का एकीकरण करते हुए भारत के निर्माण और एकीकरण में सफलता हासिल की थी. तभी तो उनके बारे में कहा जा सकता है असरदार सरदार. राजनीतिक और कूटनीतिक क्षमता का परिचय देते हुए स्वतंत्र भारत को एकजुट करने का असाधारण कार्य बेहद कुशलता से करने वाले सरदार पटेल की जयंती (Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti) को राष्ट्रीय एकता दिवस (National Unity Day) दिवस के रूप में मनाया जाता है.

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150वीं जयंती दो साल तक मनायी जाएगी

देश के पहले गृह मंत्री और लौह पुरुष के नाम से विख्यात सरदार वल्लभभाई पटेल की इस बार 149वीं जयंती है. सरकार 2024 से 2026 तक दो वर्षीय राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम के साथ सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती मनाएगी. 2014 से हर वर्ष इस दिन को एकता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है. सरदार पटेल के दृढ़ निश्चय, राष्ट्र के प्रति कर्तव्यपरायणता और लौह इरादों का परिणाम है कि आज भारत आजादी के 76 वर्षों के बाद दुनिया के सामने सम्मान के साथ अड़िग और अखंड रूप में खड़ा है. एकता दिवस के दिन पूरा देश एकता दौड़ (रन फॉर यूनिटी) और राष्ट्रीय एकता दिवस की शपथ लेता है.

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स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (Statue Of Unity)

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण सरदार वल्लभ भाई पटेल के सम्मान में किया गया है. यह सरदार सरोवर बांध से 3.5 किलोमीटर की दूरी पर एक खूबसूरत स्थान पर बनाई गई है स्टैच्यू ऑफ यूनिटी गुजरात के केवडिया में स्थित है. यह विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है. इसकी ऊंचाई 182 मीटर है. इसमें 135 मीटर ऊंचाई पर एक दर्शक दीर्घा है, जिसमें 200 लोग बैठकर ये विहंगम दृश्य देख सकते हैं. स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण सिर्फ 46 महीनों में पूरा किया गया है. इसमें 70 हजार मीट्रिक टन सीमेंट का उपयोग हुआ है, 6 हजार मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18 हजार 500 मीट्रिक टन रिएनफोर्समेंट बार का इस्तेमाल हुआ है. सरदार पटेल की 143वीं जयंती के अवसर पर 31 अक्तूबर, 2018 को इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था. यह स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुनी ऊंची है. इसे सुप्रसिद्ध मूर्तिकार राम वी सुतार द्वारा डिजाइन किया गया है.

सरदार पटेल जीवन परिचय (Sardar Vallabhbhai Patel Biography)

31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के आणंद के पास स्थित करमसाद गांव के एक साधारण भूस्वामी के यहां जन्में बच्चे का नाम वल्लभभाई जवेरभाई पटेल रखा गया था. किसान परिवार में जन्मे पटेल अपनी कूटनीतिक क्षमताओं के लिए भी याद किए जाते हैं. सरदार पटेल को अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने में काफी वक्त लग गया था, उन्होंने 22 साल की उम्र में 10वीं की परीक्षा पास की थी. एक युवा वकील के रूप में अपनी कड़ी मेहनत के ज़रिए उन्होंने पर्याप्त पैसा बचाया ताकि वह इंग्लैंड में उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें. आने वाले समय में वह एक निडर वकील के तौर पर बड़े हुए, जिसे जनहित के मुद्दों पर कड़े एवं निडर अधिवक्ता के रूप में जाना जाता था.

उनके बारे में कहा जाता है कि 36 साल की उम्र में सरदार पटेल वकालत पढ़ने के लिए इंग्लैंड गए थे, उनके पास कॉलेज जाने का अनुभव नहीं था फिर भी 36 महीने के वकालत के कोर्स को उन्होंने महज 30 महीने में ही पूरा कर दिया था. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने स्वतंत्रता के पश्चात् भारत की एकजुटता के लिए पुरजोर तरीके से पूरी मज़बूती के साथ काम किया. जिससे एक नए राष्ट्र का उदय हुआ.

देश की एकता की रक्षा करने के समक्ष कई चुनौतियां स्पष्ट रूप से मौजूद थीं. सरदार पटेल ने लाजवाब कौशल के साथ इन चुनौतियों का सामना करते हुए देश को एकता के सूत्र में बांधने के कार्य को पूरा किया और एकीकृत भारत के शिल्पकार बने. उन्होंने स्वतंत्रा आंदोलन समेत कई मोर्चों पर सफल नेतृत्व किया था. सरदार पटेल ने ही सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया था. उन्होंने शराब के सेवन, छुआछूत, जातिगत भेदभाव और महिला मुक्ति के लिये व्यापक पैमाने पर काम किया था. सरदार पटेल का देहांत दिल का दौरा पड़ने के कारण 15 दिसम्बर 1950 को 75 वर्ष की आयु में हो गया था.

