Mahavir Jayanti 2024: महावीर जयंती इस बार 21 अप्रैल 2024 को मनाई जा रही है. जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर सत्य और अहिंसा के अग्रदूत भगवान महावीर के अनुयायी दुनिया भर में इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं. हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को महावीर जयंती (mahavir jayanti) मनाई जाती है. राजघराने में पैदा हुए महावीर को जब कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ, तो वे दुनियावी जिंदगी छोड़ कर वैराग्य को अपना लिया. इसके बाद उन्होंने दुनिया में जीवन जीने के जो संदेश वर्धमान महावीर (Lord mahavira) ने दिए उनका पालन लोग आज भी कर रहे हैं. आइए विस्तार से जानते हैं इसके बारे में...
"जियो और जीने दो" का सिद्धांत
भगवान महावीर के संदेशों का पालन दुनिया आज भी कर रही है. भगवान महावीर ने "जियो और जीने दो" का सिद्धांत अपनाया और लोगों को अपनाने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने इस बात के लिए लोगों को ज़ोर दिया कि दुनिया में हर जीव को जीने का हक है किसी भी जीव की हत्या करने या सताने वाला पाप का भागी बनाता है.
अपनी इन्द्रियों पर पाई विजय
भगवान महावीर अपनी इंद्रियों को जीतकर जितेंद्र कहलाए. उन्होंने शरीर को कष्ट देने को हिंसा नहीं माना, लेकिन उनकी दृष्टि में मन, वचन, कर्म से किसी को आहत करना हिंसा है. क्षमा को लेकर भगवान महावीर का कहना है कि मैं सभी जीवों से क्षमा करता हूं. जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्री भाव है. मेरा किसी से बैर नहीं है. सच्चे हृदय से मैं सब जीवों से अपने अपराधों की क्षमा मांगता हूं, सभी जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, मैं उन्हें क्षमा करता हूं.
बचपन बिताया राजकुमार की तरह
कहा जाता है कि राजा सिद्धार्थ के बेटे भगवान महावीर का जन्म होते ही राजा सिद्धार्थ के राज्य मान प्रतिष्ठा और धन में वृद्धि होने लगी थी. तब से उनका नाम वर्धमान रखा गया. बचपन से ही महावीर बड़े साहसी और निर्भीक थे. इसी पराक्रम के कारण आगे चलकर वे महावीर के नाम से ही प्रसिद्ध हुए.
सालों तक जंगल में की तपस्या
भगवान महावीर जिन कहलाए. जिन शब्द से ही जैन बना है, जिसका अर्थ हैं काम, तृष्णा, इन्द्रियों को भेदना. भगवान महावीर शुरू के 30 वर्षों तक राज जैसा विलासितापूर्ण जीवन जी रहे थे. उसके बाद 12 वर्ष घनघोर जंगल में रहे. उन्होंने अपने आप को जागृत कर ऐसी साधना की कि इस दौरान उनके शरीर के कपड़े भी गिरकर अलग हो गए. 12 वर्षों की मौन तपस्या के बाद भगवान महावीर को कैवल्य प्राप्त हुआ. यह मोक्ष या समाधि की अवस्था होती है, उसे मोक्ष कहा जाता है. इसी मोक्ष को जैन धर्म में कैवल्य ज्ञान कहा गया है.
नहीं करते हैं वस्त्र धारण
जैन धर्म के 24वें और आखिरी तीर्थंकर भगवान महावीर ने अपनी तपस्या से मोक्ष की और ज्ञान की प्राप्ति की और अपनी इंद्रियों और भावनाओं पर विजय प्राप्त कर दिगंबर धर्म स्वीकार किया. इसीलिए वे कोई भी वस्त्र धारण नहीं करते थे. दिगंबर लोग आसमान को ही अपना वस्त्र मानते हैं.