SMISS-AP 5th Annual Conference: सोसाइटी फॉर मिनिमली इनवेसिव स्पाइन सर्जरी - एशिया पैसिफिक (SMISS-AP) के 5वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए, अदाणी ग्रुप के अध्यक्ष गौतम अदाणी ने कहा, "मैंने 16 साल की उम्र में अपना पहला साहसिक निर्णय लिया. मैंने द्वितीय श्रेणी का रेल टिकट खरीदा और बिना किसी डिग्री, नौकरी और बिना किसी बैकअप के अपना रास्ता खुद तय करने की तीव्र इच्छा के साथ मुंबई के लिए रवाना हो गया. मुंबई में मैंने जो भी हीरा तराशा, उसने मुझे धैर्य, सटीकता और दृढ़ता सिखाई. उद्यमिता कभी भी किसी बड़े सपने से शुरू नहीं होती. यह दृढ़ विश्वास और कार्य करने के साहस की चिंगारी से शुरू होती है." आइए जानते हैं उन्होंने अपने संबोधन में क्या कुछ कहा?
डॉक्टर्स के बारे में ये कहा
गौतम अदाणी ने डॉक्टर्स की अहमियत पर अपने विचार रखे. गौतम अदाणी ने कहा कि, ' ये मेरा सौभाग्य है कि मैं आपके सामने खड़ा हूं और सबसे अच्छे भारतीय डॉक्टर्स को संबोधित कर रहा हूं. आप जो काम कर रहे हैं उसके लिए मैं आपको सैल्यूट करता हूं. आपकी मानवता आपकी काबिलियत के बारे में बताती है. ये विश्व को ताकत और मजबूती देती है. आप भले ही स्पाइन के डॉक्टर हैं पर मरीजों के लिए आप इससे भी बढ़कर हैं. आपसे ही आशा है.
'सपने में वो नहीं जो नींद में आते हैं'
अपने सफर के बारे में गौतम अदाणी ने कहा कि, 'सपने में वो नहीं जो नींद में आते हैं, सपने वो हैं जो नींद उड़ा देते हैं. मुंबई में जब मैं सेटल होने के बाद, मैं अहमदाबाद भाई की पीवीसी फिल्म फैक्ट्री चलाने के लिए वापिस गया. ये बात साल 1981 की है. इन सभी अनुभवों ने मेरी सोच को हमेशा के लिए बदल दिया.
- मुन्नाभाई MBBS मेरी ऑलटाइम फेवरिट मूवी है. कॉमिडी के लिए नहीं, बल्कि उसमें दिए गए मेसेज के लिए. उसमें मुन्नाभाई लोगों को दवा नहीं, इंसानियत से ठीक करते हैं.
- मुन्नाभाई ने कहा था जादू की झप्पी हो या सर्जरी का स्कैल्पल, दोनों में एक ही बात होती है, वह है इंसानियत.
- सपने वो नहीं जो नींद में आते हैं, सपने वो हैं जो नींद उड़ा देते हैं.
- मुन्नाभाई फिल्म में बापू ने कहा था बदलाव लाना है तो सोच बदलनी होगी.
गौतम अदाणी ने बदलाव पर बात करते हुए कहा कि, 'मुन्नाभाई फिल्म की सबसे गहरी बातों में से एक ये है कि बापू ने कहा था बदलाव लाना है तो सोच बदलनी होगी. साल 1985 में श्री राजीव गांधी उस समय हमारे देश के प्रधानंत्री थे. उन्होंने लाइसेंस प्रक्रिया में सुधार कर इकॉनमी के लिब्राइजेशन का काम किया. ये एक छोटा पर अच्छा रिफोर्म था.'
गौतम अदाणी ने बताया कि, 'मैंने इस भरोसे की वजह से 16 साल की उम्र में एक बड़ा फैसला लिया. मैंने एक सेकेंड क्लास ट्रेन टिकट खरीदा और मुंबई के लिए निकल पड़ा. मेरे पास कोई डिग्री, जॉब और बैकअप नहीं था. बस था तो कुछ कर दिखाने का जोश. आखिर में किसी चीज को दिल से चाहो तो पूरी कायनात तुमसे मिलाने की साजिश में लग जाती है.'
लाइसेंस राज पर अदाणी बोले कि, 'साल 1991 में भारत को सबसे बुरे दिनों का सामना करना पड़ा, जब हमारे पास आयात के लिए केवल 10 दिनों का ही भंडार था. लाइसेंस राज की चुनौतियों का सामना किया. डीवैल्यूएशन, डीरेग्यूलेशन, ग्लोबलाइजेशन के जरिए लाइसेंस राज से मुक्ति मिली. जहां सभी ने तूफान देखा वहां कुछ ने अपनी नांव निकाली और समंदर पार कर लिया. जहां दूसरे लोग घबर रहे थे, हम काबिलियत से आगे बढ़ रहे थे. अपना भविष्य बना रहे थे.'
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