देश को एकता के सूत्र में ऐसे पिरोया

आजादी के बाद फूट डालो और राज करो की नीति अपनाने वाले अंग्रेज भारत को खंडित और छोटी-छोटी रियासतों में बांटते हुए छोड़कर गए थे. उस दौर में 550 से अधिक रियासतों को कुछ ही दिनों में एकता के सूत्र में पिरोकर भारत माता का वर्तमान मानचित्र बनाने का एक विराट काम लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने किया था. सावधानीपूर्वक योजना बनाने, बातचीत, परामर्श और चतुराई से निपटने हुए उन्होंने आधुनिक इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक सभी रियासतों का भारत में विलय कराया था. मातृभूमि के लिए उनका प्रेम, नेतृत्व क्षमता, सादगी, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, जमीन से जुड़े होने की प्रवृति, उलझी हुई समस्याओं को हल करने के व्यावहारिक दृष्टिकोण, सांसारिक बुद्धिमत्ता, अनुशासन और कौशल क्षमता हमेशा प्रत्येक भारतीय के लिए प्रेरणास्रोत बने रहेंगे.

देश की स्वतंत्रता के पश्चात सरदार वल्लभ भाई पटेल उप प्रधानमंत्री के साथ-साथ पहले गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री बने थे. सरदार पटेल ने कश्मीर से लक्षद्वीप तक फैले इस विशाल देश को एक करने में अविस्मरणीय योगदान दिया था, उनका ये ऋण देश कभी नहीं चुका सकता. उन्होंने उड़ीसा से 23, नागपुर से 38, काठियावाड़ से 250 तथा मुंबई, पंजाब जैसे 562 रियासतों को भारत में मिलाया था.

लक्षद्वीप समूह को भारत में मिलाने में भी पटेल की महत्वपूर्ण भूमिका थी. इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे. उन्हें भारत की आजादी की जानकारी कई दिनों बाद मिली थी. सरदार पटेल को उस दौर के माहौल में ऐसा लगता था कि लक्षद्वीप पर पाकिस्तान दावा कर सकता है, इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए उन्होंने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भारतीय नौसेना का एक जहाज भेजा था. इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए थे, लेकिन वहां भारत का झंडा लहराते देख उन्हें वापस लौटना पड़ा था.

इन रियासतों ने किया था इनकार फिर आगे आए सरदार

हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें 15 अगस्त, 1947 तक भारत संघ में सम्मिलित हो चुकी थीं, जो भारतीय इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि थी. उसके बाद जूनागढ़ के नवाब के खिलाफ जब वहां की प्रजा ने विद्रोह कर दिया तो वह भागकर पाकिस्तान चले गए और जूनागढ़ को भारत में मिला लिया गया. वहीं जब हैदराबाद के निजाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण करा लिया था.

कश्मीर विलय में भी सरदार पटेल का भरोसा दिखा. वीपी मेनन सरदार पटेल के भरोसेमंद आईसीएस अफसर थे, कश्मीर पर जब कबायली हमला हुआ तो वीपी मेनन को ही कश्मीर के हालात संभालने का जिम्मा दिया गया था, उसके बाद कुछ शर्तों के साथ कश्मीर भारत का अंग बन गया.

निस्संदेह सरदार पटेल द्वारा यह 562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का एक आश्चर्यजनक उदाहरण था. भारतीय रियासतों के भारतीय संघ में एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने और रियासतों को भारतीय संघ के साथ जुड़ने के लिये राजी करने हेतु इन्हें "भारत के लौह पुरुष' के रूप में जाना जाता है.

प्रमुख आंदोलन और सत्याग्रह में भूमिका

स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेड़ा संघर्ष में देखने को मिला था. चम्पारण के बाद 1918 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गुजरात के खेड़ा में सबसे बड़ा किसान आंदोलन चलाया था. इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि सरदार वल्लभभाई पटेल का राजनीति में आना रही. खेड़ा आंदोलन अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट के लिए किसानों द्वारा किया गया था. इसमें अंततः अंग्रेज सरकार झुकी और उस वर्ष करो में राहत दी गई थी, यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी. सरदार पटेल ने 1928 में हुए बारदोली सत्याग्रह में किसान आंदोलन का सफल नेतृत्व भी किया था. उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी. पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया. इस आन्दोलन की सफलता के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभ भाई पटेल को ‘सरदार' की उपाधि प्रदान की. सरदार की उपाधि के बारे में यह भी कहा जाता है कि गांधी जी ने भी वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि दी थी. सरदार पटेल को गांधी जी की अहिंसा नीति ने प्रभावित किया था, इसलिये गांधी जी द्वारा किये गए सभी स्वतंत्रता आंदोलन जैसे- असहयोग आंदोलन, स्वराज आंदोलन, दांडी यात्रा, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे सभी आंदोलनों में सरदार पटेल की भूमिका अहम थी.

काम प्रति अनोखा समर्पण

सरदार पटेल की पत्नी झावेर बा कैंसर से जूझ रही थीं, 1909 में मुंबई के एक अस्पताल में उनको भर्ती करवाया गया था. अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान ही झावेर बा का निधन हो गया, उस समय सरदार पटेल अदालती कार्यवाही में व्यस्त थे. कोर्ट में बहस चल रही थी, तभी एक व्यक्ति ने कागज में लिखकर उन्हें झावेर बा की मौत की खबर दी. सरदार पटेल ने वह संदेश पढ़कर चुपचाप अपने कोट की जेब में रख दिया और अदालत में जिरह जारी रखी और मुकदमा जीत गए. जब अदालती कार्यवाही समाप्त हुई तब उन्होंने अपनी पत्नी की मृत्यु की सूचना सबको दी थी.

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