Holika Dahan 2025: हाेलिका दहन पर क्या करें? शुभ मुहूर्त, पूजा विधि से लेकर कथा तक सब कुछ जानिए यहां

Holika Dahan 2025: देश भर में होलिका दहन पर समाज द्वारा अलग-अलग परंपराएं निभाई जाती हैं. यहां पर हम आपको होलिका दहन 2025 से जुड़ी अहम जानकारी दे रहे हैं. आइए जानते हैं हाेलिका दहन की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, कथा, भद्रा काल के बारे में.

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Holika Dahan 2025: होलिका दहन के शुभ मुहूर्त से लेकर पूजा विधि तक की पूरी जानकारी

Holika Dahan 2025: होली (Holi 2025) का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है. ये उत्सव भक्त प्रहलाद और भगवान विष्णु से संबंधित है. इसीलिए इस तिथि पर होलिका (Holika Puja) की पूजा के साथ ही भगवान विष्णु की विशेष पूजा करनी चाहिए. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन आसमान में अबीर-गुलाल, हल्दी और चंदन के साथ ही फूलों से बने रंग उड़ाने से राजसिक और तामसिक प्रभाव कम होकर उत्सव का सात्विक स्वरूप निखरता है. देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं. ब्रह्मांड में विद्यमान गणपति, श्रीराम, हनुमान, शिव, श्रीदुर्गा, दत्त भगवान एवं कृष्ण ये सात देवता सात रंगों से संबंधित हैं. उसी प्रकार मानव के देह में विद्यमान कुंडलिनी के सात चक्र सात रंगों एवं सात देवताओं से संबंधित हैं. आइए जानते हैं इस बार होलिका दहन से जुड़ी अहम जानकारी.

पूजा का महत्व (Holika Dahan Puja)

होली की पूजा से पहले भगवान नरसिंह और प्रहलाद की पूजा की जाती है. पूजा के बाद अग्नि स्थापना की जाती है यानी होली जलाई जाती है. उस अग्नि में अपने-अपने घर से होलिका के रूप में उपला, लकड़ी या कोई भी लकड़ी का बना पुराना सामान जलाया जाता है. मान्यता है कि किसी घर में बुराई का प्रवेश हो गया हो तो वह भी इसके साथ जल जाए.
घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिए महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं. होलिका दहन के लिए लगभग एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं. कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका का दहन किया जाता है. होलिका दहन में जौ और गेहूं के पौधे डाले जाते हैं. फिर शरीर में उबटन लगाकर उसके अंश भी डालते हैं. ऐसा करने से जीवन में आरोग्यता और सुख समृद्धि आती है.

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भद्रा में नहीं होता होलिका दहन और पूजा (Holika Dahan Bhadra Kaal)

होली की पूजा प्रदोषकाल यानी शाम को करने का विधान है. होलिका दहन पूर्णिमा तिथि पर होने से इस पर्व पर भद्रा काल का विचार किया जाता है. भद्रा काल में पूजा और होलिका दहन करने से रोग, शोक, दोष और विपत्ति आती है.

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इस बार कब है होलिका का मुहूर्त? (Holika Dahan Shubh Muhurat)

इस बार फाल्गुन माह की पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 35 मिनट से शुरू होकर 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी. यानी 13 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा और 14 मार्च को होली खेली जाएगी. 13 मार्च को रात 10 बजकर 45 मिनट से रात 1 बजकर 30 मिनट तक शुभ मुहूर्त है. वहीं 13 मार्च को होलिका दहन के दिन हाेलिकाष्ट समाप्त होगा. होलाष्टक में मांगलिक और शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं.

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होली की रात मंत्र जप करने पर पूजा जल्दी सफल हो सकती है, इस पूजा से शुभ असर से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इसलिए होलिका दहन की रात में अपने इष्ट देव की पूजा करने और मंत्र जप करने की परंपरा है. होलिका दहन के बाद जो राख हमें मिलती है, वह सामान्य नहीं होती है, उसे पवित्र माना जाता है.

होलिका दहन के दिन रात 11:28 तक भद्रा काल है. वहीं साल का पहला चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan 2025) भी इसी दिन लगने वाला है. होली के दिन पड़ने वाले चंद्रग्रहण का समय सुबह 9:29 बजे से दोपहर 3:29 तक रहने वाला है. राहत की बात है कि यह चंद्रग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा. ऐसे में इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा.

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हाेलिका दहन की कथा (Holika Dahan Katha)

होली को लेकर हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका की कथा अत्यधिक प्रचलित है. प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके. न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर. यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए. ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा. हिरण्यकश्यप के यहां प्रहलाद जैसा परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ.

प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी. हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे. प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया. उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन व प्रभु-कृपा से बचता रहा.

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था. उसको वरदान था की वो आग में नहीं जलती थी. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई. होलिका बालक प्रहलाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से आग में जा बैठी. प्रभु-कृपा से होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई. इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में होलिका की मृत्यु हो गई. उसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला. तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा.

पूर्णिमा पर ये शुभ काम किए जा सकते हैं

  • पूर्णिमा तिथि पर भगवान सत्यनारायण की कथा सुननी चाहिए या खुद ही पढ़नी चाहिए. भगवान सत्यनारायण का विधिवत पूजन किसी ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं. भगवान विष्णु को हलवे का भोग लगाएं. ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें.
  • भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा करें. विष्णुजी और लक्ष्मी का अभिषेक दक्षिणावर्ती शंख से करें. इसके लिए केसर मिश्रित दूध का उपयोग करना चाहिए.
  • पूर्णिमा पर तांबे के लोटे से सूर्य को जल चढ़ाएं. इस दौरान ऊँ आदित्याय नम: मंत्र का जाप करें. जरूरतमंद लोगों को फलों का दान करें.

होलिका पूजन विधि (Holika Dahan Puja Vidhi)

होलिका दहन जिस स्थान पर करना है उसे गंगाजल से पहले शुद्ध कर लें. इसके बाद वहां सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास आदि रखें. इसके बाद पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठें. आप चाहें तो गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं भी बना सकते हैं. इसके साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा करें. पूजा के समय एक लोटा जल, माला, चावल, रोली, गंध, मूंग, सात प्रकार के अनाज, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, बताशे, गुलाल, होली पर बनने वाले पकवान व नारियल रखें. नई फसलें जैसे चने की बालियां और गेहूं की बालियां भी रखी जाती हैं. कच्चे सूत को होलिका के चारों तरफ तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटें. उसके बाद सभी सामग्री होलिका दहन की अग्नि में अर्पित करें. ये मंत्र पढ़ें- और पूजन के पश्च्यात अर्घ्य अवश्य दें.
अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः ।
अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम् ।।

हिंदी पट्टी में होली (Holi) की धूम रहती है. रंग-अबीर-गुलाल से सब सराबोर रहते हैं. लेकिन विविधताओं से भरे इस देश के दक्षिण में भी रंगोत्सव (Festival of Colours) धूमधाम से मनाया जाता है. इसे अलग-अलग जगह अपने स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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