दो राज्यों के बॉर्डर पर नक्सलियों के गढ़ में पहुंचे CM , बोले- जहां कल्पना नहीं थी वहां हम खड़े हैं   

मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर स्थित कवंडे गांव के उस इलाके में, जहां पहले कोई आने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, आज हम वहां खड़े हैं. यह एक बेहद अहम दिन है और माओवादी विरोधी लड़ाई में यह एक बड़ी सफलता है.

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CM Devendra Fadnavis In Naxalites Area: नक्सली गतिविधियों का गढ़ माने जाने वाले महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर स्थित अबूझमाड़ के पहाड़ी क्षेत्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने दौरा कर इतिहास रच दिया. NDTV की टीम इस दौरे में मुख्यमंत्री के साथ विशेष रूप से सहभागी रही.हमारे संवाददाता प्रवीण मुधोळकर ने विशेष बातचीत की. 

नक्सलियों की कमर तोड़ दी है

महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा का ये वो इलाका है जहां सुरक्षा बलों को भी पहुंचने में भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था. नक्सलियों का गढ़ रहा है. यहां पहुंचे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि लगातार चलाए गए अभियानों के चलते हमने अबूझमाड़, यानी छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र सीमा पर माओवादियों की कमर तोड़ दी है. राज्य सरकार की सभी योजनाएं आदिवासी बहुल सीमावर्ती इलाकों तक पहुंचाने का हमारा निरंतर प्रयास रहा है. इसी उद्देश्य से, मुख्यमंत्री के रूप में मैंने इन इलाकों का नियमित दौरा करने का निर्णय लिया है,

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केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक देश से माओवाद को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य तय किया है और मुझे विश्वास है कि यह लक्ष्य निर्धारित समय से पहले ही हासिल कर लिया जाएगा.

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फडणवीस ने आगे कहा कि जबकि महाराष्ट्र में माओवादी समाप्ति की कगार पर हैं, अब वे शहरी माओवाद के जरिए लोगों को आकर्षित करने की कोशिश करेंगे. इसलिए आने वाले समय में हमारा ध्यान शहरी माओवादियों पर केंद्रित रहेगा. उन्होंने कहा कि “महाराष्ट्र का गढ़चिरोली, जिसे पहले ‘नो इंडस्ट्रियल ज़िला' के रूप में जाना जाता था, अब एक ‘इंडस्ट्रियल पॉवर' के रूप में विकसित हो रहा है.

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नक्सलियों ने किया सरेंडर 

मुख्यमंत्री के इस दौरे में करोड़ों रुपये के इनामी 12 माओवादियों ने उनके समक्ष सरेंडर किया. इससे पहले सरेंडर कर चुके 12 नक्सलियों के सामूहिक विवाह समारोह का आयोजन भी किया गया. जिसमें मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस खुद मौजूद थे. मुख्यमंत्री ने कहा कि महाराष्ट्र-छत्तीसगढ़ सीमा पर स्थित कवंडे गांव के उस इलाके में, जहां पहले कोई आने की कल्पना भी नहीं कर सकता था, आज हम वहां खड़े हैं. यह एक बेहद अहम दिन है और माओवादी विरोधी लड़ाई में यह एक बड़ी सफलता है.

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