ग्वालियर के PHE में बड़ा घोटाला : मृतकों को रिकॉर्ड में जिंदा रखकर निकलती रही करोड़ों की सैलरी

यह इतना बड़ा घोटाला हुआ कैसे ? इस सवाल का उत्तर जानने के लिए एनडीटीवी ने खोजबीन किया तो पता चला कि इस घोटाले का मुख्य किरदार हीरालाल है जो पीएचई विभाग के खंड क्रमांक एक मे पम्प अटेंडर पद पर कार्यरत था.

विज्ञापन
Read Time: 18 mins

मध्य प्रदेश में एक खबर ने सबको हैरान कर दिया है. दरअसल, मामला ही ऐसा है जिस पर विश्वास करना मुश्किल है. जानकारी के मुताबिक,  ग्वालियर जिले के नगर निगम में बड़े घोटाले की खबर है. यह कथित घोटाला नगर निगम के पीएचई विभाग में हुआ है. यहां फर्जी खातों में वेतन-एरियर के 16 करोड़ 42 लाख रुपये का भुगतान किया गया. सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि मृत कर्मचारियों का नाम इस्तेमाल किया गया है.

यह पूरा घोटाला विभाग के एक पम्प अटेंडर ने किया जबकि बिल पास करने में अफसर और क्रियेटर की आईडी लगती है और ओटीपी भी आता है. अफसर आंख मूंदे रहे और करोड़ों रुपये फर्जी खातों में जाता रहा. पीएचई विभाग में 16.42 करोड़ रुपये के घोटाले के खुलासे के बाद पूरे महकमे में हड़कम्प मचा  हुआ है. इस मामले में क्राइम ब्रांच थाने में एफआइआर दर्ज की गई. इस मामले में  पंप अटेंडर हीरालाल और उसके भतीजे राहुल आर्य की भूमिका सामने आई है. इन दोनों पर ही एफआइआर दर्ज की गई है. 

Advertisement
एसपी राजेश सिंह चंदेल ने बताया कि राहुल आर्य अभी रिमांड पर है. उससे पूछताछ चल रही है. जिन बैंक खातों में पैसा गया. इन्हें फ्रीज करवाया गया है. लेकिन इसके अलावा भी  ऐसे खाते हैं, जो संदिग्ध है. अभी पूरा रिकार्ड जब्त नहीं हुआ है.


एसपी का कहना है कि इस केस में पता चला है कि लगभग  25 मृत कर्मचारियों के नाम से यह राशि निकाली गई है. यानी उन्हें विभाग के  रिकार्ड में जीवित रखा गया.  फर्जीवाड़ा करने के लिए बाकायदा उनकी हाजिरी लगाई गई, उन्हें ड्यूटी पर दर्शाया गया और उनके नाम से वेतन-भत्ते इन खातों में जाते रहे. ऐसे कई कर्मचारी हैं, जिनके मृत होने के बाद भी उनके नाम से वेतन निकलता रहा. अब इस संबंध में विभाग से जानकारी मांगी जा रही है कि कितने कर्मचारी पिछले 5 साल में मृत हुए हैं.

Advertisement

ऐसे खुला यह घोटाला

जांच में पता चला कि ग्वालियर में एक खाते में आईडी और पासवर्ड बदल बदलकर लगातार पैसे ट्रांसफर हो रहे हैं. इसमे अब तक करोड़ों की राशि गई है. मोटे तौर पर इस संदिग्ध खाते से 71 लोगों के बैंक खातों में 16 करोड़ 24 लाख की राशि भेजी गई. इस सूचना के बाद आयुक्त कोष और लेखा ने एक जांच कमेटी बनाई. 

Advertisement

मामला खुलने पर पीएचई विभाग के मुख्य अभियंता ने भी एक जांच शुरू की जांच करने को कहा कि 2017 से खण्ड एक मे रहे अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यन्त्रियो के कार्यकाल में हुए भुगतान की जांच की जाए. इसके लिए ईएनसी और प्रमुख अभियंता को भी पत्र लिखा. जोरदार बात ये हुई कि अब तक इस मामले में अलग अलग कई जॉच कमेटियां बनी. सात दिन में रिपोर्ट देना थी लेकिन कई महीने बीत जाने के बावजूद एक की भी रिपोर्ट नही आई. हारकर मुख्य अभियंता आरएलएस मौर्य ने कार्यपालन यंत्री को कहकर मामले की रिपोर्ट पुलिस में करवाई. 

कैसे किया एक पम्प ऑपरेटर ने करोड़ो का घोटाला

यह इतना बड़ा घोटाला हुआ कैसे ? इस सवाल का उत्तर जानने के लिए एनडीटीवी ने खोजबीन किया तो पता चला कि इस घोटाले का मुख्य किरदार हीरालाल है जो पीएचई विभाग के खंड क्रमांक एक मे पम्प अटेंडर पद पर कार्यरत था. चौकाने वाली बात ये कि अफसरों ने इस चतुर्थ श्रेणी स्तर के कर्मचारी को न केवल करोड़ों के लेनदेन करने वाला एकाउंटेंट का काम दे दिया गया बल्कि उसे क्रियेटर भी बना दिया और यही उसने घपला करके ओटीपी ले लिए डीडीओ की जगह अपना नम्बर एड कर दिया. छह साल में एक अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यंत्री आये गए वे डीडीओ भी रहे लेकिन किसी ने भी यह जानने की कोशिश नही की कि बिल भुगतान के ओटीपी उनके निजी मोबाइल पर क्यों नही आते ? इससे उनकी भूमिका भी संदिग्ध हो जाती है.

सामान खरीदी का भी भुगतान कर दिया

जांच से पता चला कि हीरा लाल ज्यादा पढ़ा लिखा नही था इसलिए उसने बगैर कम्प्यूटर ऑपरेटर के रूप में अवैधानिक रूप से अपने एक रिश्तेदार के लड़के को रख लिया. एक बाहरी  व्यक्ति एकाउंट मेंटेन करने वाले कम्प्यूटर पर सरकारी दफ्तर में काम कैसे करता रहा ? यह सवाल भी अफसरों की भूमिका को संदिग्ध बनाता है. इन दोनों लोगों ने मिलकर खेल ये खेला कि बिल बनाते समय तो मृत कर्मचारियों के नाम और कोड अंकित कर दिया जबकि बैंक एकाउंट अपने परिचित और रिश्तेदारों के दे दिए इसलिए वह पैसा वहां डालकर वह खुद निकालता रहा. 

इतना ही नही सैलरी के अलावा उसने सामान खरीदी के भी करोड़ों के बिल पेड करवा लिए जिसमे ट्रेर्जरी की लापरवाही और भूमिका भी संदिग्ध है. उसने ब्लीचिंग पावडर और फिटकरी आदि खरीदी के करोड़ो के बिल निकाले.

मुख्य अभियंता मौर्य कहते है  कि ग्वालियर में हमारा अमला नगर निगम के लिए काम करता है, जिसमे मटेरियल नगर निगम खरीदता है हम सिर्ग वेतन भत्ते देते हैं. जब हमारे पास इस हेड का पैसा ही नही होता तो ट्रेजरी ने बिल पास करके पैसा रिलीज कैसे कर दिया?

बहरहाल मामले की जांच चल रही है. एक संदिग्ध ऑपरेटर को पुलिस ने हिरासत में लिया है लेकिन मुख्य आरोपी माने जाने वाले हीरालाल की तलाश है.