Ramadan 2025: रमजान में भी इन 7 लोगों की दुआएं नहीं होती है कुबूल, जानें- कौन हैं वे बदकिस्मत

Ramadan Updates: रमजान इस्लाम धर्म का सबसे पाक महीना है. इस महीने में दुनियाभर के मुसलमान दिन में रोजा रखने के अलावा रातों को इबादत करते हैं, और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं. हालांकि, 7 तरह के लोग ऐसे हैं, जिनकी दुआएं इस रात में भी कबूल नहीं होती है.

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Ramazan News Update: रमजान (Ramadan) इस्लाम (Islam) धर्म का एक बहुत ही पाक महीना है. इसे सभी महीनों का सरकार भी कहा जाता है. इस्लाम धर्म के पांच फर्जों में से एक रोजा इसी माह में रखा जाता है. इसके अलावा, इस्लाम धर्म के मुताबिक इस महीने में करने वाले नेक काम का सवाब (पुण्य) आम दिनों के मुकाबले सत्तर गुणा ज्यादा मिलता है. यही वजह है कि इस महीने में मुसलमान दिन भर रोजा रखते हैं और राज भर अल्लाह की इबादत करते हैं.

रमजान का महीना 10-10 दिन के तीन अशरा में बंटा हुआ है. पहले 10 दिन को बरकत का अशरा, दूसरे  10 दिन को रहमत का अशरा और तीसरे 10 दिन को मगफिरत का अशरा कहते हैं. यानी पहले 10 दिन मुसलमानों पर अल्लाह की बरकतें नाजिल होती हैं. दूसरे अशरे में अल्लाह की रहमतें नाजिल होती हैं. वहीं, तीसरे अशरे में अल्लाह अपने नेक बंदों को जहन्नुम की आग से निजात दे देता है. यानी उनके उन सारे गुनाहों को माफ फरमा देते हैं, जिसकी वजह से वह जहन्नम की आग की सजा का हकदार बन चुका था.

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तीनों अशरे की है अलग-अलग दुआएं

हदीस के मुताकि, तीनों अशरे में मुसलमानों को पैगम्बर मुहम्मद सललल्लाहुअलैहिवसल्लम ने जो दुआएं मांगने की तरगीब दी है. वह इस प्रकार है. पहले यानी बरकत वाले अशरे में अल्लाहुम्मा अर्हम्नी (ए अल्लाह हम पर रहम फरना) का विर्द कसरत से करना चाहिए. वहीं, दूसरे अशरे में जो दुआ कसरत से मांगने की तरगीब दिलाई गई है, वह है. अस्तग़्फिरुल्लाह रब्बी मिन कुल्लि ज़म्बिन वा अतूबु इलैहि (एاَسْتَغْفِرُ اللہَ رَبِّی مِنْ کُلِّ زَنْبٍ وَّ اَتُوْبُ اِلَیْہِ)का विर्द करें. वहीं, तीसरे अशरा में अल्लाहुम्मा अजिरना मिनान नार (ए अल्लाह हमें आग के अजाब से निजात फरमा) .  अलावा, ये दुआ भी पढ़नी चाहिए,' अल्लाहुम्मा इन्नाका 'अफुवुन तुहिब्बुल' अफवा फा'फू 'अन्ना ("या अल्लाह" हमें इस दुनिया में जो अच्छा है और आख़िरत में जो अच्छा है वह दे और हमें आग की यातना से बचा ले!")

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शब-ए-कद्र की रात में गुनाहों की होती है माफ़ी

रमजान के महीने में एक रात होती है, जिसे शब-ए-कद्र कहते हैं. इस रात की अहमियत खुद कुरआन शरीफ में बयान की गई है. एक जगह इस मुबारक रात कहा गया है. वहीं, इस रात की अजमत में एक विशेष सूरत (चैप्टर) है, जिसमें इस रात को हजार महीनों से बेहतर बताया गया है. हालांकि, किसी को मालूम नहीं है कि ये रात कौन है. हां इतना जरूर बताया गया है कि आखिरी अशरे की ताक रातें, यानी 21वी, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं रमजान की रातों में से एक हैं. इस रात इबादत करने और अपने गुनाहों की माफी मांगने वालों की साल भर की गुनाहों को माफ कर दिया जाता है.

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इन सात लोगों के गुनाह नहीं होते हैं माफ

हालांकि, इस बाबरकत रात में भी 7 तरह के लोगों की गुनाहों की माफी नहीं होती है और न ही इन लोगों की दुआएं ही कुबूल होती है. शब-ए-कद्र की रात में भी जिन लोगों की दुआ कुबूल नहीं होती है वे हैं, मुश्रिक (एक निरंकार इश्वर के साथ किसी और को भी पूजने या उससे दुआ मांगने वालाे लोग) , मां-बाप का दिल दुखाने वाले लोग, कीना (विद्वेष) रखने वाले लोग, शराब के नशे में पड़े लोग, मुतकब्बिर (घमंडी), नाजायज वसूली करने वाले लोग, रिश्तेदारों से ताल्लुक तोड़ने वाले लोग.  लिहाजा, आप अगर इस रमजान मे अपनी दुआएं कुबूल कराना चाहते हैं, तो इन सभी तरह की बुराइयों से अभी से तौबा कर लें.  

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