Karwa chauth 2023: इस तारीख को रखा जाएगा करवा चौथ का व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और महत्व

इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर मंगलवार रात 9:30 से शुरू होकर एक नवंबर रात 9:09 तक है.ऐसे में उदया तिथि के अनुसार करवा चौथ का व्रत बुधवार 1 नवंबर को रखा जा रहा है.इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखते हैं.यह काफी कठिन व्रत माना जाता है.इसमें पूरे एक दिन बिना जल के रहना पड़ता है.

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Karwa chauth 2023: कार्तिक मास की चतुर्थी को करवा चौथ (Karwa chauth) का त्यौहार मनाया जाता है.इस साल 1 नवंबर को करवा चौथ का व्रत रखा जाएगा.दरअसल, इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 31 अक्टूबर मंगलवार रात 9:30 से शुरू होकर एक नवंबर रात 9:09 तक है.

ऐसे में उदया तिथि के अनुसार करवा चौथ का व्रत बुधवार 1 नवंबर को रखा जाएगा. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखते हैं. यह काफी कठिन व्रत माना जाता है. इसमें पूरे एक दिन बिना जल के रहना पड़ता है.

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करवा चौथ का महत्व
किसी भी सुहागिन महिला के लिए करवा चौथ काफी खास होता है. वनीता हूं कहती हैं कि सबसे पहले देवी पार्वती ने शिव जी के लिए यह व्रत रखा था. मान्यता है कि द्रौपदी ने भी पांडवों को संकट से मुक्ति दिलाने के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था. करवा चौथ का व्रत विवाह के 16 या 17 सालों तक करना अनिवार्य होता है.

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यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जो स्त्री इस व्रत को करती हैं, उसके पति की उम्र लंबी होती है. गृहस्थ जीवन अच्छा रहता है. पति की सेहत बनी रहती है. वहीं, कुंवारी लड़कियां भी इस व्रत को कर सकती हैं. ऐसा करने से उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है.

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करवा चौथ शुभ मुहूर्त:
करवा चौथ की व्रत वाले दिन यानी 1 नवंबर को चंद्रोदय 8:26 मिनट पर होगा. वहीं, पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:44 मिनट से 7:02 मिनट तक रहेगा.

करवा चौथ पूजा विधि:

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाए और स्नान आदि कर सूर्योदय से पहले सरगी का सेवन करें. देवी देवताओं को प्रणाम कर व्रत रखने का संकल्प लें. करवा चौथ में विशेष तौर पर संध्या पूजन की जाती है. शाम से पहले ही गेरू से फलक पूजा स्थान पर बना लें. फिर चावल के आटे से फलक पर करवा का चित्र बनाएं. इसके बजाय आप प्रिंटेड कैलेंडर का इस्तेमाल भी कर सकती हैं.

संध्या के समय शुभ मुहूर्त में फलक के स्थान पर चौकी स्थापित करें. इस चौकी पर भगवान शिव और मां पार्वती के गोद में बैठे प्रभु गणेश के चित्र की स्थापना करें. मां पार्वती को श्रृंगार सामग्री अर्पित करें और मिट्टी के करवा में जल भरकर पूजा स्थान पर रखें. अब भगवान श्री गणेश, मां गौरी, भगवान शिव और चंद्र देव का ध्यान कर करवा चौथ व्रत की कथा सुने. चंद्रमा की पूजा कर उन्हें अर्घ्य दें. फिर छलनी की ओट से चंद्रमा को देखें और उसके बाद अपने पति का चेहरा देखें. इसके बाद पति द्वारा पत्नी को पानी पिलाकर व्रत का पारण किया जाता है. घर के सभी बड़ों का आशीर्वाद लेना ना भूलें.

करवा चौथ कथा:
ये है करवा चौथ की कहानी...
बहुत समय पहले की बात है एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बेटी करवा थी. सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे. यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और फिर बाद में खुद खाते थे. एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी. शाम को भाई जब अपना व्यवसाय बंद कर घर आए, तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी. सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि आज उसका करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को अर्घ्य देकर ही खा सकती है. क्योंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख प्यास से व्याकुल हो उठी है.

सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है. दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो.

इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो. बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती हैं और उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है.

वह पहले टुकड़ा मुंह में डालती है, तो उसे छींक आ जाती है. दूसरा टुकड़ा डालती है, तो उसमें बाल निकल आता है. और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है, तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है और वह बौखला जाती है.

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है. सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतर संस्कार नहीं होने देंगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिला कर रहेगी. वह पूरे 1 साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है. उसकी देखभाल करती हैं, उसके ऊपर उठने वाले सुई नुमा घास को एकत्रित करती जाती है.

1 साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है. उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं. जब उनकी भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं, तो वह प्रत्येक भाभी से ' यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो ' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कहकर चली जाती हैं.

इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है, तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है. यह भाभी उसे बताती है कि उसके सबसे छोटे भाई की वजह से व्रत टूटा था. लिहाजा, उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है. इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दें, उसे नहीं छोड़ना. ऐसा कहकर वह चली जाती है.

आखिर में छोटी भाभी आती है .करवा उनसे भी सुहागन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोल करने लगती है. इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है. भाभी उसे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है.

अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी उंगली को चीरकर उससे अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है. करवा का पति तुरंत श्री गणेश, श्री गणेश कहता हुआ उठ बैठता है. इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है.