Radha Ashtami 2024: राधा अष्टमी पर 'मोहन-विष्णु' ने दी बधाई, व्रत कथा से पूजा विधि तक जानिए सब कुछ

Radha Ashtami: सीएम मोहन यादव ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि राधा श्री राधा रटूं, निसि-निसि आठों याम. जा उर श्री राधा बसै, सोइ हमारो धाम. 'राधा अष्टमी' की समस्त प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं.

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Happy Radha Ashtami 2024 Wishes: हिंदू कैलेंडर (Hindu Calender) के अनुसार श्री कृष्ण जन्माष्टमी के बाद भाद्र मास के शुक्‍ल पक्ष की अष्‍टमी को राधा अष्‍टमी (Radha Ashtami) यानी राधा रानी के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि द्वापर युग में इस पावन तिथि पर देवी राधा का जन्‍म हुआ था. यह तिथि 11 सितंबर यानी आज है. पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि राधाजी का जन्‍म माता के गर्भ से नहीं बल्कि वृषभानु जी की तपोभूमि से प्रकट हुई थीं. आज पूरा देश बृज की लाडली, वृषभानु दुलारी राधा रानी जी के जन्मोत्सव श्री राधा अष्टमी (Radha Ashtami 2024) की बधाई दे रहा है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव (CM Mohan Yadav) ने भी राधा अष्टमी की बधाई दी है.

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सीएम मोहन यादव ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि राधा श्री राधा रटूं, निसि-निसि आठों याम. जा उर श्री राधा बसै, सोइ हमारो धाम. 'राधा अष्टमी' की समस्त प्रदेश वासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं.

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सीएम विष्णु देव साय ने लिखा है कि श्रीकृष्णप्रिया, श्रीकृष्णवल्लभा, रास रासेश्वरी श्री राधारानी के जन्मोत्सव के पावन पर्व राधाअष्टमी की हार्दिक बधाई. श्री राधारानी की असीम कृपा आप सभी पर सदैव बनी रहे.

इस तिथि का है खास महत्व

शास्त्रों में राधा अष्टमी का विशेष महत्व बताया गया है. इसके साथ ही इस दिन राधा रानी की पूजा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन राधा रानी की पूजा करने से वैवाहिक जीवन खुशहाल बना रहता है और सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है.

शुभ मुहूर्त

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 10 सितंबर को रात 11 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी.  इस तिथि का समापन 11 सितंबर को रात 11 बजकर 46 मिनट पर होगा. ऐसे में 11 सितंबर को राधा अष्टमी मनाई जाएगी. पंचांग के मुताबिक राधा अष्टमी पर इस बार कई दुर्लभ योग का निर्माण होने जा रहा है.

व्रत कथा

पौराणिक कथा के मुताबिक राधा रानी और श्री कृष्ण के धाम गोलोक में एक बार श्रीदामा पधारे जो कान्हा के परम भक्त व उनके साथी माने जाते हैं. श्रीदामा श्री कृष्ण के साथ रहते थे लेकिन एक बार ब्रह्म ज्ञान के बारे में जानने हेतु वह गोलोक से बाहर गए. जब श्रीदामा वापस लौटे और कृष्ण दर्शनों के लिए उनके पास पहुंचे तब श्री राधा रानी के साथ श्री कृष्ण लीला करने में इतने लीन थे कि उन्हें श्रीदामा के आने का आभास ही नहीं हुआ. यह देख श्रीदामा बहुत दुखी हुए और उन्हें श्री राधा रानीके ऊपर भयंकर क्रोध आ गया.

श्रीदामा का मानना था कि राधा रानी के कारण ही श्री कृष्ण उनसे दूर हो गए हैं. बस यही सोचते हुए उन्होंने श्री राधा रानी को यह श्राप दे दिया कि वह श्री कृष्ण से दूर हो जाएंगी और पृथ्वी पर जन्म लेंगी. असल में यह सब राधा रानी और कान्हा की ही रचाई हुई लीला थी.

कृष्ण अवतार के दौरान प्रेम की मूल वाख्या को समझाने के लिए ही राधा रानी और श्री कृष्ण ने श्राप का यह खेल रचा ताकि कृष्ण से पहलेराधा रानीका पृथ्वी पर अवतरण हो जाए. इसके बाद राधा रानी का भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन बरसाना में जन्म हुआ.

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